वो चुपचाप देखती मुझको मैं करता था नादानी
उसके भीतर खामोशी थी मेरे अन्दर शैतानी
हम सबके होते हैं सब मुझमें आकर बसते हैं क्या?
कुछ रिश्ते दिल के होते हैं कुछ होते हैं बेमानी
अब तक जितना भी देखा हूँ ये धरती, ये आँगन मैं
चमकी आँखें, देखी फसलें रंगों में धानी - धानी
सन्तों का चोला है बाकी मन की बातें जानो तो
ढोंग दिखावा संन्यासी का भीतर - भीतर अज्ञानी
अब बच्चों को फुर्सत कब है पढ़ने और पढ़ाने से
कैसे वो बातें जानेंगें जिनमें हैं राजा - रानी
कैसी दशा हुई है ? कैसा हाल हमारे भारत का ?
आँखों से आँसू रिसता है चेहरे प है हैरानी
" नील " जगत अपनी गति चलता है छोंडों भी जाने दो
गालिब रोये, तुलसी रोये, कौन सुना कबिरा - बानी