31/08/2019

अनाज हूँ मैं

Pic Credit - Axita Joshi

तुम्हारे चेहरे की रौशनी हूँ, तुम्हारी आँखों का ख़ाब हूँ मैं, अनाज हूँ मैं
हमारी भी है हसीन दुनिया उसी का इक आफताब हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

नहीं हूँ पहला, न आखिरी हूँ, तुम्हारी साँसों के बाद हूँ मैं, अनाज हूँ मैं
निहाल होता हूँ रोज सब पे, सभी का पहला इलाज़ हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

मुझे बचाओ, रखो हमेशा, नहीं बहाओ, हिसाब हूँ, मैं अनाज हूँ मैं,
मुझे किसानों से पूछना तुम, उन्हीं के जीवन का राग हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

तुम्हारा कल था, तुम्हारा कल हूँ मुझे समझ लो जो आज हूँ मैं, अनाज हूँ मैं
सदा महकता हूँ थालियों में तुम्हारे दिल का नवाब हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

रगों रगों में जो बह रहा है वो खून मैं हूँ, जवाब हूँ मैं, अनाज हूँ मैं
हर एक घर का, हर एक होटल, हर एक महलों का नाज़ हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

हर एक मुल्कों की आँख की मुझपर, युँ देखते हैं के खास हूँ मैं, अनाज हूँ मैं
फुलाए फिरते हो छातियाँ तुम, तेरे बदन का शबाब हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

30/08/2019

कहो! कहने लगे तो क्या करोगे



हमेशा मुँह छुपा भागा करोगे 
बड़ा कब से कहो जज्बा करोगे

अभी ये हाल है जब सीखता हूँ 
कहो! कहने लगे तो क्या करोगे

सिखाओगे नहीं बच्चों को कुछ भी, 
तो फिर क्या ख़ाक तुम आशा करोगे 

निभाना जिन्दगी भर साथ उनका 
नहीं तो खाँ - म - खाँ तन्हा करोगे

शिकायत है बड़े लोगों से मेरी 
बड़ा मुझको भला तुम कब करोगे

लड़ो मुझसे उन्हें क्यों छेड़ते हो 
मेरे लोगों से भी नफरत करोगे

26/08/2019

मैं मरा मुझसे, मुझे मारा कोई शैताँ नही


इस तरफ से ना नहीं पर उस तरफ से हाँ नहीं 
और मैं मरता नहीं क्यूँ ये निकलती जाँ नहीं 

दर्द को बस दर्द दो ये दर्द ही मर जाएगा 
मैं मरा मुझसे, मुझे मारा कोई शैताँ नही 

हाँ मेरे जन्नत के दरवाजे की तुम हो रहगुज़र 
पर हकीकत जो कहें हम दो बदन इक जाँ नहीं 

लो लुटा लो प्यार मुझपर खूब ही बोसे मगर 
जो मिला पहली दफा वैसा कोई बोसा नहीं 

तू बहुत नाजुक है मेरे यार तू बाहर न आ 
दिल बहुत नादान है तू ये शहर नादाँ नहीं  

और तू कहता है वो हिन्दू जनी मुस्लिम जनी 
माएँ इंसा ही जनी हिन्दू नहीं मौला नहीं 

एक माँ से हैं नहीं रिश्ते में हैं भाई - बहन 
इस तरह रिश्ते निभाना भी यहाँ आसाँ नहीं 

जिन्दगी के पेचो - खम  में ही बहुत उलझे रहे
जो उठाया हूँ कलम गज़लें लिखी उन्वाँ नहीं 

कूच कर ले ऐ फकीरे! इस नगर से आज ही 
भूख से मर जाएगा इतना शहर अच्छा नहीं

भीगता ही रह गया मै रात - दिन बादल तले 
बह गये सारे शहर अब तक बहे अरमाँ नहीं 

बाँध लो घुँघरू, सजाओ महफिलें, रश्के कमर 
और मैं पीता रहूँ जब तक बुझे शम्माँ नहीं 

बस हसीनाओं की ज़ुल्फ़ों को संवारें रात - दिन 
सोचना फिर सोचना ऐसा ये हिन्दोस्ताँ नहीं 

पैरहन क्या देखता है? देखना है मन को देख



ये भरी कश्ती, भरा सावन, भरे मौसम तू देख
पैरहन क्या देखता है? देखना है मन को देख

फ़ुरकत - ए - गम में बहुत मशगूल हूँ मैं रात - दिन
तू कहीं भी देख पर मेरा दिल - ओ - आँगन तो देख

आ गया बनकर भिखारी आज तेरे द्वार पर
भीख़ देने के बहाने आ इसी कारण तो देख

हिज्र ने हैवान से इंसा बना डाला मुझे
ख़्वाब में जीना सिखाया भर गया दामन तो देख

बेटियाँ इक्कीस की हैं और पेशा कुछ नही
मुश्किलों के दौर को जीता हुआ आदम तो देख

ईद की ईदी हुई है रौशनी को देखकर
बेखबर सौहर चमकते चाँद सा साजन तो देख

दिल के छालों को निकाला रख दिया बाज़ार में
वाहवाही से भरा ज़ालिम ये वो आलम तो देख

शबनमीं शामें, धड़कते दिल, हँसी चेहरों के बीच
ये बदलते मौसमों के मौसमी बालम तू देख

देखने को जा रहा था मैं हंसी दरिया मगर
एक यायावर पुकारा " नील " ये मातम तो देख


12/08/2019

पन्द्रह अगस्त



पन्द्रह अगस्त, पन्द्रह अगस्त, पन्द्रह अगस्त, पन्द्रह अगस्त
कहने को देश कृषक का है, दिखते हैं सारे कृषक त्रस्त ।

खेतों को आँसू से सीचूँ या कहो लहू से भर दूँ मैं
या आग लगाऊँ वृन्तों में, विपिनों को भस्मित कर दूँ मैं
कितनी डी.ए.पी और यूरिया भाँति - भाँति की खादे हैं
मरने वाले उन कृषक भाइयों की कितनी सौगातें हैं

बचपन से देख रहा हूँ कृषकों का चेहरा दिखा पस्त ।

घर से निकले सारे भाई औ' ज्यों ही पहुँचे सीमा पर
तड़तड़ - तड़तड़ गोलियाँ चली निकला है लहू पसीना पर
अन्तिम साँसों तक लड़े वीर सैनिक बस रक्षा की ख़ातिर
अक्सर कुर्बानी देते हैं अपनी भारत माँ की ख़ातिर

वो लोग अभी न घर पहुँचे सूरज देखो हो गया अस्त ।

जो पाँच साल की बच्ची से हो रहा है दुर्व्यवहार यहाँ
ये लोकतंत्र लेकर ढ़ोऊँ ? क्या देखूँ मैं संस्कार यहाँ?
हाँ बलात्कार पे बलात्कार होते रहते हैं आये दिन
कर देंगे भ्रूण - मृत्यु लेकिन जीना चाहेंगे बिटिया बिन

बच्चियाँ मौत के घाट हुई, हैं बहन, बेटियाँ पड़ी लस्त ।

कम्प्लेन हुई थी पहले दिन अब तक अपराधी मिला नहीं
बस इसी बात का दुःख मुझे उनको कोई भी गिला नहीं
खा लिये पान करते पिच् - पिच् चौराहों पर गाली बकते
झूठे चालान बनाते हैं ऊपरी खर्च अन्दर रखते

खा खाकर सरकारी पैसा है पुलिस यहाँ की मटरगस्त ।

जो रीत जहाँ की है यारों वो रीत चली ही आएगी
सबका है सबसे प्रेम यहाँ तो प्रीत चली ही आएगी
रह गया स्तब्ध जब भी आया देखा करके मैं आँख बन्द
इस भारतीय सम्बन्धों में दिखता मुझको ऐसा प्रबन्ध

सदियों से पड़ती आई है अब भी फाइल पे पड़ी डस्ट ।

मैं नमन करूँगा उन सबको जो हैं इसपर बलिदान दिये
नेता, मंत्री, सैनिक, जन हों जो भी इसका सम्मान किये
पर उन्हें कभी न छोड़ूँगा जिनके हैं पेट बड़े भारी
है मिलीभगत इन लोगों में खाते रहते पारापारी

ये लोकतांत्रिक - देश यहाँ नेता, मंत्री हैं सदा मस्त ।


08/08/2019

ये हिन्दू - मुस्लिम के बच्चे एक नहीं हो पाएँगे


कविताएँ लिख - लिख मर जाओ नेक नहीं हो पाएँगे 
ये हिन्दू - मुस्लिम के बच्चे एक नहीं हो पाएँगे 

संस्कारों की चादर तानों वादों के फरमान गढ़ो
ईश्वर - अल्लाह रोज मनाओ गीता और कुरान पढ़ो
कितना भी कुछ कर ले यारा! देख, नहीं हो पाएँगे 

पुनर्नवा करते करते ही अभिज्ञान हो जाएगा 
दोनों में फिर युद्ध छिड़ेगा सब श्मशान हो जाएगा 
रक्ताप्लावित होगा कुछ अवशेष नहीं हो पाएँगे 

संविधान कठपुतली होगा शोकगीत बन जाएगा 
हम हिन्दू हैं, हम मुस्लिम हैं यही महज़ हो पाएगा 
इसी देश में ईद और अभिषेक नहीं हो पाएँगे 

मुखिया हैं दोनों पक्षों में दोनों का खूँ खौल रहा 
धरती भी कम्पन करती है काल आग जब बोल रहा 
एक म्यान में दो तलवारें फेंक, नहीं हो पाएँगे 

04/08/2019

" नील " जगत अपनी गति चलता है छोंडों भी जाने दो


वो चुपचाप देखती मुझको मैं करता था नादानी 
उसके भीतर खामोशी थी मेरे अन्दर शैतानी 

हम सबके होते हैं सब मुझमें आकर बसते हैं क्या? 
कुछ रिश्ते दिल के होते हैं कुछ होते हैं बेमानी 

अब तक जितना भी देखा हूँ ये धरती, ये आँगन मैं 
चमकी आँखें,  देखी फसलें रंगों में धानी - धानी 

सन्तों का चोला है बाकी मन की बातें जानो तो 
ढोंग दिखावा संन्यासी का भीतर - भीतर अज्ञानी

अब बच्चों को फुर्सत कब है पढ़ने और पढ़ाने से 
कैसे वो बातें जानेंगें जिनमें हैं राजा - रानी 

कैसी दशा हुई है ? कैसा हाल हमारे भारत का ?
आँखों से आँसू रिसता है चेहरे प है हैरानी 

" नील " जगत अपनी गति चलता है छोंडों भी जाने दो 
गालिब रोये, तुलसी रोये, कौन सुना कबिरा - बानी 

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...