17/08/2016

" गजल "

हूँ मैं बन्जारा तो बन्जारा रहने दो ।
बुलाओ ना हमें आवारा रहने दो ।।

तुम्हारे बिन अकेला हूँ जहाँ में हमनसी मेरे,
ज़रा फ़र्माइए मुझसे के क्या हैं? आशियाँ तेरे ।
मेरी जानम बता दो मुझको न कुछ और कहने दो ।।

समन्दर ज़ोर से लहरें उठाता फेंकता बाहर,
किनारे रोंकते ,अंकुश लगाते आज सरहद पर ।
मेरे दुःख दर्द बस मेरे उन्हें अब मुझको सहने दो ।।

तुम्हारे बेवफा -अन्दाज़ को कैसे बयाँ कर दूँ,
तज़ुर्बा है नही मुझको तुम्हें कैसे नया कर दूँ ।
कहर सा ढ़ह रहा है आज इसको और ढ़हने दो ।।

चली थी तीर जिन आँखों से उन आँखों का आशिक हूँ,
हुई थी बात जो मुझसे उन्हीं बातों से वाकिफ़ हूँ ।
सजा लो ,आज पलकों पे मुझे बस प्यारा रहने दो ।।

हमेशा याद आती हैं घनी जुल्फों की वो छाया,
सदा ही संग चलती हैं तेरी परछाई बन साया ।
मैं भावों में अगर बहता हूँ तो भावों में बहने दो ।।

हूँ मैं बन्जारा तो बन्जारा रहने दो ।
बुलाओ ना मुझे आवारा रहने दो ।।

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...