13/10/2019

● मन बन्जारा रे मन आवारा रे ●


● मन बन्जारा रे मन आवारा रे ●
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मन बन्जारा रे 
मन आवारा रे
मन जीते जो जीत यहाँ पर 
मन ही हारा रे 

मन उड़ जाए है 
मन जुड़ जाए है 
मन के आगे बेबस है 
ये दिल बेचारा रे

मन अन्धा है, मन बहरा है, मन है पागल रे 
मन कायल है, मन पायल है, मन है घायल रे 

सबके संग है, और अकेला 
मन इकतारा रे

मन भरमाये, मन तड़पाये, मन है सौतन रे 
मन समझाये, मन बहलाये, मन है जीवन रे 

सबको उलझाये है, सबको करे इशारा रे 

प्रेम सिखाये, त्याग सिखाये, नफरत भी दे, ज्ञान 
मन जिसका निर्मल हो जाए दे जाए निर्वाण 

तन रूपी बैसाखी का मन 
एक सहारा रे

मन बच्चा है, मन कच्चा है, मन है सच्चा रे 
मन गन्दा सोचे है लेकिन मन अच्छा है रे

मन ही अंधियारा जीवन का
मन उंजियारा रे 

नीलेन्द्र शुक्ल " नील "
13/10/2019




11/10/2019

अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश



● अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश ●
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अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश

जिनसे थी उम्मीद उन्हीं लोगों से धोखा खाए
गैरों की क्या बात करें जब अपने हुए पराए 
आपस की तू - तू मैं - मैं में समय गुजारें सारा 
जूता तकिया, सड़क बिस्तरा, छत आकाश तुम्हारा 

हाथों में दारू की बोतल मुँह में भरा भदेस 
अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश

एक आदमी कैसे मदमाती सत्ता को तोड़े 
प्रश्न पूँछने को आतुर है, आते नहीं भगोड़े 
और मीडिया बाकी सारी खेल रही गोदी में 
देश हुआ है अन्धा बहरा नमो नमो मोदीमय 

आखिर कैसे बदलेगा इस भारत का परिवेश 
अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश

सब्जी लाना, बच्चे ढोना, पीएचडी का शोध 
प्रोफेसर साहब हैं बच्चा करना नहीं विरोध 
चर्चा का झाँसा देकर के, उसे ले गये साथ 
मन की बात जुबाँ तक आई, बोल दिये हर बात 

एक यही सच्चा रिश्ता था, यह भी रहा न शेष 
अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश

डालर बढ़ता जाए रुपया थरथर - थरथर काँपे 
और हमारे भगवन! देखें चौड़ी छाती नापें 
"फाॅदर ऑफ इंडिया" सुनकर देख रहे हैं ख्वाब 
उनको तेरी फिकर महज़, वो होंगे तेरे बाप 

रंग - बिरंगे कपड़े पहने दिखते हैं रंगरेज़ 
अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश

हिन्दू - मुस्लिम, गाय, अयोध्या इन्हीं विषय के छल से 
साम दाम से, दण्ड भेद से, कूटनीति के बल से 
लोगों की आँखों पर पट्टी बाँध किया है अन्धा 
पहले पूजा करता है, फिर करता गोरखधंधा 

हम भारत के रखवाले हैं, यहाँ यही संदेश 
अच्छे दिन बैठे परदेस दुर्दिन आए मेरे देश

 - नीलेन्द्र शुक्ल " नील "
 -  10/10/2019

08/09/2019

बेतहाशा रो रहे हैं आप में


जिन्दगानी बीतती है पाप में
बेतहाशा रो रहे हैं आप में

ज्ञान देते ही रहे अध्यात्म का
जीव, ईश्वर, वेद गीता आत्म का
बस पढ़े समझे नहीं संताप में

एक पत्थर को रगड़कर आ गये
खत्म करके,मन्त्र पढ़कर आ गये
खर्च होते जा रहे हैं जाप में

देखना क्या उस गुरु की साधना
हो नहीं जिसको तनिक सम्वेदना
देखना गुरुता किसी माँ - बाप में

आज भूखा हूँ बताया, रो पड़ी
दूर है माँ, दूर उसकी झोपड़ी
जल रहा हूँ मैं अभागा शाप में

भोर से अस्वस्थ हूँ, सरदर्द है
दूर उनका भ्रम हुआ खुदगर्ज है
शर उठाकर जो चढ़ाया चाप में

नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

06/09/2019

मुझे तुम छोड़ दोगी ये पता है



कभी कविता कभी हथियार जानाँ
हमीं से प्यार हमपे वार जानाँ

मुझे तुम छोड़ दोगी ये पता है
भले ही दिन लगें दो - चार जानाँ

खबर भी क्या पढ़ें आबो हवा की
बहुत झूठे लगें अखबार जानाँ

कही! क्या लिख रहे हो आजकल तुम ?
बहुत चुभते हैं ये अश्आर जानाँ

मुझे तुम छोड़ कर जब से गई हो
नहीं देखा कोई दरबार जानाँ

फ़कत खामोश लफ़्जों की बयानी
नहीं कुछ और मेरा प्यार जानाँ

बदलते लोग हैं हर रोज ऐसे
बदलती हो यहाँ सरकार जानाँ

नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

तू क्यों बाहर रहती है



साहब सुन लो अर्जी है
कुछ मेरी भी मर्जी है

खून, पसीना बेंचे हो
तब आई खुदगर्जी है

हाँ मेरे हालात ओ ग़म
तेरी खातिर फर्जी हैं

कपड़े में इतने रफ्फू
मुझसे अच्छे दर्जी हैं

सोचा था कुछ अच्छे हैं
सबके सब बेदर्दी हैं

तंगी घर है सालों से
सालों से माँ भर्ती है

छोटी निकली बेहूदी
जो मन आये करती है

अब तो मुझमें जीना सीख
अब्भी मुझपे मरती है

घर में दीप जलाएगी
बिटिया बाहर पढ़ती है

तेरे घर के बाहर हूँ
तू आने से डरती है

"नील" तुम्हारे अन्दर है
तू क्यों बाहर रहती है

नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

31/08/2019

अनाज हूँ मैं

Pic Credit - Axita Joshi

तुम्हारे चेहरे की रौशनी हूँ, तुम्हारी आँखों का ख़ाब हूँ मैं, अनाज हूँ मैं
हमारी भी है हसीन दुनिया उसी का इक आफताब हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

नहीं हूँ पहला, न आखिरी हूँ, तुम्हारी साँसों के बाद हूँ मैं, अनाज हूँ मैं
निहाल होता हूँ रोज सब पे, सभी का पहला इलाज़ हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

मुझे बचाओ, रखो हमेशा, नहीं बहाओ, हिसाब हूँ, मैं अनाज हूँ मैं,
मुझे किसानों से पूछना तुम, उन्हीं के जीवन का राग हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

तुम्हारा कल था, तुम्हारा कल हूँ मुझे समझ लो जो आज हूँ मैं, अनाज हूँ मैं
सदा महकता हूँ थालियों में तुम्हारे दिल का नवाब हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

रगों रगों में जो बह रहा है वो खून मैं हूँ, जवाब हूँ मैं, अनाज हूँ मैं
हर एक घर का, हर एक होटल, हर एक महलों का नाज़ हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

हर एक मुल्कों की आँख की मुझपर, युँ देखते हैं के खास हूँ मैं, अनाज हूँ मैं
फुलाए फिरते हो छातियाँ तुम, तेरे बदन का शबाब हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

30/08/2019

कहो! कहने लगे तो क्या करोगे



हमेशा मुँह छुपा भागा करोगे 
बड़ा कब से कहो जज्बा करोगे

अभी ये हाल है जब सीखता हूँ 
कहो! कहने लगे तो क्या करोगे

सिखाओगे नहीं बच्चों को कुछ भी, 
तो फिर क्या ख़ाक तुम आशा करोगे 

निभाना जिन्दगी भर साथ उनका 
नहीं तो खाँ - म - खाँ तन्हा करोगे

शिकायत है बड़े लोगों से मेरी 
बड़ा मुझको भला तुम कब करोगे

लड़ो मुझसे उन्हें क्यों छेड़ते हो 
मेरे लोगों से भी नफरत करोगे

26/08/2019

मैं मरा मुझसे, मुझे मारा कोई शैताँ नही


इस तरफ से ना नहीं पर उस तरफ से हाँ नहीं 
और मैं मरता नहीं क्यूँ ये निकलती जाँ नहीं 

दर्द को बस दर्द दो ये दर्द ही मर जाएगा 
मैं मरा मुझसे, मुझे मारा कोई शैताँ नही 

हाँ मेरे जन्नत के दरवाजे की तुम हो रहगुज़र 
पर हकीकत जो कहें हम दो बदन इक जाँ नहीं 

लो लुटा लो प्यार मुझपर खूब ही बोसे मगर 
जो मिला पहली दफा वैसा कोई बोसा नहीं 

तू बहुत नाजुक है मेरे यार तू बाहर न आ 
दिल बहुत नादान है तू ये शहर नादाँ नहीं  

और तू कहता है वो हिन्दू जनी मुस्लिम जनी 
माएँ इंसा ही जनी हिन्दू नहीं मौला नहीं 

एक माँ से हैं नहीं रिश्ते में हैं भाई - बहन 
इस तरह रिश्ते निभाना भी यहाँ आसाँ नहीं 

जिन्दगी के पेचो - खम  में ही बहुत उलझे रहे
जो उठाया हूँ कलम गज़लें लिखी उन्वाँ नहीं 

कूच कर ले ऐ फकीरे! इस नगर से आज ही 
भूख से मर जाएगा इतना शहर अच्छा नहीं

भीगता ही रह गया मै रात - दिन बादल तले 
बह गये सारे शहर अब तक बहे अरमाँ नहीं 

बाँध लो घुँघरू, सजाओ महफिलें, रश्के कमर 
और मैं पीता रहूँ जब तक बुझे शम्माँ नहीं 

बस हसीनाओं की ज़ुल्फ़ों को संवारें रात - दिन 
सोचना फिर सोचना ऐसा ये हिन्दोस्ताँ नहीं 

पैरहन क्या देखता है? देखना है मन को देख



ये भरी कश्ती, भरा सावन, भरे मौसम तू देख
पैरहन क्या देखता है? देखना है मन को देख

फ़ुरकत - ए - गम में बहुत मशगूल हूँ मैं रात - दिन
तू कहीं भी देख पर मेरा दिल - ओ - आँगन तो देख

आ गया बनकर भिखारी आज तेरे द्वार पर
भीख़ देने के बहाने आ इसी कारण तो देख

हिज्र ने हैवान से इंसा बना डाला मुझे
ख़्वाब में जीना सिखाया भर गया दामन तो देख

बेटियाँ इक्कीस की हैं और पेशा कुछ नही
मुश्किलों के दौर को जीता हुआ आदम तो देख

ईद की ईदी हुई है रौशनी को देखकर
बेखबर सौहर चमकते चाँद सा साजन तो देख

दिल के छालों को निकाला रख दिया बाज़ार में
वाहवाही से भरा ज़ालिम ये वो आलम तो देख

शबनमीं शामें, धड़कते दिल, हँसी चेहरों के बीच
ये बदलते मौसमों के मौसमी बालम तू देख

देखने को जा रहा था मैं हंसी दरिया मगर
एक यायावर पुकारा " नील " ये मातम तो देख


12/08/2019

पन्द्रह अगस्त



पन्द्रह अगस्त, पन्द्रह अगस्त, पन्द्रह अगस्त, पन्द्रह अगस्त
कहने को देश कृषक का है, दिखते हैं सारे कृषक त्रस्त ।

खेतों को आँसू से सीचूँ या कहो लहू से भर दूँ मैं
या आग लगाऊँ वृन्तों में, विपिनों को भस्मित कर दूँ मैं
कितनी डी.ए.पी और यूरिया भाँति - भाँति की खादे हैं
मरने वाले उन कृषक भाइयों की कितनी सौगातें हैं

बचपन से देख रहा हूँ कृषकों का चेहरा दिखा पस्त ।

घर से निकले सारे भाई औ' ज्यों ही पहुँचे सीमा पर
तड़तड़ - तड़तड़ गोलियाँ चली निकला है लहू पसीना पर
अन्तिम साँसों तक लड़े वीर सैनिक बस रक्षा की ख़ातिर
अक्सर कुर्बानी देते हैं अपनी भारत माँ की ख़ातिर

वो लोग अभी न घर पहुँचे सूरज देखो हो गया अस्त ।

जो पाँच साल की बच्ची से हो रहा है दुर्व्यवहार यहाँ
ये लोकतंत्र लेकर ढ़ोऊँ ? क्या देखूँ मैं संस्कार यहाँ?
हाँ बलात्कार पे बलात्कार होते रहते हैं आये दिन
कर देंगे भ्रूण - मृत्यु लेकिन जीना चाहेंगे बिटिया बिन

बच्चियाँ मौत के घाट हुई, हैं बहन, बेटियाँ पड़ी लस्त ।

कम्प्लेन हुई थी पहले दिन अब तक अपराधी मिला नहीं
बस इसी बात का दुःख मुझे उनको कोई भी गिला नहीं
खा लिये पान करते पिच् - पिच् चौराहों पर गाली बकते
झूठे चालान बनाते हैं ऊपरी खर्च अन्दर रखते

खा खाकर सरकारी पैसा है पुलिस यहाँ की मटरगस्त ।

जो रीत जहाँ की है यारों वो रीत चली ही आएगी
सबका है सबसे प्रेम यहाँ तो प्रीत चली ही आएगी
रह गया स्तब्ध जब भी आया देखा करके मैं आँख बन्द
इस भारतीय सम्बन्धों में दिखता मुझको ऐसा प्रबन्ध

सदियों से पड़ती आई है अब भी फाइल पे पड़ी डस्ट ।

मैं नमन करूँगा उन सबको जो हैं इसपर बलिदान दिये
नेता, मंत्री, सैनिक, जन हों जो भी इसका सम्मान किये
पर उन्हें कभी न छोड़ूँगा जिनके हैं पेट बड़े भारी
है मिलीभगत इन लोगों में खाते रहते पारापारी

ये लोकतांत्रिक - देश यहाँ नेता, मंत्री हैं सदा मस्त ।


08/08/2019

ये हिन्दू - मुस्लिम के बच्चे एक नहीं हो पाएँगे


कविताएँ लिख - लिख मर जाओ नेक नहीं हो पाएँगे 
ये हिन्दू - मुस्लिम के बच्चे एक नहीं हो पाएँगे 

संस्कारों की चादर तानों वादों के फरमान गढ़ो
ईश्वर - अल्लाह रोज मनाओ गीता और कुरान पढ़ो
कितना भी कुछ कर ले यारा! देख, नहीं हो पाएँगे 

पुनर्नवा करते करते ही अभिज्ञान हो जाएगा 
दोनों में फिर युद्ध छिड़ेगा सब श्मशान हो जाएगा 
रक्ताप्लावित होगा कुछ अवशेष नहीं हो पाएँगे 

संविधान कठपुतली होगा शोकगीत बन जाएगा 
हम हिन्दू हैं, हम मुस्लिम हैं यही महज़ हो पाएगा 
इसी देश में ईद और अभिषेक नहीं हो पाएँगे 

मुखिया हैं दोनों पक्षों में दोनों का खूँ खौल रहा 
धरती भी कम्पन करती है काल आग जब बोल रहा 
एक म्यान में दो तलवारें फेंक, नहीं हो पाएँगे 

04/08/2019

" नील " जगत अपनी गति चलता है छोंडों भी जाने दो


वो चुपचाप देखती मुझको मैं करता था नादानी 
उसके भीतर खामोशी थी मेरे अन्दर शैतानी 

हम सबके होते हैं सब मुझमें आकर बसते हैं क्या? 
कुछ रिश्ते दिल के होते हैं कुछ होते हैं बेमानी 

अब तक जितना भी देखा हूँ ये धरती, ये आँगन मैं 
चमकी आँखें,  देखी फसलें रंगों में धानी - धानी 

सन्तों का चोला है बाकी मन की बातें जानो तो 
ढोंग दिखावा संन्यासी का भीतर - भीतर अज्ञानी

अब बच्चों को फुर्सत कब है पढ़ने और पढ़ाने से 
कैसे वो बातें जानेंगें जिनमें हैं राजा - रानी 

कैसी दशा हुई है ? कैसा हाल हमारे भारत का ?
आँखों से आँसू रिसता है चेहरे प है हैरानी 

" नील " जगत अपनी गति चलता है छोंडों भी जाने दो 
गालिब रोये, तुलसी रोये, कौन सुना कबिरा - बानी 

29/07/2019

गिरी है "नील" वो शबनम कहीं पर


युँ ही लगता नहीं है मन कहीं पर 
दिखें जब तक नहीं हमदम कहीं पर

है भीतर शोर,  ख़ामोशी है बाहर 
हुआ कैसा ये स्पन्दन कहीं पर 

दरिन्दे देश में बढ़ने लगे हैं  
बचाती बेटियाँ दामन कहीं पर 

दिखे दोनों नहीं इक साथ मुझको 
कहीं विद्या दिखी तो धन कहीं पर 

चढ़ी है मुफलिसी सर पर हमारे 
लगे अच्छा नहीं मौसम कहीं पर

कभी दिखते नहीं ख़ालिक बनें हैं 
बढ़े हैं खूब अब रावण कहीं पर 

सुबह से रो रहा मासूम बच्चा 
कहीं सूना पड़ा आँगन कहीं पर 

बिरहमन फूटकर रोते मिले हैं 
मुझे ऐसा दिख़ा आलम कहीं पर 

अजब उलझन मची भीतर हमारे 
कहीं पर तन हमारा, मन कहीं पर 

जिसे हम रात-दिन सोचा किये हैं 
गिरी है "नील" वो शबनम कहीं पर 

21/07/2019

आखिर जब तुम ही न होगे कैसा होगा ये जीवन



आखिर जब तुम ही न होगे कैसा होगा ये जीवन 
ना तुम होगी, ना हम होंगे, ना होंगे ये घर - आँगन ।।

क्या होंगे प्रासाद भवन सब तेरे आगे फीके हैं 
तुझको, तुझसे ज्यादा चाहें बस इतना ही सीखे हैं 
कितने बादल घेरे - घुमड़े तुम पर असर नहीं होता 
बरषा जैसी बरसी मुझपर मुझ बिन बसर नहीं होता 

ऐसे पल - पल बीत रहे हैं तुम बिन तड़पेगे सावन ।

उन अधरों पर गजल , गीत आखिर कैसे लिख पाऊँगा 
दूर रहोगे मुझसे ही गर कैसे साथ निभाऊँगा 
तुम ही बोलो मधुर - मिलन उन बातों का फिर क्या होगा 
तुम ही बोलो अन्तहीन उन रातों का फिर क्या होगा 

सब श्रृंगार उतर जाएँगें टूट चुका होगा दर्पण ।

शब्दों की माला पहनाऊँ भावों से श्रृंगार करूँ 
तुमसे पहले महक तुम्हारी आये इतना प्यार करूँ 
कोरा - जीवन हो जाएगा औरों में बंट जाएगा 
यद्यपि इन अवसादों में भी ये जीवन कट जाएगा

महज़ वेदनाएँ भर होंगी और रहेगा पागलपन ।

जहाँ - जहाँ हम बाग - बगीचों में जा बैठा करते थे 
कलरव करते आते पंक्षी विषय अनूठा करते थे 
सारे भाव उपस्थित होते आलम्बन , उद्दीपन के 
और जवानी के पर लग जाते थे उस पल सावन के 

कोयल जब भी कूँक उठाएँगी मन में होगी उलझन ।

आखिर जब तुम ही न होगे कैसा होगा ये जीवन 
ना तुम होगी, ना हम होंगे, ना होंगे ये घर - आँगन ।।

रात की काली चदरिया ओढ़कर हम चल दिये


रात की काली चदरिया ओढ़कर हम चल दिये 
मेरी दुनिया, मेरे मञ्जर, मेरे अपने हल दिये 

कुछ घड़ी, कुछ पल बिता सकता था मैं भी साथ पर 
जिस वख़त प्यासा रहा मैं उस वख़त न जल दिये 

और अब किससे गिले - शिकवे करूँ मैं उम्रभर 
वो डुबाए बीच में बोलो कहाँ साहिल दिये 

जिनसे आशाएँ बहुत थी, थे बहुत सपने सजे 
जिन्दगी दुश्वार करके वो मुझे दलदल दिये 

आँख मेरी अब खुली है जब तमाशा बन गया 
मेरे घर मुझको नही रखे, मुझे जंगल दिये 

जिनको मैं देखा नहीं जिनपे ये नज़रें न गई 
जिनको अपना मैं न समझा बस वही सम्बल दिये 

19/07/2019

उपनिषद के मंत्र जैसी है तुम्हारी भावना



उपनिषद के मंत्र जैसी है तुम्हारी भावना
तुम वहाँ पर थी जहाँ पर वेद की थी छाँव ना ।।

एक क्या चौसठ कलाओं में सदातन जो बही हो
आयतों में और तुम वैदिक ऋचाओं में रही हो
तुम महाकवि कालिदासी - काव्यों की नायिका सी
हो लता मंगेशकर जैसी अनूठी गायिका सी
हैं थिरकते पैर जैसे पार्वती का लास्य हो
और हँसनें की कला यूँ है लगे मधुमास हो

आज भी भाता तुम्हें अपना पुराना गाँव ना ।।

दर्शनों के गूढ भावों का अनोखा सार हो तुम
और भाषाओं का जीता जागता परिवार हो तुम
तुम नहीं अभिनेत्री पर क्या कहूँ अभिनीय हो
रूप, यौवन, ज्ञान, धन से सच अनिर्वचनीय हो
दूर कर अज्ञान तुम करती रही हो आवरण
ज्ञान देती हो, पढ़ाती प्यार का तुम व्याकरण

द्वैत को अद्वैत में बदला किया अलगाव ना ।।

14/07/2019

" नील " मेरे ख़याल लोगे क्या


रंग मुझसे गुलाल लोगे क्या 
आश़िकी की मिसाल लोगे क्या 

इश़्क है ज़ीन में मेरे भीतर 
इश़्क बोलो निकाल लोगे क्या 

भागती है तो भाग जाने दो 
अपने सर पे बवाल लोगे क्या 

रात - दिन इंतज़ार करते हो 
खुद को ऐसे सम्हाल लोगे क्या 

छोड़ दो या कि साथ ही ले लो 
फैसला, एक साल लोगे क्या 

रोज इज्जत से चाय देते थे 
आज ना हालचाल लोगे क्या 

छोड़ दो बन्द भी करो ड्रामा 
न्याय में अब दलाल लोगे क्या 

और नजदीकियाँ बढ़ाते हो 
" नील " मेरे ख़याल लोगे क्या 

@नीलेन्द्र शुक्ल " नील "
#Poetrywithneel

26/06/2019

कंकर शंकर कर गुज़रा हूं



बाहर भीतर से गुज़रा हूं 
मैं तेरे घर से गुज़रा हूं

तू गुजरी है मुझमें होकर
मैं तुझमें होकर गुजरा हूं 

मेरी बातें जुबां तुम्हारी 
डीदा ए तर से गुज़रा हूं 

आयात और ऋचाएं गूंजी
कंकर शंकर कर गुज़रा हूं

देख रहे हो जमीं जमीं पर
मैं अम्बर अम्बर गुजरा हूं 

होंठ लिपटे हैं, नजर बंद, कमर हांथों में



तेरे शहर में, तेरे साथ मेरा प्यार चले
साथ तेरा रहे यूं मौसम ए बहार चले

जिन्दगी खुशनसीब जन्नत ए चमन जैसी 
तू जो आए तो मेरे सारे गम गुजार चले 

रूप है चांद सा, ख़ुशबू है रातरानी सी 
रात संग बैठकर अपनी ग़ज़ल संवार चले 

होंठ लिपटे हैं, नजर बंद, कमर हांथों में
खूबसूरत रहा लम्हा वो बार बार चले

लोग पढ़ते हैं, देखते हैं और सुनते हैं 
तुम्हारी रूह निकाले यहां उतार चले 

एक चलने से तेरे, ये जहां चलता है 
नील के साथ तुम चले तो बेशुमार चले 

खींचता होंठ का तुम्हारे तिल



तुम्हें मिला तिरी खबर जाना 
आज तुमको मैं बेखबर जाना 

दुआ में मांगते हैं लोग मुझे 
बात ये आज इस सहर जाना 

खींचता होंठ का तुम्हारे तिल
और सबकुछ है बेअसर जाना 

आई घर से वो सुर्ख आरिज़ में
दे दिया दांत का असर जाना 

एक इक गोद में तुम्हारे सर 
एक तुझमें मेरा बसर जाना 

और क्या कर दिया कहो, तुमको 
देखता नील दर ब दर जाना

तिरंगा बेटियां लहरा रही हैं


कहीं पर कोयलें कुछ गा रही हैं 
मधुर संगीत की धुन आ रही है 

निकलकर आज दरवाजों से बाहर 
तिरंगा बेटियां लहरा रही हैं 

तुम्हारे आंख की ख़ामोशियां सब 
हमारी आंख से बतला रही हैं 

खुली रंजिश में टकराता है भारत 
हमारे देश की दरियादिली है 

मुहब्बत सरफ़रोशी की तमन्ना 
मुहब्बत ही जमीं समझा रही है 

हृदय आकांक्षा से भर गया है 
बालाएं जो रही वो जा रही हैं

कहां से छू गई मुझको सरापा
हवा ये नील को बहका रही है 

चली आई मुझे शंकर बनाने



कभी ईश्वर कभी कंकर बनाने 
लगा घर सा कोई अन्दर बनाने 

सती के रूप में मेरी मुहब्बत
चली आई मुझे शंकर बनाने 

बहुत सी बात थी खामोशियों में
जुबां उसको लगी जर्जर बनाने 

चुनावी मसअला छाने लगा है 
लगे अब खुशनुमा मंज़र बनाने

अधूरी सांस भी थी टूटने को 
तभी वो आ गए रहबर बनाने 

मुहब्बत नील का पर्याय है सर 
इसे क्यों आ गए कमतर बनाने 

01/05/2019

मजदूरों को कब किसनें फुर्सत देखा


अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस की हार्दिक शुभकामनायें 😭-
ये इनको खुश करने की है चाल महज 
मजदूरों को कब किसनें फुर्सत देखा

30/04/2019

जा मौज़ करा ई चुम्बन दिन


आलम्बन दिन उद्दीपन दिन 
जा मौज़ करा ई चुम्बन दिन 

दुई - दुई  के पाँति बंधी अहै 
आपस मा दुइनौ बिज़ी अहैं 
आँखिन मा आँख घुसेरे हैं 
चुम्मू पर वै मुँह फेरे हैं 

ओहके अब मन ललचान अहै 
कइद्या उनके अभिनन्दन दिन 

घर से सज धज के निकरे हैं 
खाना - पानी सब बिसरे हैं 
आँखिन मा लाखन ख़्वाब अहै 
हाँथन मा फूल गुलाब अहै 

कुछ के ख़ातिर ई अच्छा है 
कुछ के ख़ातिर ई लंठन दिन 

पइसा से पर्स भरे रइहा 
वै जउन कहँय ओतने करिहा 
बड़का ऊ मॉल घुमावत थीं 
रसगुल्ला चाट खवावत थीं 

कुछ हार, अँगूठी ड्रेस देइहैं 
कुछ बिंदिया चूड़ी कंगन दिन 

बातन - बातन मा प्यार बढ़ा 
मूढ़े चुम्बन त्यौहार चढ़ा 
नाचब गाउब बढ़िया होइहैं 
हमरे - तुम्हरे लरिका होइहैं 

वै दूनौ बातैं करत रहें 
हरदी माटी औ चन्दन दिन

जिस्म हमारा इक पल का, इक पल सा मैं

Lover of Mother Father & Lover.

कुछ चीजों में सच में बहुत निकम्मा हूँ कुछ चीजों में बिल्कुल गंगाजल सा मैं

मुझको मत देखो, अपनी आँखें देखो देखो चिपका हूँ उनमें काजल सा मैं

तेरी मम्मी मुझको ऐसे देख रही जैसे उनकी बिटिया का हूँ कल सा मैं

तुम बारिश हो मेरे भीतर रहती हो मैं फैला आकाश, तेरा बादल सा मैं

जब से तुमसे प्यार हुआ माँ कहती है बेटा है बदमाश बहुत, पागल सा मैं

और छनकने लगती हो तुम मेरे संग तेरे नाज़ुक पैरों का पायल सा मैं

मेरी माँ नें कठिन तपस्या की होगी तब जाकर वो पाई मुझको, फल सा मैं

नील तुम्हारे बीच हमेशा होगा पर जिस्म हमारा इक पल का, इक पल सा मैं

29/04/2019

हर जख्मों की एक दवा तेरा चुम्बन


करता ही रहता है अक्सर आलिङ्गन हर जख्मों की एक दवा तेरा चुम्बन

वो रहती है अक्सर मेरी बाहों में इससे ज्यादा क्या होगा दीवानापन

आजीवन की एक पालिशी जैसी है डूबा हूँ उसमें, वो मेरा जीवनधन

उसके चेहरे जैसा दूजा क्या होगा चौबिस घंटे लगती एक सजी दुल्हन

आओ ना घर मिलते हैं भैया भाभी फिर से हरा - भरा हो जाये घर आँगन

नील उसे जैसे देखा दिल हार गया माँ! इतनी चुम्मू है उसकी जानेमन

देखे पसन्द करके उसको मना किया


खाला का घर नहीं है जो मन हुआ किया
देखे पसन्द करके उसको मना किया 

क्या सोंचती होगी कि कहाँ कौन कमी है 
इस दौलत - ए - नाचीज़ नें क्या - क्या करा दिया 

खुद से हुई है नफ़रत उसको रुला दिया 
कुछ दिन के लिए उसको ये सिलसिला दिया 

तुम तो पढ़े लिखे हो फिर भी ये हाल है 
घर ही मना न पाये तो क्या भला किया 

मन कर रहा था उठ के तमाचा मैं खींच दूँ 
कुछ सोच - समझकर के उनको विदा किया 

तू है कहाँ छुपा हुआ ओ नील ! बेख़बर 
उसका चराग़ उसने फिर से बुझा दिया  






हर बच्चों के पा - मम्मी हों

Neel 
फल फूल रहे न चटनी हो 
जीवन भर बुक न रटनी हो 

जीवन डूबा हो मस्ती में 
न फोन रहे न पत्नी हो 

उन लोगों से बातें करना 
जिन लोगों में न गर्मी हो 

पर बिटिया देख ताक लेना 
वो शायद नहीं अधर्मी हो 

उसके कमरे में जाओ पर 
बचना की न बेशर्मी हो

तेरी आँखों की मधुशाला
मेरी आँखों में चढ़नी हो 

डी.जे फीजे से बेहतर है 
शादी में बन्ना - बन्नी हो 

इतना भी पंख पसारो मत 
जेबों में नहीं चवन्नी हो 

मौला इतना एहसान करो 
हर बच्चों के पा - मम्मी हों 

इक बारी मुझे ख़बर करना 
हे नील! जमीं जब बिकनी हो 



28/04/2019

मेरे भीतर वो बनने की लियाक़त है तो है

Neel
मेरी आँखों में गर तेरी नज़ाक़त है तो है 
परीशाँ रात - दिन करता शरारत है तो है 

मुझे कब कौन रोका है मुझे कब कौन रोकेगा 
जो तुमसे हो गई है अब मुहब्बत है तो है 

हमारे पास में खुद को बहुत महफूज़ पाती है 
मेरा कर्त्तव्य है उसकी हिफाज़त है तो है 

मुझे कुछ भी नहीं खोना मुझे कुछ भी नहीं पाना 
मगर फिर भी ख़ुदा से ये इबादत है तो है 

मुझे मालूम है यारों मेरी ताक़त का अन्दाज़ा 
मेरे भीतर वो बनने की लियाक़त है तो है 

नहीं यूँ बोलना अक़्सर, बहुत बढ़चढ़ के बोले हो 
बड़े होने से प्यारे ! ये नसीहत है तो है 


27/04/2019

उसके इक इक हिस्सों में खो जाता हूँ

उसके इक इक हिस्सों में खो जाता हूँ 
जीवन के कुछ लम्हों में खो जाता हूँ 
मैं तो अक्सर अपनों में खो जाता हूँ 

संबंधों में गाढ़ापन बढ़ता जाए 
उन पाकीज़ा रिश्तों में खो जाता हूँ 

वो अक्सर ही मिलने आया करती है 
डूबा रहता सपनों में खो जाता हूँ 

सर पर थीसिस नाच रही है ज़ोरों से 
लिखने बैठूँ, नज़्मों में खो जाता हूँ 

शहरों में सबकुछ मिलता है मिलने दो 
मैं तो गाँवों, कस्बों में खो जाता हूँ 

मुझको दी है मेरी माँ नें एक बहन 
उसके प्यारे किस्सों में खो जाता हूँ 

कई लड़कियों से देखा बातें करते 
वो कहता है, जिस्मों में खो जाता हूँ 

मेरी भी ख़्वाहिश है बीबी सजी रहे 
साड़ी, कपड़ो, गहनों में खो जाता हूँ 

रातें कैसे गुज़र रहीं मालूम नही 
उसके इक इक हिस्सों में खो जाता हूँ 

25/04/2019

बात इतनी बड़ी नहीं होती


प्यार करती, खड़ी नहीं होती 
काश वो नकचढ़ी नहीं होती 

बात बढ़ती है बात करने से 
बात इतनी बड़ी नहीं होती 




22/04/2019

कमर उस पर सुराही हो गई है

अभिज्ञान शाकुन्तलम 
मिटी ठण्डी, रजाई हो गई है 
मेरी जाँ से सगाई हो गई है 

बदन है संगमरमर सा तुम्हारा 
कमर उस पर सुराही हो गई है 

21/04/2019

मुहब्बत जिस्म का धंधा नहीं है


जहाँ में हर कोई गन्दा नहीं है 
महज़ आँखें नहीं, अन्धा नहीं है 

मुहब्बत दो दिलों का राब्ता है 
मुहब्बत जिस्म का धंधा नहीं है 

चलो बेटा अभी स्कूल जाओ 
पढ़ाई है, कोई फन्दा नहीं है 

बहुत ही खूबसूरत लिख रहा है 
मगर वो आदमी उम्दा नहीं है 

20/04/2019

तुम्हें कैसे सम्हालूँगा बताओ

सनम यूँ ही नही तुम दिल लगाओ 
नही मुझको अभी अपना बनाओ 

सम्हाले दिल सम्हलता ही नही जब 
तुम्हें कैसे सम्हालूँगा बताओ 

19/04/2019

ख़ुदा ये सब सभी को यूँ नहीं देता

जिसे जो चाहिए उसको नहीं देता 
मुहब्बत, सादगी सबको नहीं देता 

तुझे जो कुछ मिला है क़द्र कर उसकी 
ख़ुदा ये सब सभी को यूँ नहीं देता 




तुझे देखें तो मेरा नाम बुलाया जाये

Teri Parchhaiyan Jo Humsafar Hain.
तेरे चेहरे पे मेरे रूप का साया जाये 
तुझे देखें तो मेरा नाम बुलाया जाये 

कम से कम याद रखेंगे मुझे वो हर लम्हा 
दोस्ती छोड़ के, दुश्मन ही बनाया जाये 

दुखी रहूँ तो उन्हें मेरी ख़बर मत देना 
सुखी रहूँ तो मेरी माँ को बुलाया जाये 

वो जो ख़ामोश खड़े हैं सभी बच्चे बाहर 
मेरी महफ़िल में उन्हें प्यार से लाया जाये 

ज़ुस्तज़ू है मुझे उस दिन का, कि जिस दिन यारा 
तेरे घर में मुझे मेहमान बनाया जाये

तड़प रहा है मेरे सामने मेरा मौला
नील भरपेट उसे भोज कराया जाये 




  

18/04/2019

नील! तुमको चुना मुकम्मल है

काश इतना बुरा नही होता 
वक्त ये बेवफा नही होता 

उम्र लगती है नाम होने में 
कोई यूँ ही बडा नही होता 

लोग गर छेडते नही मुझको 
जंग कोई लडा नही होता 

 आदमी जिन्दगी समझते जो 
     फलसफा ही बना नही होता    

बात सुनता अगर बडों की तू 
यार ये क़हक़हा नहीं होता 

एक दूजे से प्यार न हो तो 
फालतू वास्ता नही होता

नील! तुमको चुना मुकम्मल है 
वगर्ना रास्ता नही होता 

17/04/2019

अल्लाह देखता है उससे डरें हुज़ूर

Corporate Walk With Laden
अच्छाइयों के रास्ते बढ़ते रहें हुज़ूर 
जीवन के रंगमंच पे कुछ तो करें हुजूर 

इन जंग की बातों से सुलह कर लिया जाये 
ऐसा करो न तुम मरो,न हम मरें हुजूर 

ईश्वर ने बहुत सोच के इंसान बनाया 
इंसानियत को समझें खुशियाँ भरें हुज़ूर 

दूजों को कोसना क्या हम ख़ुद को बदल लें 
ये काम यहीं करके, आगे बढ़ें हुज़ूर 

वो आग फूँकते हैं भीतर जो तुम्हारे 
खुल्ला जवाब दे दो हम क्यूँ लड़ें  हुज़ूर 

माना कि सबसे बच के लूटे हो ज़माना 
अल्लाह देखता है उससे डरें हुज़ूर 

16/04/2019

अंगारों पे चलता हूँ मैं

Neel, Kavya Moti, Harsh Bhai
बंजारों सा बढ़ता हूँ मैं 
अंगारों पे चलता हूँ मैं 

किन लोगों से डरना यारों 
सरकारों से लड़ता हूँ मैं 

टकराता हूँ चट्टानों से 
कब डरता हूँ परिणामों से 
जो भी होगा सब निश्चित है 
जो डरता है वो ही चित है 

सब सोंच - सोंच रुक जाते हैं 
आगे भविष्य गढ़ता हूँ मैं 

दीवानों सा पागलपन है 
सपनों में ही रहता मन है 
पथरीली राहों पर दौड़ू 
सबका सब मैं अपना कर लूँ 
देखे मैंने उल्लास बहुत 
देखे मैंने मधुमास बहुत 

अब खुद को भी मैं देख सकूँ 
इसलिए शिखर चढ़ता हूँ मैं 

डरना कैसा गद्दारों से 
क्या प्यार करूँ दीवारों से 
मन में जिसका भी कलरव है 
जीवन में सबकुछ संभव है 
खुद को जिसमें खुश पाओगे 
जैसा सोंचे बन जाओगे 

दूजों को पढ़ता नहीं कभी 
अक्सर खुद को पढ़ता हूँ मैं 

बंजारों सा बढ़ता हूँ मैं 
अंगारों पे चलता हूँ मैं 

किन लोगों से डरना यारों 
सरकारों से लड़ता हूँ मैं

जिसमें जाओ चरमावस्था तक जाओ

                                                         

                                                      कर्म ज्ञान औ' मोक्षावस्था तक जाओ                             
                                                       जाना है तो ब्रह्मावस्था तक जाओ 

                                                    नफ़रत, सोहरत, धर्म मुहब्बत जो भी हो 
                                                      जिसमें जाओ चरमावस्था तक जाओ 

                                                       तुम सैनिक हो लड़ना धर्म तुम्हारा है 
                                                      लड़ते - लड़ते विजयावस्था तक जाओ 

                                                         विषयों में इतनी अनुरक्ति हो जाए 
                                                        कामावस्था विरहावस्था तक जाओ

13/04/2019

शह्र में गाँव कर दिया तुमनें

पार ये नाव कर दिया तुमने 
जुल्फ़ से छाँव कर दिया तुमने 

लोग लोगों से बात करते हैं 
शह्र में गाँव कर दिया तुमनें 

12/04/2019

लोग क्यूँ वाह वाह करते हैं

Neel
लोग ख़ुद को तबाह करते हैं 
जानते हैं, गुनाह करते हैं

रात आती है चाँद तारों संग
रात को हम सियाह करते हैं

चाहता हूँ मैं बाख़ुदा जिसको
आज उससे निकाह करते हैं

घूमते हैं, बड़े नज़ाकत से
और हमपे निगाह करते हैं

ख़्वाहिश -ए - पूर्णिमा की है उनको
हम अमावस की चाह करते हैं

जुर्म के बाद था अदालत में
लोग फिर भी गवाह करते हैं 

बोलता हूँ फ़िजूल ही यारों 
लोग क्यूँ वाह वाह करते हैं



11/04/2019

प्रेम शिव हैं, निशान काशी में

Kashi, Banaras,Varanasi
ईश शव औ' मशान काशी में 
रोज सुनता अज़ान काशी में 

 केरला में महज़ बदन मेरा 
घूमता है धियान काशी में 

एक ही घाट पर दिखे दोनों 
ईश,अल्ला महान काशी में 

पाठ करते बटुक ऋचाओं का 
वेद, गीता, पुराण काशी में 

सुब्ह से शाम तक महादेवा 
गूँजती है जुबान काशी में 

एक मैं ही यहाँ अकेला हूँ 
और सारा जहान काशी में

ख्वाहिशें हैं नहीं बहुत मेरी
चाहता इक मकान काशी में 

प्रेम पाकीज़गी में दिखता है 
प्रेम शिव हैं, निशान काशी में

" केरला में महज़ बदन मेरा " का मतलब ये बिल्कुल नहीं है की मैं केरला पसन्द नहीं करता केरला मुझे बहुत पसन्द है यहाँ के लोग, यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता, यहाँ की उदारता पर कुछ मामलों को लेकर स्वार्थी होना पड़ता है महादेव की ख़ातिर ।


प्रोफ़ेसर हो समदर्शी व्यवहार करो

3 Idiot - Google
बीती बातों को किस्सों में मत देखो 
देखो अपना, सब हिस्सों को मत देखो 

प्रोफ़ेसर हो समदर्शी व्यवहार करो 
बस अपने अपने शिष्यों को मत देखो 

मतदान

Google
आये थे माँगने, सर पैर किये, दान दिया
आज फिर से मैं अपना वोट ये कुर्बान किया 

सोंचकर फिर यही कि कुछ न कुछ नया होगा 
आज पत्थर रखा सीने पे फिर मतदान किया 

तुम्हें जीवन बना लिया हूँ मैं

Neel - Teri Parchhaiyan Jo Humsafar Hain.
आज लो मन बना लिया हूँ मैं 
आज चिलमन हटा लिया हूँ मैं 

होंठ पे रंग लगा के, रंगों से 
और भी रंग बना लिया हूँ मैं 

आज क़ातिल अदाएँ देखूँगा 
आज दर्पण लगा लिया हूँ मैं  

इश्क आबाद करेगा मुझको 
सोंचकर संग बना लिया हूँ मैं 

एक पूरी ग़ज़ल समूची तुम 
तुम्हें जीवन बना लिया हूँ मैं

मुझको मेरा कल दो ना

Google
पापा पापा फल दो ना 
थोड़ा सा सम्बल दो ना 

मुझको भी पढ़ना लिखना है 
मुझको मेरा कल दो ना

मुझको भी कुछ करना है 
भइया जैसा बनना है 
आँखमिचौली नहीं खेलना 
मुझको आगे बढ़ना है 

मैं भी उड़ना सीखूँगी  
मुझको जीवनजल दो ना 

मुझको क्यूँ कमजोर समझते ?
मुझसे क्यूँ बातें न करते ?
सामाजिक बदलाव करेंगे 
सबमें हम समभाव भरेंगे 

मेरे प्रश्नों से क्यूँ चुप हो 
आखिर कुछ तो हल दो ना 

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...