सावन के पहले सोमवार में देखो छटा निराली है ,
भँवरे भी गुन-गुन गान करें बदरी भी काली - काली है।
पत्ते पर बारिश की बूँदें मोती जैसी प्रतीत होती ,
मन्दिर के बाहर काँवरियों कि भीड़ बड़ी मतवाली है।।
हजारों , लाखों की संख्या देवालय आज है शोर करे ,
बम-बम भोले और महादेव का गुंजन चारो ओर करे ,
बारिश के रिम-झिम आने से मधुबन में हुई दिवाली है।।
पत्तों के सुन्दरपन को मेरा देख के चित्ताकर्षित है ,
विरहीजन थोड़ा कष्ट में हैं उनको ये भाव समर्पित है ,
ऐसी यह मञ्जुल - प्रकृति हृदय आकर्षित करने वाली है।।
संध्या में जुगनू ,तारों के जैसे चम-चम करते हैं ,
और यामिनी के कालों में हिमकर सदा निखरते हैं ,
मन में ऊहापोह मचा है संग में उनके आली है।।
अपने उन गीले - केशों से मुखमण्डल पे हैं वार किये ,
इस हृदय - पटल के भावों को उसने ही हैं झंकार दिये ,
वो बारिश की बूंदों में मुझको संग भिगाने वाली हैं।।
वो गोद में अपने सर - रख मेरे बालों को सहलाती हैं ,
अधरों से गालों को छूकर वह चित्त शून्य कर जाती हैं ,
वह तरुणी मेरे जीवन को इक राह दिखाने वाली है।।
उसकी आँखों की मदहोशी ने दिल को मेरे लूट लिया ,
आखिर मैं भी न रह पाया उसके दिल में फिर कूच किया ,
दिल पे पहरा जिसने डाला शायद भइया की साली है।।
इस कविता की अन्तिम पंक्तियाँ मैंने अपने एक मित्र ( भाई ) के लिए लिखी हैं ,
इस कविता की अन्तिम पंक्तियों से मेरा कोई सम्बन्ध नही।।
भँवरे भी गुन-गुन गान करें बदरी भी काली - काली है।
पत्ते पर बारिश की बूँदें मोती जैसी प्रतीत होती ,
मन्दिर के बाहर काँवरियों कि भीड़ बड़ी मतवाली है।।
हजारों , लाखों की संख्या देवालय आज है शोर करे ,
बम-बम भोले और महादेव का गुंजन चारो ओर करे ,
बारिश के रिम-झिम आने से मधुबन में हुई दिवाली है।।
पत्तों के सुन्दरपन को मेरा देख के चित्ताकर्षित है ,
विरहीजन थोड़ा कष्ट में हैं उनको ये भाव समर्पित है ,
ऐसी यह मञ्जुल - प्रकृति हृदय आकर्षित करने वाली है।।
संध्या में जुगनू ,तारों के जैसे चम-चम करते हैं ,
और यामिनी के कालों में हिमकर सदा निखरते हैं ,
मन में ऊहापोह मचा है संग में उनके आली है।।
अपने उन गीले - केशों से मुखमण्डल पे हैं वार किये ,
इस हृदय - पटल के भावों को उसने ही हैं झंकार दिये ,
वो बारिश की बूंदों में मुझको संग भिगाने वाली हैं।।
वो गोद में अपने सर - रख मेरे बालों को सहलाती हैं ,
अधरों से गालों को छूकर वह चित्त शून्य कर जाती हैं ,
वह तरुणी मेरे जीवन को इक राह दिखाने वाली है।।
उसकी आँखों की मदहोशी ने दिल को मेरे लूट लिया ,
आखिर मैं भी न रह पाया उसके दिल में फिर कूच किया ,
दिल पे पहरा जिसने डाला शायद भइया की साली है।।
इस कविता की अन्तिम पंक्तियाँ मैंने अपने एक मित्र ( भाई ) के लिए लिखी हैं ,
इस कविता की अन्तिम पंक्तियों से मेरा कोई सम्बन्ध नही।।
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