19/07/2019

उपनिषद के मंत्र जैसी है तुम्हारी भावना



उपनिषद के मंत्र जैसी है तुम्हारी भावना
तुम वहाँ पर थी जहाँ पर वेद की थी छाँव ना ।।

एक क्या चौसठ कलाओं में सदातन जो बही हो
आयतों में और तुम वैदिक ऋचाओं में रही हो
तुम महाकवि कालिदासी - काव्यों की नायिका सी
हो लता मंगेशकर जैसी अनूठी गायिका सी
हैं थिरकते पैर जैसे पार्वती का लास्य हो
और हँसनें की कला यूँ है लगे मधुमास हो

आज भी भाता तुम्हें अपना पुराना गाँव ना ।।

दर्शनों के गूढ भावों का अनोखा सार हो तुम
और भाषाओं का जीता जागता परिवार हो तुम
तुम नहीं अभिनेत्री पर क्या कहूँ अभिनीय हो
रूप, यौवन, ज्ञान, धन से सच अनिर्वचनीय हो
दूर कर अज्ञान तुम करती रही हो आवरण
ज्ञान देती हो, पढ़ाती प्यार का तुम व्याकरण

द्वैत को अद्वैत में बदला किया अलगाव ना ।।

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...