17/12/2016

फल

खा लिया है सूखी रोटियाँ
नमक और मिर्च की चटनी के साथ
चल दिया है अपने खेतों की ओर
दाएँ कंधे पर फावड़ा और
बाएँ पर रख एक मटमैला गमछा
गाए जा रहा है,
उठ जाग मुसाफिर भोर भई
अब रैन कहाँ जो सोवत है ।।

बारहों मास बिन थकान
सुबह,दोपहर,शाम
करता रहता है काम ।

डटकर  लड़ता है गर्मियों की
लू से और सर्दियों के थपेड़ो से
कभी सूखा तो कभी
मूसलधार बारिश जैसे
दैवीय प्रकोप भी सहना पड़ता है उसे ।।

तनिक भी नही अखरता उसे
खेतों में काम करना ,
अपने पसीने से सींचते हैं खेत
जैसे एक माँ सींचती है स्तनों से
अपने बच्चों का पेट ।।

भरसक करते हैं मेहनत,
खेत को उर्वरा बनाने के लिए
बीज बोने के लिए
फसल की अच्छी पैदावार के लिए ...

कर्म करते - करते निकल जाते हैं
सालो साल
खोलते ही आँख गर्त में दिखता
वर्तमान काल ।।

सूख गए हैं आँसू आँखों में ही
उधड़ गई हैं चमड़ियाँ काम करते - करते
झुक गए हैं कंधे दुनिया के बोझ से
गरबीली गरीबी से आँखों में भरा डर
रस्सी से लटका देता है उनका सर
और यही फल है इन शासनों में
रस्सी से लटकता हुआ किसान .........

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देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...