24/10/2016

आतंकवादी

बहुत ही बेख़ौफ़ आँखें थी उसकी
जिसमें कभी ख़ौफ़ भरा था
बड़ी कातरता से देखती थी
बचपन में ,
दूसरे के हाँथो की रोटियाँ।
आग की लपट आती है
अब ,
उन्हीं आँखों से
जैसे ,सबकुछ जलाकर राख़ कर देंगी
वे आँखें,
जिनमें मुझे दिख रहा था
बारूद ,गोले और ज़लज़लों का
सैलाब।
कई यातनायें सह चुकी थी उसकी शरीर
बहुत सारे कष्ट उठा चुकी थी।

शायद ,
नहीं मिला हो उसे
माँ और बाबू जी का प्यार
किसी नें बचपन में ही पकड़ा दिया हो हथियार
सिखाया गया हो उन्हें शुरू से ही
मार - काट। 
भर दिया गया हो उसका दिमाग़
अनाप सनाप के सवालों से
बना दिया गया हो
उन्हें देश का दुश्मन
कइयों लालच दे देकर
जोड़ दी गई हों कई पाक़ चीज़ें ,
उन नापाक कार्यों में
जिसमें ईश्वर,अल्लाह जन्नत और नर्क
जैसी लुभावनी बातें हों।
जोड़ दी गई होंगी बातें हिन्दू और मुस्लिम वाद की
विरोध की ,
प्रतिशोध की ,
भरे गये होंगे कान एक - दूसरे के प्रति
तबाही के प्रति , उसकी बर्बादी के प्रति ,

उनके आकाओं नें
नही सिखाया होगा उन्हें साम्यवाद का ज्ञान ,
नही पढ़ाई होगी उन्हें गीता ,
नही पढ़ाया गया होगा उन्हें कुरान।
पकड़ा दिये होंगे उन्हें
A.K 47 जैसा रिवाल्वर
भरी होंगी गोलियाँ
बम बारूदों कट्टों और मशीनगनों से शांति फैला देते हैं पूरे शहर में।
बर्बाद हो जाता है पूरा का पूरा शहर
तबाह हो जाता है पूरा मंज़र
तड़तड़ाती निकलती हैं गोलियाँ
सीनों को भेदने के लिये ,
उन्हीं गरीब ,सताये ,तड़पाये और
पीड़ितों की बन्दूकों से।
जिनकी बचपन में छिन जाती है आज़ादी ,
उन्हें ही बाद में हम कहते हैं आतंकवादी।।

18/10/2016

न्याय के विरूद्ध

टूट जाती है उसकी कमर
गिर जाती है
गिड़गिड़ाते ,
भागते ,
रेंगते
हुए
किसी अदालत की चौखट पे
उन चिंथे हुए
कपड़ों में ,
जिनमें दिख रही है
उसकी पूरी की पूरी
नंगी शरीर ,
जिसे लोग
बड़ी ही उत्सुकता से देखते हैं।

खटखटाती है अदालत का दरवाजा
और
कुछ बिन खटखटाये ही
तोड़ देती हैं दम।

सुनी जाती हैं बातें
दोनों पक्षों की
पर उधेड़ी जाती हैं
बची - खुची चमड़ियां
कुछ पैसों से
दबे हुए
वकीलों के अनैतिक सवालों से
ऐसे न्याय से ,
जिसे मैं स्पष्ट और शुद्ध लिखता हूँ।
इसीलिए ऐसे न्याय के विरूद्ध लिखता हूँ।।

16/10/2016

कविता बीमार पड़ी

कविताओं की आपाधापी में
कविता बीमार पड़ी।
पूरी सत्ता लचर गई है
कलम आज बेकार पड़ी।।

बेटे जन्म दिये सुख काटी
अपनी सारी खुशियाँ बाँटी
आज हुई वो बुढ़िया जैसे ,
खटिया पे लाचार पड़ी।।

ठण्डी से वह ठिठुर गई थी
सिमटी थी ,वो बटुर गई थी।
तन पे लत्ता एक नही था ,
उसे सर्द की मार पड़ी।।

सरहद पे हैं चली गोलियाँ
खाली कर दी,भरी झोलियाँ।
देख सकी न हिन्दू,मुस्लिम
दिल पे गोली चार पड़ी।।

सारे कपड़े चीर दिये थे
चोट बहुत गम्भीर दिये थे।
ऐसा हश्र किये हैं उसका,
मृत आधी बेदार पड़ी।।

लाल सायरन बजा रहे हैं
नीली बत्ती जला रहे हैं।
नंगी लाश मिली है मुझको
जो थी गंगा-पार पड़ी।।

कब तक आखिर लड़े लड़ाई
कब तक ऐसी करें पढ़ाई।
मुझको रास नही आती है
औंधे मुँह सरकार पड़ी।।


13/10/2016

चलो फिर युद्ध करते हैं

चलो फिर युद्ध करते हैं।

धरा की टूटती है नब्ज ,
इसको शुद्ध करते हैं।।

शजर की छाँव में भी
धूप सी है
यहाँ भीतर छुपी बन्दूक
सी है
 यहाँ कब तक उठाएँगे
शहीदों की चिताएँ
चलो अब साथ एटम बम
बनाएँ
लहू वीरों का अपने
बह रहा है
हमारा पुण्य भारत-वर्ष
हमसे कह रहा है
चलो फिर से उठाते
आज गोले
चलो बन जाएँ हम
बारूद , शोले
यहाँ जो शांत से हैं दिख रहे ,
उन्हें फिर क्रुद्ध करते हैं।

हमारी पीठ पे खन्जर
दिये जो
हमारा घर , शहर बन्जर
किये जो
चलो हम आज फिर
उनको बुलाएँ
नही , उनके यहाँ
उनको सुलाएँ
यहाँ रोते , बिलखते
चीखते सब
यहाँ पाषाण , मृत से
दीखते सब
चलो चूड़ी उतारो
हाँथ में हथियार लो
कि सारा प्यार त्यागो
इक नया अवतार लो
बहुत वो हँस लिए हैं  ,
उन्हें अब क्षुब्ध करते हैं।।

चलो फिर युद्ध करते हैं।

10/10/2016

मजदूर

हर शहर में हर गली में
बोझ जो ढोता रहा।
वो ख़ुशी न देख पाया
बीज जो बोता रहा।।

बीज बोया की निराई
की पसीने से सिंचाई ,
बस फसल इक वो न पाया
खेत जो जोता रहा।।

तुम चलो तुमको दिखाते हैं
बड़ों की बिल्डिगों में।
वो अभी भी हो रहा है
जो कभी होता रहा।।

जिन गरीबों के पसीने
से चमकते घर यहाँ।
वो खुशी से झूमते हैं
वो सदा रोता रहा।।

हाँथ में कुल्हाड़ियाँ हों
हों हथौड़े साथ जब
ख़्वाब सारे मर गये थे
वो नही खोता रहा।।

व्यर्थ की संभावनाओं में-
बड़ा मशगूल था।
वो कहाँ हीरे कमाया
जो लगा गोते रहा।।

रोज जाकर माँग लाता है
घरों घर घूम के।
थे नही कपड़े बदन पे
और वो धोता रहा।।

हर घड़ी हर वक़्त जो है
लक्ष्य भेदन पर अडिग।
सो रहे थे लोग जिस पल
वो नही सोता रहा।।
 

07/10/2016

चल चिरैय्या उड़ हम आज उस नीले गगन में 'गीत'

चल चिरैय्या उड़ हम आज  उस नीले गगन में

हों जहाँ हिन्दू न मुस्लिम ,
हो जहाँ न मौत का  भय
हो जहाँ न दोस्ती ,
न दुश्मनी ही हो किसी से
आज हम संकल्प लेते हैं चलेंगे उस चमन  में।

हो जहाँ न द्वेष कोई
न रहे अनुराग ही
वो जहाँ बम के धमाकों
की नहीं आवाज़ ही
आओ चलते हैं सुनहरे शान्त उस वातावरण में।

हों नही वादे किसी से
और न  टूट पाएँ ,
हों अकेले साथ तेरे
और ये  जीवन सजाएँ
हाँथ अब पकड़ो मेरा मुझको उड़ा लो उस पवन में।

हो नही दिन में अँधेरा
न रहे उजड़ा सबेरा
ले चलो  मुझको उड़ा के
हो  जहाँ परियों का डेरा
साथ तुम मेरे रहो उस दिव्य सूरज की किरण में।

चल चिरैय्या उड़ हम आज  उस नीले गगन में।।

तेरी परछाइयाँ जो हमसफ़र हैं

कहीं सजता हुआ कोई शहर है
समुन्दर में मचलती वो लहर है

लगा है  चित्त हिचकोले लगाने
तुम्हारी याद है या ये कहर  है

तुम्हारा  स्वप्न बन मैं  आ रहा हूँ
मेरे  जीवन बड़ा  लंबा सफ़र है

दबे  पैरों से रेतों पर  चली क्यों
मेरी जन्नत !अभी  तो  दोपहर है

नहीं अब घर बनाऊंगा स्वयं का
तुम्हारे दिल में जो मेरा बसर है

मेरे होंठों के मद्धम हैं दबे से
तुम्हारी उँगलियाँ हैं या अधर है

तेरी यादों के साये से घिरा हूँ
तड़पता मन मेरा शामो - सहर है

यहाँ जो कल्पनाएँ हो रही हैं
तुम्हारी ही दुआओं का असर है 

इधर तनहा ,अकेला हूँ सदा खुश
तेरी परछाइयाँ जो हमसफ़र हैं।।

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...