29/09/2016

'' विश्वविद्यालय ''

 मालवीय जी  के प्रति -
करते न खुद पर अभिमान अविरल माँ गंगा  समान
रखते  विचार देदीप्यमान इस  सूर्य कि किरणों  के समान।
छवि उनकी सुन्दर शीतवान गगनस्थित  इन्दु के समान
इस (विश्व )विद्यालय के सम्मान हम सब मिल करते हैं प्रणाम।
                              
                             विश्वविद्यालय

विश्वविद्यालय की गरिमा को आओ सभी प्रणाम करें ,
अपनी सारी शक्ति झोंक दें और इसी का नाम करें ,
अपना हम कर्त्तव्य निभाएँ काम सुबह और शाम करें ।।

जितना पाया इस मंदिर से सब कुछ धारण कर बैठा ,
विश्वनाथ की कृपा हुई जो कविताकारक बन बैठा ,
मालवीय जी के मन्दिर का आज नील गुणगान करे ।।

सदाचरण की पावन गंगा ज्ञानरूप में बहती हैं ,
कुछ देवी जैसी प्रतिमाएँ विद्यालय में रहती हैं ,
छात्र यहाँ के दक्ष सभी गुरुजन का नित सम्मान करें ।।

जिस विद्यालय के आँगन में शीतल वो रजनीचर हैं ,
उस विद्यालय के आँगन से निकले कई प्रभाकर हैं ,
आओ सब समवेत भाव में विद्यालय को धाम करें ।।

पर्यावरण सुगन्धित, सुमधुर, पुष्पयुक्त सब पुष्कर हैं ,
संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी की वाणी बहती निर्झर है ,
इसपे अगर आँच भी आए खुद को हम नीलाम करें ।।

सदा पल्लवित होती जाए और सघन हो जाए ये ,
गायन, वादन, नृत्य देखते धरा गगन हो जाए ये ,
बगिया की हो प्रभा मनोहर, मञ्जुल और ललाम करें ।।

मुख्यद्वार है दिव्य , भव्य उसकी सुंदरता क्या गाऊँ ,
इतनी ही बस चाह रही की इसी धरा पे फिर आऊँ ,
सदा चमकता रहे स्वर्ग ये कभी नही विश्राम करें ।।

मिलती रहे प्रेरणा हम सबको ऐसे विद्यालय से ,
जीवन लक्ष्य भेद दे कुछ आशीष मिले देवालय से ,
जीवन की रंगीन सुबह का इसी धरा पे शाम करें ।।

जितना आज चमकता है इससे भी प्रखर उजाला हो ,
कभी पन्त हों, हों कबीर, तुलसी हों कभी निराला हों ,
काव्य - सृजन में कभी न्यूनता न हो कुछ आयाम करें ।।

दिव्य यहाँ के कुलपति जी की सोंच सभी अब सज्जित हों ,
उच्च शिखर पर जाएँ सारे बच्चे आज चमत्कृत हों ,
आइंस्टीन कभी हों बच्चे, उनको कभी कलाम करें ।।

विश्वमंच की पृष्ठभूमि पे इसे सजाते जाएँगे ,
सप्तसिंधु के पर सदा इसका झंडा लहराएँगे ,
यह समग्र - जग लोहा माने ऐसा कुछ अन्जाम करें ।। 

28/09/2016

'' भारत माता ''

















इस जमाने में मुझे गम्भीर सी हुंकार देना ,
रूप देना , शौर्य देना ,इक नया अवतार देना।

मैं शहीदों सा  मरूं हो जश्न पूरे देश में ,
बोल दूँ जय हिन्द बस इसके लिए पल चार देना।।

हो नही अभिमान मुझको राष्ट्र पे मैं मर मिटूँ ,
गोलियाँ सीने पे खाऊं शक्ति सब साकार देना।।

वीरगति मैं प्राप्त होऊँ इस भयंकर युद्ध में ,
पुण्य भारतवर्ष का मुझको सदा संस्कार देना।।

माँगने पर यदि मिले न छीनकर मैं खा सकूँ ,
ज़ुल्म से लड़ता रहूँ ऐसे परम अधिकार देना।।

मैं झुका न हूँ , झुकूँ न चापलूसों की तरह ,
फिर नही इस देश को आशाभरी सरकार देना।।

हे मेरी माते ! मुझे रोको नही अब जंग से ,
एक बेटा मर गया तो दूसरे को प्यार देना।।

मैं बड़ा पापी हूँ , मैं हतभाग्य बंधन सख्त हूँ ,
युद्ध के मैदान में ही माँ मुझे उद्धार देना।।

शाखे - गुल पे बैठ के मैं भी इबादत कर सकूँ ,
हिन्द का बच्चा हूँ , हिंदुस्तान में घर द्वार देना।।

मैं अगर कर्तव्य - पथ से च्युत कभी हो जाऊँ तो ,
लेखनी मेरी !मेरे कविकर्म को धिक्कार देना।।

मैं यहाँ अभिमन्यु के सम हूँ अकेला भीड़ में
'' नील '' तुम इन कायरों को अब सुदृढ़ आधार देना।।

25/09/2016

'' आप और हम ''

मैं मन्दिर आता हूँ सिर्फ़ आपको देखने ,
झलक पाने ,हाँ झलक पाने ,
ताकि मैं सुकून से रह सकूँ।
अपनी ज़िन्दगी को खुशियों से सजा सकूं ,
अपनी इच्छाओं ,मनोकामनाओं ,अभिलाषाओं को
सुन्दरतम ढंग से आयामित कर सकूँ ,अपरिमित कर सकूँ ,
अजेय कर सकूँ ,
कि शुरू हो सके इस जीवन का सबसे अहम और महत्वपूर्ण पहलू ,
शुरू हो सके जीवन में वसंत का आना और
शरद का छाना ,
हों दोनों पूर्ण चाँद पे ,चाँद की शीतलता
महसूस करते हुए ,
तुम  मुझसे कहती हो कि कुछ कहो न
(और मैं कहता हूँ )
कि मैं तुमसे क्या कहूँ
कि मैं तुम्हें कितना चाहता, प्रेम करता हूँ
मैं जहाँ भी जाऊं ,जो भी सोचूं ,कुछ भी करूँ
रोऊँ ,हसूँ ,गाऊँ ,गुनगुनाऊँ या
अपनी रचना ,कविता ,कहानी में पिरोऊँ ,
मेरी रचना में ,मेरी दुनिया में, लफ्जों में,
शब्दों में ,अर्थों में और यथार्थों में बसी हैं तुम्हारी यादें
और तुम।
इसीलिए ,
और इसीलिए  सजाता रहता हूँ अपने ही
यादों ,ख्वाबों और ख़यालों के उन गुलदस्तों को ,
जिनमें परिवेष्टित ,आच्छादित सुगन्धित हैं
आपकी महक ,
                       '' आप और हम '' 

'' तुम्हारे प्यार की पहली निशानी याद आती है ''



             तुम्हारे हुश्न की दिलकश जवानी याद आती है ,
             कि अपनी वो अधूरी सी कहानी याद आती है।

            तुम्हारा सामने आते ही मेरे बोल ना पाना ,
            कि वो बातें तुम्हारी बेज़ुबानी याद आती हैं।।

           अदाओं से ,इशारों से ,वो मेरा कत्ल कर देना ,
           तुम्हारे इश्क पे मुझको रुवानी याद आती है।।

           तुम्हारे संग बिताये पल सजे हैं चित्त में मेरे ,
           मुझे अपनी वो पावन ज़िन्दगानी याद आती है।।

           तुम्हें वो देखना स्कूल में जब प्रार्थना होती ,
           कि वो बचपन कि कुछ यादें पुरानी याद आती हैं।।

           बड़ा भोला सा था उस वक़्त जब तुम सीख देती थी  ,
           किसी से प्राप्त वो शिक्षा - सयानी याद आती है।।

           तुम्हें जब भी कभी देखा मेरी बाँहों के घेरों में ,
           कि वंशीवट कि वो राधा दीवानी याद आती हैं।। 

           आज बैठे हुए यूँ ही तुम्हारी बात जो छेड़ी,
           तुम्हारे प्यार की पहली निशानी याद आती है।। 


                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            

24/09/2016

अजनबी थे ,अजनबी हैं ,अजनबी ही रह गये

अजनबी थे ,अजनबी हैं ,अजनबी ही रह गये
पास आए थे कभी जो अजनबी वो कह गये।

आज तक मेरे ह्रदय में वास करती हैं वही ,
किस समुन्दर की लहर में छोड़ हमको बह गये।

आज रोया हूँ बहुत आँखों से नदियाँ बह रही ,
जो दिए हैं जख़्म कि मलहम लगाते रह गये।

 इबादत कर रहे थे ज़िन्दगी बर्बाद हो ,
और हम उनकी इबादत को सजाते रह गये।

फिर तकल्लुफ़ है उन्हें आखिर ये कैसी बात है ,
दे रहे थे गालियाँ हम गालियों को सह गये।

इतना हूँ बेसब्र मैं यादों में इक जीवन लिखूँ ,
यूँ  हृदय में आए के बस वो हृदय में रह गये।

दिल समुन्दर, आँख दरिया हुश्न बेपरवाह था
वो लुटाते ही रहे मुझको लुटाते रह गये ।

सर्दियों में सड़क पर

जाड़ों के दिन थे ,
कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी ,
कुछ लोग जो अपनी गर्लफ्रेंडों के साथ
गलबँहिया करते ,आ जा  रहे थे
उसी मार्ग से ,
जिस मार्ग पे पड़ी थी एक औरत ,
जिसके तन पे मात्र एक लत्ता था ,
75 साल की बुढ़िया मेरी दादी की उम्र की
जो ठीक से अब चल भी नही पाती ,
कि जा सके वह उस अलाव के पास ,
जो उससे कुछ ही दूर पर जल रहा था।

और नही निकलती है उसके मुख से आवाज़
कि वह उनसे कह सके ,
कुछ पुराने ऊनी स्वेटर और कान ढकने के लिए
एक पुराने सॉल के लिए ,
जिससे ढक सके वह अपना शरीर
और बच सके सर्दी से ,
जो अपनी गर्लफ्रेंडों पे हज़ारों खर्च कर देते हैं
शायद बेवजह।

उन्हें 75 साल की  दादी नही दिखती
ठण्ड से काँपती ,थरथराती हुई।
नही सुन पाते हैं वो उसकी आवाज़ ,
नही देख पाते हैं वो उसके व्यथित - मन
की भावनाओं को ,
जो शायद देख लेते हैं ,
बिन दिखाए ही अपनी गर्लफ्रेंड की सारी
इच्छाओं को ,सुन लेते हैं उनकी अनकही आवाज़।
देखता हूँ ,सहम जाता हूँ और जब कभी
गुज़रता  हूँ लंका से,
याद आ जाती है उन सर्दियों में सड़क पर
पड़ी उस महिला की जिसकी सहायता मैं भी
नही कर पाया था तब ,
जब उसे आवश्यकता थी मेरे सहारे की।।

किसकी है औकात

किसकी है औकात यहाँ जो छूले मेरे झण्डे को ,
मेरे देश के इस प्रतीक लहराते हुए तिरंगे को।

देश में मेरे अब भी हैं ,जाबाज सिपाही सीमा पर ,
रेडक्लिफ तोड़ के जाकर खत्म करेंगें पाकी दंगे को।।

नहीं रहेगा पाक तुम्हारा मानचित्र के नक़्शे पर ,
थोड़ी अक्ल अगर हो समझो ,बंद करो इस धंधे को।। 

अब तक तो हम शान्त रहे अब कोप चढ़ रहा मस्तक पर ,
घर में घुस के मारेंगे यदि मारे हिन्द के बन्दे को।। 

बहुत हुई अब भाषणबाजी ,भाषणबाजी बंद करो ,
मोदी जी !अब बहुत हुआ छोड़ो भी इस हथकंडे को।। 

कद छोटा है ,उम्र बहुत कम फिर भी खून उबलता है ,
फिर से याद करा दूंगा मैं हिटलर जैसे बन्दे को।।

एक मेरी माँ रोयेगी ,दूजी के गोद में सोऊँगा ,
हँसते - हँसते चूमूँगा मैं उस फांसी के फंदे को।।

कोई तुम्हें हिला सकता क्या ?हिन्दुस्तान के वीरसपूत ,
मातृ - पितृ की शक्ति है ''ऐ नील '' तुम्हारे कंधे को।।

22/09/2016

सावन के पहले सोमवार में देखो छटा निराली है

सावन के पहले सोमवार में देखो छटा निराली है ,
भँवरे भी गुन-गुन गान करें बदरी भी काली - काली है।

पत्ते पर बारिश की बूँदें मोती जैसी प्रतीत होती ,
मन्दिर के बाहर काँवरियों कि भीड़ बड़ी मतवाली है।।

हजारों , लाखों की संख्या देवालय आज है शोर करे ,
बम-बम भोले और  महादेव का गुंजन चारो ओर करे ,
बारिश के रिम-झिम आने से मधुबन में हुई दिवाली है।।

पत्तों के सुन्दरपन को मेरा देख के चित्ताकर्षित है ,
विरहीजन थोड़ा कष्ट में हैं उनको ये भाव समर्पित है ,
ऐसी यह मञ्जुल - प्रकृति हृदय आकर्षित करने वाली है।।

संध्या में जुगनू ,तारों के जैसे चम-चम करते हैं ,
और यामिनी के कालों में हिमकर सदा निखरते हैं ,
मन में ऊहापोह मचा है संग में उनके आली है।।

अपने उन गीले - केशों से मुखमण्डल पे हैं वार किये ,
इस हृदय - पटल के भावों को उसने ही हैं झंकार दिये ,
 वो बारिश की बूंदों में मुझको संग भिगाने वाली हैं।। 

वो गोद में अपने सर - रख मेरे बालों को सहलाती हैं ,
अधरों से गालों को छूकर वह चित्त शून्य कर जाती हैं ,
वह तरुणी मेरे जीवन को इक राह दिखाने वाली है।।

उसकी आँखों की मदहोशी ने दिल को मेरे लूट लिया ,
आखिर मैं भी न रह पाया उसके दिल में फिर कूच किया ,
दिल पे पहरा जिसने डाला शायद भइया की साली है।।

इस कविता की अन्तिम पंक्तियाँ मैंने अपने एक मित्र ( भाई ) के लिए लिखी हैं ,
इस कविता की अन्तिम पंक्तियों से मेरा कोई सम्बन्ध नही।। 

'' कुछ शेर ''

ऐ एहतियात - ए - इश्क़ तुझसे नाखुश हूँ मैं।
खुश तो तब होता जब बर्बाद - ए - मंज़र होता।।

आवाज़ निकलती है तो संवाद आता है ,
हिन्दुस्तान जुबाँ पे आए तो आबाद आता है।
नमस्कार करने के लिए खड़े हो जाओ मित्रों !,
क्यों कि बड़ों की डाट बाद में पहले आशिर्वाद आता है।।

बड़ी शिद्दत से पूजा करूँगा तुम्हारी ,गर मुझपे रहमे - करम कर दो ,
हमेशा मस्तक रहेगा तुम्हारे चरणों में अगर मेरी झोली भर दो।
माना कि खुदगर्ज़ हूँ मैं ,फिर भी मेरे यार ,
मेरे मस्तिष्क के ज़र्रों - ज़र्रों में उसकी यादें भर दो।।

तेरी जुस्तजू में जिंदगी गुजार दूंगा मैं ,
तेरी यादों को सुबह - ए - शाम प्यार दूंगा मैं।
तुझे देखने का मुरीद हूँ, ऐ हमसफ़र !
तेरे लिए सारी दुनिया को ठोकर मार दूंगा मैं।।

तेरे लबों पे अधर को सजाना चाहता हूँ ,
दुनिया मुझे कुछ भी कहे पर तुझे पाना चाहता हूँ।
तुम्हारे हुश्न - ओ - इश्क पे कुर्बान हूँ मैं ,
तुम्हारी गली में फिर से अपनी दुनिया बसाना चाहता हूँ।।

 मैं ना ही स्वयं में होश चाहता हूँ ,
और ना ''कारवाँ - गाहे - दिलकश'' का अफसोस चाहता हूँ।
मैं तो बंजारा हूँ यारों मेरा क्या ? बस ,
ठहरने के लिए ''रुख़े आलमफरोज'' चाहता हूँ।।

रूह काँप जाती है जब तुम्हें भुलाने की कोशिश करता हूँ ,
सर फक्र से ऊपर उठता है जब सज़दे में लाने की साजिश करता हूँ।
मुतमइन से रियाज़ करता हूँ तुम्हारे मार्फत प्राप्त यादों का ,
कि तुम्हारे तासीरों से मैं तुम तक पहुंचने की कोशिश करता हूँ।।

उर्दू शब्दार्थ - १. कारवाँ - गाहे - दिलकश - काफिला ठहरने का सुन्दर स्थान।
                    २. रुख़े आलमफरोज - संसार को अपनी रोशनी से चमका देने वाला चेहरा।
                    ३.  एहतियात - ए - इश्क़ - सावधान,सतर्क इश्क़।
                    ४. मुतमइन -  आराम से।
                    ५.  मार्फत - द्वारा।
                    ६. तासीरों - गुणों। 
                    

 

'' कुछ मुक्तक ''

कविता न कहानी न कोई छन्द जानता हूँ ,
न शेर ,शायरी न रहना बन्द जानता हूँ।
रहता हूँ सींचता मैं उनको ही अनवरत ,
बागों के अपने फूल की सुगन्ध जानता हूँ।।

तेरी यादों के समन्दर में जब मैं डूब जाता हूँ ,
तेरे ख्वाबों में खोकर के मैं शायर खूब गाता हूँ।
मगर ऐ दिलनसी !सुन ले जब तू खुद को रुलाती है ,
मैं तेरे पास भी रहके स्वयं ही सूख जाता हूँ।।

तेरी नफरत को हसरत में बदल न दूँ तो तू कहना ,
तेरी उल्फत को चाहत में बदल न दूँ तो तू कहना।
मगर ऐ बेमुरौवत !सुन तू खुद पे कितना काबू पा ,
तुझे मैं अपने चरणों में झुका न दूँ तो तू कहना।।

तुम्हारे दुःख भरे जीवन को खुशियों से सजा दूँगा ,
दिए गर साथ तुम मेरा तुम्हें दुल्हन बना लूँगा।
समर्पण कर दिया जीवन तुम्हारे ही लिए मैंने ,
अगर तुम प्यार से कह दो तो शय्या भी सजा लूँगा।।

जिन्दगी स्वयं से घबराती है ,
जो चाहे वही कराती है।
मुझसे दूर जब वो जाती है ,
छाँह में धूप नजर आती है।।

बिदाई का समय था आँखे भरी हुई थी ,
सामान पैक करने में वो कहीं बिज़ी थी।
कोई चाहने वाला जा कमरे में रो रहा था ,
गाड़ी पे बैठते ही वो भी तो रो पड़ी थी।।

प्रेम ही अब घर है मेरा प्रेम ही अब द्वार है ,
प्रेम गर  मैं न करूँ जीवन को इस धिक्कार है।
प्रेम का भूखा हूँ मैं बस प्रेम को ही जनता हूँ ,
प्रेम के आगे न अपने आपको पहचानता हूँ।।

जी चाहता है कि खुद को सजा दूँ ,
फूलों से तेरे चरण को डुबा दूँ।
सूँघूँ उन्हें और बिछाऊँ मैं ओढूँ ,
माता के चरणों में जीवन लुटा दूँ।।

 

21/09/2016

'' गुफ़्तगू है के उनको चमन चाहिए ''

गुफ़्तगू है के उनको चमन चाहिए ,
दर ब दर उनको मेरा नमन चाहिए।

अश्क हैं न यहाँ आँख में थम रहे ,
हम गरीबों के तन पे कफ़न चाहिए।।

इब्तदा कब हुई , इन्तहा है कहाँ ,
अब भगीरथ में इक आचमन चाहिए।।

जो नही जानते इश्क़ में मर्शिया ,
मेरी गलियों में अब आगमन चाहिए।।

लूटना है मुझे प्यार से लूट लो ,
पर कटीले ,वो तिरछे नयन चाहिए।।

रोज़ कहते रहे इश्क़ कर लो मिया !
इश्क़ करने के ख़ातिर सनम चाहिए।।

वो हवस के पुजारी वहाँ हैं खड़े ,
चींथने के लिए इक बदन चाहिए।।

भस्म करना अगर हो उन्हें नारियों !
दिल में शोला , करों में अगन (अग्नि )चाहिए।।

मजलिसें चल रही हैं शहर दर शहर ,
अब मुझे इक शहर में अमन चाहिए।।

कई सालों रजिस्टर रहा मेज पे ,
तब समझ आया के उनको धन चाहिए।।

वो धरा पे रहेंगे नही इस कदर ,
हाँथ में आज स्टेटगन चाहिए।।

जीत लूँगा जहाँ ये अगर साथ दो ,
पर  कदम दर कदम पे , कदम चाहिए।।

ज़िन्दगी मौज़ में अब बहाओ मेरी ,
आज कुदरत की मुझको रहम चाहिए।।

19/09/2016

जब - जब याद करोगे पाओगे मुझे.......

जब - जब याद करोगे पाओगे मुझे
अपने लोगों में मेरी बात , सुनाओगे मुझे।

इक सपना हूँ मैं मेरा साथ अभी मत छोड़ो ,
अपनी दुनिया में अकेले रहे गाओगे मुझे।।

तेरी इक याद मुझे कर रही पागल ऐसे ,
बिखरूँगा के पहले ही सजाओगे मुझे।।

नही सिन्दूर तो,मेरे जिस्म का रुधिर भर लो ,
जब समझोगे मेरे भाव लगाओगे मुझे।।

मुझे जाने दो बहुत दूर के,जीवन कम है ,
वक़्त हूँ गुजरूँगा तुम क्या ? रोक पाओगे मुझे।।

आज मैं खुश हूँ कि तेरी याद में बंजारा हूँ ,
कल रोओगे तुम हर वक्त, न पाओगे मुझे।।

तेरी नादानी ने कुछ इस कदर किया मेरे संग ,
अभी पागल हूँ कल , शायर कह के बुलाओगे मुझे।।

नही हूँ मैं तुम्हारे पास....

तुम ,
         आते रहे हर रोज़ मेरे सपनों में ,
          उड़ती हुई चिड़िया ,
          तो कभी ,
          शरद की धूप सी ,
          जो हर रात डरा देती है मुझको ,
          कि जैसे ,
          कोई समेट लेना चाहता है तुम्हें ,
          और काट देना चाहता है तुम्हारे पर ,
          जिनसे छूना है तुम्हें ,
          आकाश।
          कि वो आकाश भी ,
          कर रहा है तुम्हारा इन्तज़ार ,
          जो हर रोज़ देखता है
          तुम्हारे सपने ,
          पर, भयावह
          जिससे उचट जाती है उसकी नींद
          और ,लिखता है कविता ,
          जिससे हर रोज़ बचा लेता है , तुम्हें
          पर देखना सतर्क रहना ,
          नही हूँ मैं तुम्हारे पास  .....

16/09/2016

'' जनसंख्या है , आबादी है ''

जनसंख्या है , आबादी है ,
लगता मुझको बर्बादी  है।

जिस देश में भूँखे लोग मरें ,
उस देश में क्या ? आजादी है।

जिस घर में चूल्हे जलें नहीं ,
उस घर बिटिया की शादी है।

घर जाते ही छपटा ले जो ,
वो मेरी बूढ़ी - दादी हैं।

प्रेमी हूँ मिलन करूँ कैसे ?
वो महलों की शहज़ादी हैं।

वो लोग मंच पे बैठे हैं ,
जो लोग पहनते खादी हैं।

भाषण देते वो माया पर ,
जिनका सिंहासन चांदी है।

उनसे मज़कूर भी क्या करना ?
जो केवल हिन्दूवादी हैं।

अंग्रेजी - सत्ता हिला दिए ,
वो वीर महात्मा गाँधी हैं।

उनसे हम आश लगाएं क्या ?
वो तो विदेश के आदी हैं।

ऐ '' नील '' नही वहशत कुछ भी ,
अब बातों की आजादी है।

' बच्चे हैं , उनको पलने दो '

बच्चे हैं , उनको पलने दो !

कब तक तुम कोख उजाड़ोगे ,
कब तक बच्चों को मरोगे !
जो साँचे में आ जाते हैं उनको तो अब तुम ढ़लने दो !!

कितने तो अभी अपाहिज़ हैं ,
वो बच्चे जो नाजायज़ हैं !
यदि बैशाखी पे चलते हैं तो शौक़ से उनको चलने दो !!

जिसको पाली हो प्रसव करो ,
न उसको अब तुम शव करो !
जो देख जलें मिथ्या बोलें उन लोगों को तुम जलने दो !!

जो हैं अनाथ न दुत्कारो ,
उनको संताप से न मारो !
यदि मचल गए हैं बालक सब तो खुलकर आज मचलने दो !!

बच्चों को हृदय लगाओ तुम ,
इक खुशी आप में तुम !
यह देख अगर सुलगे कोई तो उसको ज़रा सुलगने दो !!

07/09/2016

" वाहवाही नही चाहिए अब मुझे "

वाहवाही नही चाहिए अब मुझे ,
शहंशाही नही चाहिए अब मुझे

जो गरीबों के दुःख , दर्द समझे नही,
वो इलाही नही चाहिए अब मुझे

भूँख से ज़िंदगी सब तड़पती रहें ,
वो तबाही नही चाहिए अब मुझे

छोड़कर राह में भाग जाते हैं जो ,
व्यर्थ - राही नही चाहिए अब मुझे

ज़ुल्म जो भी करे अब सज़ा दो उसे ,
बेगुनाही नही चाहिए अब मुझे

हाँथ रखकर के गीता पे मिथ्या कहे ,
वो गवाही नही चाहिए अब मुझे

खून खौले न जिनका बलात्कारों पे ,
वो सिपाही नही चाहिए अब मुझे

जुल्म सहकर सदा शान्त बैठी रहे ,
वो सियाही नही चाहिए अब मुझे 

" अपने कौन हैं ? सभी पराए ।। "

अपने कौन हैं ? सभी पराए ।।

जब तक खुद का अर्थ नही है ,
सत्य है मिथ्या , व्यर्थ नही है ।
तब तक ये दुनिया ठुकराए ।।

रोया हूँ , प्रायः अपनों से ,
टूटा हूँ, बिखरे सपनों से ।
गैरों से क्या आश लगाएँ ?

ईश्वर शान से जीना चाहूँ ,
न अपमान मैं पीना चाहूँ ।
मुझसे ही क्यों द्वेष जताए ?

03/09/2016

" तुम्हारे ख्याल में "

जिन्हें सपनों में न भुला पाए ,
उन्हें आखिर मैं भुलाऊँ कैसे ?
उनके इस बेवफाई के किस्से ,
भरी महफिल में सुनाऊँ कैसे ?

रहनुए बहुत आए ,गए और फरार हुए ,
जली बाती से ये दीपक मैं जलाऊँ कैसे ?
वैसे तो इधर भी कमी नहीं है कलियों की ,
फिर भी रेत में मैं फूल खिलाऊँ कैसे ?

बरसों के जख्म तन के भर रहे शायद ,
डाल अंगार उन्हें जख़्म बनाऊँ कैसे ?
कभी कविता, कभी गज़लें, कभी इन मिश्रों से ,
हूँ उनका नाम लिया, वरना बुलाऊँ कैसे ?

तेरी नादानी ने इस कदर कहर ढाया है ,
रात की नींद उड़ी सोऊँ, सुलाऊँ कैसे ?
तूने बीती हुई यादों का बोझ जो डाला,
तुम्ही बताओ इसका भार उठाऊँ कैसे ?

तेरी फिकर में कभी सहर, कभी शाम हुई ,
मैंने सोचा कि पूरी रात बिताऊँ कैसे ?
रात छोटी पड़ी भावों में तेरे मस्त रहा ,
तेरी पलकें न झुकी ,आँख हटाऊँ कैसे ?

सामने आता रहा भोला, फरेबी चेहरा,
तेरे चेहरे के मुखौटे को हटाऊँ कैसे ?
सोंचता हूँ  के आज रात यहाँ पार करूँ,
पर तुम्हें छोड़ अकेले यहाँ जाऊँ कैसे ?

तेरा मक़सूद है शायद मुझे गिराने का ,
अम्दन पैर पे मैं वज्र चलाऊँ कैसे ?
जब दिल टूट कर बिखर गया श्मशान हुआ,
अब मैं प्यार, मुहब्बत को जताऊँ कैसे ?

क़यास आता रहा मित्र बना लूँ उनको ,
टूटे पत्ते को मैं टहनी से मिलाऊँ कैसे ?
उनकी फ़ितरत है कि वो एक पे नही टिकते ,
सागर में नाव मैं उतार, चलाऊँ कैसे ?

आज महबूब संग खिले - खिले नज़र आए ,
कितने महबूब हैं उनके ये बताऊँ कैसे ?
प्यार की अर्थियाँ कितनों की उठा दी उसने,
उनके इल्ज़ाम यूँ उँगली पे गिनाऊँ कैसे ?

कभी जो मेरे खुदा, मेरी दुआ होते थे,
आज भी हैं उन्हें आखिर मैं रुलाऊँ कैसे ?
उनकी आदत है भुलाने की, भुला दें हमको,
कुछ भी कहूँ मगर उनको भुलाऊँ कैसे ?

" फिजा में चमकते सितारे मिलेंगे "

फिजा में चमकते सितारे मिलेंगे ,
हमारे तुम्हारे इशारे मिलेंगे ।

भटक भी गये बीच मजधार में तो ,
कहीं न कहीं तो किनारे मिलेंगे ।।

अगर छद्म होगा न मन में तुम्हारे ,
तेरी राह पे पुष्प - न्यारे मिलेंगे ।।

नही सीखना तुम कभी द्वेष करना ,
जहाँ में तुम्हें लोग प्यारे मिलेंगे ।।

न हिन्दू, न मुस्लिम, न सिख इसाई ,
तुम्हें सर्वदा भाईचारे मिलेंगे ।।

जरा सा सम्हल के मगर पैर रखना ,
नही दर - बदर पे जुवारे मिलेंगे ।।

नहीं तर्जना , भर्त्सना तुम करो अब ,
चमकते हुए चाँद - तारे मिलेंगे ।।

निखरना अगर है तुम्हें सूर्य बनकर ,
जगत - ज्ञान जीवन में सारे मिलेंगे ।।

अगर इश्क में बेवफाई न होगी ,
तो शत्रु सदा तुमसे हारे मिलेंगे ।।

गली कूच में प्रेम के गीत गाओ ,
तुम्हारे हृदय को सहारे मिलेंगे ।।

मेरी दिलरुबा तुम जरा मुस्कुरा दो ,
तुम्हारी अदाओं के मारे मिलेंगे ।।

ये दिलकश जवानी , ये अल्हड़ कहानी ,
के चर्चे घरों में हमारे मिलेंगे ।।

" सूनापन "

सूनापन छाया है मुझमें, एक उदासी सी छाई ,
जीवन सारा वियोगमय है, देखो ऋतु वसन्त आई ।

मैं रोता हूँ, कमरे में इक, बैठ अकेला उनसे दूर ,
न समझें वेदना मेरी, कलियाँ हैं खुलकर मुस्काई  ।।

हृदय प्रकम्पित है, अन्तःस्थल में यह कैसा ऊहापोह ।
दारुण - हृदय रुदन करता है प्रकृति में हरियाली आई ।।

आज हुआ फिर से सम्वेदित फिर देखो मधुमास चढ़ा ।
जब - जब मैं मजबूर रहा, बस तब ही क्यों बारिश आई ?।।

बारिश की रिमझिम बूँदें तन पर पावक सी लगती हैं ।
आखिर फिर क्यों बरसे हैं ? तरुणी बन क्यूँ ली अँगड़ाई ?।।

ऊपर पूनम - चाँद सुशोभित, नीचे पवन सुगन्धित है ।
कई दिनों से दिखे नही तुम, पुनः तुम्हारी याद आई ।।

भ्रमरों का गुंजार श्रवणकर मन में टीस उभरती है ।
ये लो मैं जाने वाला हूँ और छलक कर वो आई ।।

02/09/2016

" पहले क्या थे ? आज हुए क्या ? "

क्या खोए ? क्या पाए सोंचो ?
पहले क्या थे ?आज हुए क्या ?
जो पहले समृद्ध कभी थे,
उनसे पूँछो आज हुए क्या ?

जीवन की सब गतिविधियों से,
गर्व हुआ करता था सबको ।
जिनके आश्रयदाता थे हम ,
उनसे पूँछो आज हुए क्या ?

कभी इसी पावन - धरती की,
इक हुंकार से जो डरते थे ।
ऐयासी में डूबे रहने से ,
पूँछो हम आज क्या हुए ?

देश में जिस स्त्री - जाति की,
लोग कभी पूजा करते थे ।
आज उन्हीं लोगों से पूँछो,
उनके साथ हैं आज हुए क्या ?

वल्लभ ,बोश ,और सिंह जैसे,
कितने वीर हुए धरती पर ।
कभी मर्द जो कहलाते थे ,
उनसे पूँछो आज हुए क्या ?

शिक्षक - शिक्षा से भारत ने,
विश्व - पताका लहराया था ।
आज उन्हीं शिक्षा - शिक्षक से,
पूँछो के हैं आज हुए क्या ?

जो तप, सन्ध्या - वन्दन आदि से,
ब्रह्मज्ञानी कहलाते थे ।
उसी देश के ब्रह्मज्ञों से पूँछो,
हैं, वो आज हुए क्या ?

जो अपने उत्तम कर्मों -
के द्वारा विश्व - पटल को जीते ।
आज उन्हीं की हम सन्तानों से,
पूँछो, हम आज हुए क्या ?

विश्वामित्र , कण्व के जैसे,
ऋषि - गण कभी हुआ करते थे ।
लोभ , मोह, माया में फंसकर,
उनसे पूँछो आज हुए क्या ?

संस्कृत, संस्कृति और सभ्यता,
के प्रतीक जो कहलाते थे ।
दूषित - वाणी, गन्दे पहनावे से,
पूँछो ! आज क्या हुए ?

" जब तक पावन मातृभूमि पर "

जब तक पावन मातृभूमि पे,
मुझ जैसे दीवाने होंगे ।
हृदय - गीत गाए जाएँगे,
गज़ल, गीत और गाने होंगे ।।1।।

कलियों पर भँवरे मड़राएँ,
वो पराग - दीवाने होंगे ।
प्रेम - विरह में जलते जाएँ,
कुछ ऐसे परवाने होंगे ।।2।।

तुम रोते हो इसके पीछे,
आखिर! कुछ अफसाने होंगे ।
जीवन मात्र चार - पल का है,
कष्टों को अपनाने होंगे ।।3।।

मित्रों से है जीवन सारा,
कार्य में हाँथ बटाने होंगे ।
बोझ नही होगा सर पे जब,
दुःखों से अन्जाने होंगे ।।4।।

दुल्हन आए कमरे में,
के पहले सेज सजाने होंगे ।
युग बदला तुम भी बदलो,
दुल्हन के पैर दबाने होंगे ।।5।।

जैसे ही युग अँगड़ाई ले,
गीत बदल कर गाने होंगे ।
ज़रा बताओ बातें अपनी,
किस्से नये पुराने होंगे ।।6।।

होंठों पे हो प्रेम की भाषा,
हृदय से हृदय मिलाने होंगे ।
दुश्मन भी आ गले मिले जब,
पुष्प-वृष्टि बरसाने होंगे ।।7।।

मित्र - मण्डली की बैठक में,
चाय - पान फिर पाने होंगे ।
कई दिनों के बाद मिलेंगे,
अपने नये जमाने होंगे ।।8।।

सारे गज़ल, गीत, छन्दों को,
जन - जन तक ले जाने होंगे ।
अन्धकार मिट जाए सारा,
ऐसे दीप जलाने होंगे ।।9।।

कलम तुम्हारी सारस्वत है,
तुमको छन्द बनाने होंगे ।
जहाँ - जहाँ तक 'नील' न पहुँचा,
वहाँ - वहाँ पहुँचाने होंगे ।।10।।

" सिने जगत और जनता "

आज के चलचित्र बत्तर और हैं अश्लील होते,
गड़ रहे हैं ये हृदय में जैसे कोई कील  होते ।

है प्रभावित आज की जनता हनी सिंह और सनी से,
एक के हैं वस्त्र छोटे, दूजे बाल नुकीले होते ।।1।।

भाव के गाने नही हैं और न वो भंगिमा ।
देखने को मिल रहे हैं ऐसे गाने शील होते ।।2।।

बस यही केवल नही इनके सदृश कितने वहाँ पे ।
तन दिखाते ,चिपकते हैं, दिखते हैं रंगीन होते ।।3।।

बिकनियों से स्तन छुपाए डांस करती फ्लोर पे वो ।
और लाखों, करोड़ों जन देखते हैं भील होके ।।4।।

न रहे वो शब्द, वो अल्फाज़, वो संवाद अब ।
दिख रहे हैं भाव सारे इस समय सड़्गीन होते ।।5।।

देखने को मिल रहा इन पिक्चरों से अब यही ।
जैसे कोई पुरुष - स्त्री करते नंगी सीन होते ।।6।।

वो समझती हैं परी खुद को, नही मालुम उन्हें ।
आज उनकी वजह से हैं अदालतों में दलील होते ।।7।।

आँख पे पर्दा पड़ा है इस नगर की रोशनी से ।
जिस्म का व्यापार है बस इसमें न कुछ फील होते ।।8।।

छोटे कपड़े देखकर हैं गिद्ध प्रायः लोग बनते ।
जिनके घर इज्जत लुटी है, उनके घर गमगीन होते ।।9।।

"खून की नदियाँ बहेंगी "

खून की नदियाँ बहेंगी घर तुम्हारे शोर होगा,
जिस्म के टुकड़े करेंगे, तांडव घनघोर होगा ।

भूल जाओ देश को ,न इस कदर वाणी निकालो,
राग न, कोई द्वेष न बस शोक ही चहुँओर होगा ।।1।।

जान भी न पाओगे के कौन मारा? कौन काटा ?
सोंच भी न पाओगे, तुम सोंचोगे कोई और होगा ।।2।।

युद्ध जब होगा भयंकर शस्त्र छोड़ेंगे सभी ।
देखने को तब मिलेगा कौन किसकी ओर होगा ?।।3।।

हिन्दु हैं हम और हिन्दोस्ताँ हमारी जान है ।
देशद्रोही प्राणियों का सिर, हमारा पैर होगा ।।4।।

हो चुकी हत्यायें निर्मम देश में इस, प्राणियों की ।
सोंचा छोड़ो गलतियाँ हैं कोई भटका चोर होगा ।।5।।

पुनः इन चिंगारियों को छेड़कर न आग देना ।
भूख से मर जाओगे और हाँथ न इक कौर होगा ।।6।।

क्रोध से तुम रक्तरंजित न करो ऐ पाकवासी ।
वरना !भारत माँ के चरणों में तेरा सिरमौर होगा ।।7।।

हों भले ही देश में अब कितने ही आतड़्कवादी ।
रात काटेंगे वहाँ पे, आर्यावर्त में भोर होगा ।।8।।

लाशों को दफ्नाओगे कैसे ? ओ पाकिस्तानियों ।
न जगह तेरे लिए है, न ही कोई ठौर होगा ।।9।।

हिन्दु का तात्पर्य केवल हिन्दुओं से है नही ।
मुख पे भारतवासियों के नाद अब पुरजोर होगा ।।10।।

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...