यादें कितनी खूबसूरत
होती हैं, मालूम है तुम्हें
तुम्हारी यादें कल बीजरूप में
पनपी और कविताएँ बनी
धीरे धीरे बढ़ी, बढ़ती गई
और इतना बढ़ गई
कि आज फसलरूपी पुस्तक
तुम्हारे सामने है
इसे उठाओ, पढ़ो
और देखो
मेरी नजरों से कितनी खूबसूरत दिखती हो
शायद वो खूबसूरती नहीं
दिखा पाए कोई भी दर्पण तुम्हें
तुम्हारी दी हुई कला
नहीं मालूम
मुझे कहाँ तक लेके जाएगी
लेकिन हाँ अभी तक जो भी पाया हूँ
जहाँ भी हूँ सच बहुत खुश हूँ
जहाँ भी हूँ सच बहुत खुश हूँ