जिन्हें सपनों में न भुला पाए ,
उन्हें आखिर मैं भुलाऊँ कैसे ?
उनके इस बेवफाई के किस्से ,
भरी महफिल में सुनाऊँ कैसे ?
रहनुए बहुत आए ,गए और फरार हुए ,
जली बाती से ये दीपक मैं जलाऊँ कैसे ?
वैसे तो इधर भी कमी नहीं है कलियों की ,
फिर भी रेत में मैं फूल खिलाऊँ कैसे ?
बरसों के जख्म तन के भर रहे शायद ,
डाल अंगार उन्हें जख़्म बनाऊँ कैसे ?
कभी कविता, कभी गज़लें, कभी इन मिश्रों से ,
हूँ उनका नाम लिया, वरना बुलाऊँ कैसे ?
तेरी नादानी ने इस कदर कहर ढाया है ,
रात की नींद उड़ी सोऊँ, सुलाऊँ कैसे ?
तूने बीती हुई यादों का बोझ जो डाला,
तुम्ही बताओ इसका भार उठाऊँ कैसे ?
तेरी फिकर में कभी सहर, कभी शाम हुई ,
मैंने सोचा कि पूरी रात बिताऊँ कैसे ?
रात छोटी पड़ी भावों में तेरे मस्त रहा ,
तेरी पलकें न झुकी ,आँख हटाऊँ कैसे ?
सामने आता रहा भोला, फरेबी चेहरा,
तेरे चेहरे के मुखौटे को हटाऊँ कैसे ?
सोंचता हूँ के आज रात यहाँ पार करूँ,
पर तुम्हें छोड़ अकेले यहाँ जाऊँ कैसे ?
तेरा मक़सूद है शायद मुझे गिराने का ,
अम्दन पैर पे मैं वज्र चलाऊँ कैसे ?
जब दिल टूट कर बिखर गया श्मशान हुआ,
अब मैं प्यार, मुहब्बत को जताऊँ कैसे ?
क़यास आता रहा मित्र बना लूँ उनको ,
टूटे पत्ते को मैं टहनी से मिलाऊँ कैसे ?
उनकी फ़ितरत है कि वो एक पे नही टिकते ,
सागर में नाव मैं उतार, चलाऊँ कैसे ?
आज महबूब संग खिले - खिले नज़र आए ,
कितने महबूब हैं उनके ये बताऊँ कैसे ?
प्यार की अर्थियाँ कितनों की उठा दी उसने,
उनके इल्ज़ाम यूँ उँगली पे गिनाऊँ कैसे ?
कभी जो मेरे खुदा, मेरी दुआ होते थे,
आज भी हैं उन्हें आखिर मैं रुलाऊँ कैसे ?
उनकी आदत है भुलाने की, भुला दें हमको,
कुछ भी कहूँ मगर उनको भुलाऊँ कैसे ?
उन्हें आखिर मैं भुलाऊँ कैसे ?
उनके इस बेवफाई के किस्से ,
भरी महफिल में सुनाऊँ कैसे ?
रहनुए बहुत आए ,गए और फरार हुए ,
जली बाती से ये दीपक मैं जलाऊँ कैसे ?
वैसे तो इधर भी कमी नहीं है कलियों की ,
फिर भी रेत में मैं फूल खिलाऊँ कैसे ?
बरसों के जख्म तन के भर रहे शायद ,
डाल अंगार उन्हें जख़्म बनाऊँ कैसे ?
कभी कविता, कभी गज़लें, कभी इन मिश्रों से ,
हूँ उनका नाम लिया, वरना बुलाऊँ कैसे ?
तेरी नादानी ने इस कदर कहर ढाया है ,
रात की नींद उड़ी सोऊँ, सुलाऊँ कैसे ?
तूने बीती हुई यादों का बोझ जो डाला,
तुम्ही बताओ इसका भार उठाऊँ कैसे ?
तेरी फिकर में कभी सहर, कभी शाम हुई ,
मैंने सोचा कि पूरी रात बिताऊँ कैसे ?
रात छोटी पड़ी भावों में तेरे मस्त रहा ,
तेरी पलकें न झुकी ,आँख हटाऊँ कैसे ?
सामने आता रहा भोला, फरेबी चेहरा,
तेरे चेहरे के मुखौटे को हटाऊँ कैसे ?
सोंचता हूँ के आज रात यहाँ पार करूँ,
पर तुम्हें छोड़ अकेले यहाँ जाऊँ कैसे ?
तेरा मक़सूद है शायद मुझे गिराने का ,
अम्दन पैर पे मैं वज्र चलाऊँ कैसे ?
जब दिल टूट कर बिखर गया श्मशान हुआ,
अब मैं प्यार, मुहब्बत को जताऊँ कैसे ?
क़यास आता रहा मित्र बना लूँ उनको ,
टूटे पत्ते को मैं टहनी से मिलाऊँ कैसे ?
उनकी फ़ितरत है कि वो एक पे नही टिकते ,
सागर में नाव मैं उतार, चलाऊँ कैसे ?
आज महबूब संग खिले - खिले नज़र आए ,
कितने महबूब हैं उनके ये बताऊँ कैसे ?
प्यार की अर्थियाँ कितनों की उठा दी उसने,
उनके इल्ज़ाम यूँ उँगली पे गिनाऊँ कैसे ?
कभी जो मेरे खुदा, मेरी दुआ होते थे,
आज भी हैं उन्हें आखिर मैं रुलाऊँ कैसे ?
उनकी आदत है भुलाने की, भुला दें हमको,
कुछ भी कहूँ मगर उनको भुलाऊँ कैसे ?