29/07/2019

गिरी है "नील" वो शबनम कहीं पर


युँ ही लगता नहीं है मन कहीं पर 
दिखें जब तक नहीं हमदम कहीं पर

है भीतर शोर,  ख़ामोशी है बाहर 
हुआ कैसा ये स्पन्दन कहीं पर 

दरिन्दे देश में बढ़ने लगे हैं  
बचाती बेटियाँ दामन कहीं पर 

दिखे दोनों नहीं इक साथ मुझको 
कहीं विद्या दिखी तो धन कहीं पर 

चढ़ी है मुफलिसी सर पर हमारे 
लगे अच्छा नहीं मौसम कहीं पर

कभी दिखते नहीं ख़ालिक बनें हैं 
बढ़े हैं खूब अब रावण कहीं पर 

सुबह से रो रहा मासूम बच्चा 
कहीं सूना पड़ा आँगन कहीं पर 

बिरहमन फूटकर रोते मिले हैं 
मुझे ऐसा दिख़ा आलम कहीं पर 

अजब उलझन मची भीतर हमारे 
कहीं पर तन हमारा, मन कहीं पर 

जिसे हम रात-दिन सोचा किये हैं 
गिरी है "नील" वो शबनम कहीं पर 

21/07/2019

आखिर जब तुम ही न होगे कैसा होगा ये जीवन



आखिर जब तुम ही न होगे कैसा होगा ये जीवन 
ना तुम होगी, ना हम होंगे, ना होंगे ये घर - आँगन ।।

क्या होंगे प्रासाद भवन सब तेरे आगे फीके हैं 
तुझको, तुझसे ज्यादा चाहें बस इतना ही सीखे हैं 
कितने बादल घेरे - घुमड़े तुम पर असर नहीं होता 
बरषा जैसी बरसी मुझपर मुझ बिन बसर नहीं होता 

ऐसे पल - पल बीत रहे हैं तुम बिन तड़पेगे सावन ।

उन अधरों पर गजल , गीत आखिर कैसे लिख पाऊँगा 
दूर रहोगे मुझसे ही गर कैसे साथ निभाऊँगा 
तुम ही बोलो मधुर - मिलन उन बातों का फिर क्या होगा 
तुम ही बोलो अन्तहीन उन रातों का फिर क्या होगा 

सब श्रृंगार उतर जाएँगें टूट चुका होगा दर्पण ।

शब्दों की माला पहनाऊँ भावों से श्रृंगार करूँ 
तुमसे पहले महक तुम्हारी आये इतना प्यार करूँ 
कोरा - जीवन हो जाएगा औरों में बंट जाएगा 
यद्यपि इन अवसादों में भी ये जीवन कट जाएगा

महज़ वेदनाएँ भर होंगी और रहेगा पागलपन ।

जहाँ - जहाँ हम बाग - बगीचों में जा बैठा करते थे 
कलरव करते आते पंक्षी विषय अनूठा करते थे 
सारे भाव उपस्थित होते आलम्बन , उद्दीपन के 
और जवानी के पर लग जाते थे उस पल सावन के 

कोयल जब भी कूँक उठाएँगी मन में होगी उलझन ।

आखिर जब तुम ही न होगे कैसा होगा ये जीवन 
ना तुम होगी, ना हम होंगे, ना होंगे ये घर - आँगन ।।

रात की काली चदरिया ओढ़कर हम चल दिये


रात की काली चदरिया ओढ़कर हम चल दिये 
मेरी दुनिया, मेरे मञ्जर, मेरे अपने हल दिये 

कुछ घड़ी, कुछ पल बिता सकता था मैं भी साथ पर 
जिस वख़त प्यासा रहा मैं उस वख़त न जल दिये 

और अब किससे गिले - शिकवे करूँ मैं उम्रभर 
वो डुबाए बीच में बोलो कहाँ साहिल दिये 

जिनसे आशाएँ बहुत थी, थे बहुत सपने सजे 
जिन्दगी दुश्वार करके वो मुझे दलदल दिये 

आँख मेरी अब खुली है जब तमाशा बन गया 
मेरे घर मुझको नही रखे, मुझे जंगल दिये 

जिनको मैं देखा नहीं जिनपे ये नज़रें न गई 
जिनको अपना मैं न समझा बस वही सम्बल दिये 

19/07/2019

उपनिषद के मंत्र जैसी है तुम्हारी भावना



उपनिषद के मंत्र जैसी है तुम्हारी भावना
तुम वहाँ पर थी जहाँ पर वेद की थी छाँव ना ।।

एक क्या चौसठ कलाओं में सदातन जो बही हो
आयतों में और तुम वैदिक ऋचाओं में रही हो
तुम महाकवि कालिदासी - काव्यों की नायिका सी
हो लता मंगेशकर जैसी अनूठी गायिका सी
हैं थिरकते पैर जैसे पार्वती का लास्य हो
और हँसनें की कला यूँ है लगे मधुमास हो

आज भी भाता तुम्हें अपना पुराना गाँव ना ।।

दर्शनों के गूढ भावों का अनोखा सार हो तुम
और भाषाओं का जीता जागता परिवार हो तुम
तुम नहीं अभिनेत्री पर क्या कहूँ अभिनीय हो
रूप, यौवन, ज्ञान, धन से सच अनिर्वचनीय हो
दूर कर अज्ञान तुम करती रही हो आवरण
ज्ञान देती हो, पढ़ाती प्यार का तुम व्याकरण

द्वैत को अद्वैत में बदला किया अलगाव ना ।।

14/07/2019

" नील " मेरे ख़याल लोगे क्या


रंग मुझसे गुलाल लोगे क्या 
आश़िकी की मिसाल लोगे क्या 

इश़्क है ज़ीन में मेरे भीतर 
इश़्क बोलो निकाल लोगे क्या 

भागती है तो भाग जाने दो 
अपने सर पे बवाल लोगे क्या 

रात - दिन इंतज़ार करते हो 
खुद को ऐसे सम्हाल लोगे क्या 

छोड़ दो या कि साथ ही ले लो 
फैसला, एक साल लोगे क्या 

रोज इज्जत से चाय देते थे 
आज ना हालचाल लोगे क्या 

छोड़ दो बन्द भी करो ड्रामा 
न्याय में अब दलाल लोगे क्या 

और नजदीकियाँ बढ़ाते हो 
" नील " मेरे ख़याल लोगे क्या 

@नीलेन्द्र शुक्ल " नील "
#Poetrywithneel

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...