19/01/2017

तुम्हारी यादें

       1.
कल मुझे पढ़ोगी ,
रोओगी
भभकार मार -मार
जब मेरी कविताएँ
तुम्हारे हृदय को
उद्वेलित करेंगी ।

तुम्हें सम्बोधित करेंगी
बिन बनावटी - कविताएँ
मेरे प्रेम को
मुझे तुम्हारे सामने रख देंगी ।

मेरा स्वरूप तुम्हारी
आँखों के चारो तरफ
नाचेगा ,
और मैं तुम्हें
देखता रहूँगा
तब तक
कि जब तक
मेरी आँखें
अपने अन्तिम - क्षण तक
पलकें
बन्द न कर लें ।।
        2.
तुम्हारी यादें हैं
कि,
भीतर ही भीतर
पिराती हैं
जो अनिर्वचनीय
अकथनीय हैं ।
तुम्हारी यादों से
बनी कविताएँ
मुझे तुमसे मिलाती हैं ।।

तुम्हारी यादें ,
जो मुझे कविता करना सिखाती हैं,
स्थान देती हैं
उन लोगों के बीच बोलने का
साहस देती हैं
जो हमारे समय के बेहतरीन
कवियों में गिने जाते हैं ।।

तुम्हारी यादें,
जो बिन कुछ दिये
बिन कुछ कहे
अपना सर्वस्व - न्यौछावर
कर देती हैं
मुझे एक सच्चा - इंसान
बनाने में ।।

तुम्हारी यादें,
जो मुझे कर्तव्य - बोध
सिखाती हैं
उचितानुचित का ज्ञान
कराती रहती हैं समय - समय पर ।
तुम्हारे आदर्शों की
एक पोटली मिली है मुझे
जिसमें मैं बेहद - चाव से जीता हूँ ।।
          3.
तुम्हारी यादें,
जो माता - पिता में
ईश्वर का भान
कराती हैं
दिखाती हैं
उनके चरणों में
चारो धाम
श्रद्धा प्रकट
करती हैं बुजुर्गों के प्रति
आस्था उत्पन्न
करती हैं
उनके प्रति
जो समाज में
आस्था के पात्र हैं ।

तुम्हारी यादें,
जो रिस्तों की
बागडोर सम्भालने
में मददगार
साबित होती हैं
बड़े - चाव से
गूँथती हैं
मुझको माले में
और भी सुगन्धित - सुवासित
होने के लिए ।।
           4.
तुम्हारी यादें ,
जो सामाजिक बनाती हैं
मुझे,
ले जाकर खड़ा कर देती हैं
समाज के भीतर ।
सम्बल बनती हैं
कुरीतियों से लड़ने में
विरोध करने में
उन हर एक चीज़ों के
खिलाफ़,
जो गलत हैं ।

तुम्हारी यादें ,
जो सिर्फ़ प्यार ही नही
बगावत करना भी
सिखाती हैं ।
क्रांतिकारी
बनाती हैं
सिखाती हैं लड़ना
संघर्ष करना
तोड़ती हैं मेरे भीतर
के कायर को ।।

तुम्हारी यादें,
ना कि सिर्फ़ यादें हैं
तुम हो
जो हर कठिनाइयों में
साथ रहती हो मेरे
करती हो दृष्टि - विकसित
दूर - दराज़ की चीज़ों
को देखने में होता हूँ
समर्थ मैं ।।
           5.
और सच तो ये
कि ,
तुम्हारी यादें,
मुझे शून्य में
ले जाती हैं
इस समूचे कायनात में ।
मुझे जीना सिखाती हैं
अकेले
बिलकुल अकेले
कि जहाँ
मैं हूँ
तुम हो और
हैं तुम्हारी यादें  ।

तुम्हारी यादें,
आज कविता हैं
कल कहानी होंगी
परसों उपन्यास हो
सकती हैं ।
जो मुझे ले जाकर
खड़ा करेंगी ,
नदी उस पार
जहाँ मुझे देख
तुम खिल - खिलाकर
हँसोगी और मैं
मुस्कुराऊँगा
तुम्हें देख - देख ।।

Neelendra Shukla " Neel "

1.
Your heart will wrench
And you will cry inconsolably
When you will read my poems tomorrow.

My genuine poems
Will address you
And will bring forward my love and me to you.

I will dance as image
Around your eyes
And I will see you till last moment
Until my eyelids get closed.

2.
Your memories cause pain inside me
And it's inexplicable
Your memories result into poems
By which I meet you.

It's your memories
Which make me to compose poems
Gives me courage
To recite them
amoung the finest poets of our time.

It's your memories
Who without any word or deed,
Shower everything on me
To make me a noble human being.

Your memories make me to learn my duties
Taught me the righteous things, time to time
I got a bale full of your ideals,
In which I live very fondly.

3.
Your memories
Make me to feel
God in parents
Make me to see four abodes in their feet,
Your memories produce
Sense of reverence in me for aged peoples
And belief in those
Who are well believed in society.

Your memories
Help me to handle relationships
They entwine me very fondly in garland
So that I can be more fragrance full.

4.
Your memories make me social
Put me into society
Become my base to fight against abuses
Oppose against every things which are wrongful.

Your memories
Not only teach me love
But also to revolt
Make me revolutionary
Teach me to struggle
Slay coward inside me.


Your memories are not merely memories..
It's you, always with me
In every difficulty.
Make me wise, far sighted
By evolving my innerself.

5.
And the fact is that
Your memories take me to the start,
Make me to live in whole universes alone
Absolutely alone
Where no one is there but you and me
And your memories.

Your memories are poem today
Tomorrow would be stories
And day after tomorrow might be novels,
Those will take me to the other side of the river
Where you will laugh your heart out
And I will smile by looking at you.

TRANSLATED BY PRIYESH SHUKLA 

17/01/2017

आज से है जंग मेरी इस नियति के बाप से

फूटती चिंगारियाँ हैं जिस्म के किस ताप से
ये पसीना नम किया है या हुआ है भाप से
आज ये धधकी हुई आँखें चिता सी जल रही
जख़्म के इस दर्द से या रक्त हैं संताप से

बादलों से भाव घिरते छोड़ते हैं द्वारे - मन
कशमकश में हैं पड़े पापी हुए किस पाप से

पीठ की रंगत फ़कत है लालिमा ओढ़े हुए
हाँथ को भी कर रहा है वो गठीला आप से

देखना भी बन्द कर देंगें स्वयं परछाइयाँ
खत्म होता जा रहा जीवन नियति के शाप से

आज सारे धर्म का बस चाहता हूँ इल्म मैं
कौन ऐसा मंत्र बोलूँ मुक्त कर दूँ जाप से

है अभी क्या उम्र आखिर बेड़ियों में कश रहे
रोशनी थोड़ा जलाओ डर रहे हैं रात से

यूँ नही तुम माथ टेको यूँ नही पैरों गिरो
तुच्छ प्राणी हैं सभी कब सीखते हैं बात से

और यदि मासूमियत का ये भला - परिणाम है
आज से है जंग मेरी इस नियति के बाप से ।।

05/01/2017

गीत (ओ री सखि )

ओ री सखि तोसे नैना लड़े निसदिन ।
काटूँ दिन रात अपने घड़ी गिन - गिन ।।

ज्ञान ,विज्ञान तू तू ही धन सम्पदा
साथ तेरा रहे जो ,कहाँ विपदा
मेरा ज्ञान बढ़ाओ निज शरण में लाओ
दु:ख दूर करो खुशियाँ बरसाओ ।

ज्ञान तुम बरसाओ रिमझिम - रिमझिम ।।

जैसा भी हो चरम इक तू सच सब भरम
संग साथ चलूँ तेरे जन्मों - जनम
तोसे लागी लगन भूला सब हूँ मगन
एकचित हो तुम्हें याद करता ये मन ।

तेरी दूरी सताए हर पल - हर छिन ।।

जाऊँ मैं बलिहारी तेरे रूप पे वारि
पुष्प अर्पित करूँ बन मैं फुलवारी
तेरे सपने सजाऊँ ,तुम्हें अपना बनाऊँ
नित संग रहूँ तोसे प्रीति बढ़ाऊँ ।

मैं अधूरा हूँ ,हे कृष्ण !इक तेरे बिन ।।

04/01/2017

" गये बचपन से उनको आज देखे "

चलो अब हुश्न का महताब देखें
अधूरे ही सही पर ख्वाब देखें

बड़ी कमसिन अदाएँ वो दिखाई
मेरा निखरा हुआ अन्दाज़ देखें

गये दिन बीत उस आवारगी के
मनाएँ जश्न इक आगाज़ देखें

अभी जिंदादिली है खूब उनमें
मुकद्दर जोड़कर एहसास देखें

बड़ी ही खूबसूरत सी गज़ल हैं
सजा लूँ लब पे फिर आवाज देखें

जरा सा हाँथ पकड़े चल पड़े बस
संवरते भाव के अल्फाज़ देखें

फ़तह फर्माइसों की कर लिए हैं
समूचेपन का ये विश्वास देखें

मुकर्रर जिन्दगी आखिर कहाँ है
भरे मन से उन्हें हम आज़ देखे

यहाँ अट्टालिका पे साथ हैं हम
हमारे प्यार को आकाश देखे

कई दिन, दोपहर हैं साल बीते
गये बचपन से उनको आज देखे 

03/01/2017

यह धरा पूरी तुम्हारी इस धरा को जीत लो

है यहाँ रहना तुम्हें तो गीत गाना सीख लो
ढाई आखर शब्द बोलो मुस्कुराना सीख लो

मैं नही कहता कि तुम परतंत्र हो निष्पन्द हो
किस कदर चलना तुम्हें जम्हूरियत से सीख लो

वो यहाँ जिस राह भेजें शान्त हो यूँ चल पड़ो
हाँथ में लेलो कटोरा और उनसे भीख लो

चल रहे हँथियार हों तो कष्ट तुम सहते रहो
जिन्दगी भर जख़्म खाओ दर्द हो जब चीख लो

चमड़ियाँ पहले भी उधड़ी आज भी आलम वही
थूँकने की चाह जब हो हाँथ में ही पीक लो

ख़त्म कर दे रूढ़ियाँ सब इस भरे संसार से
बुद्धि का कौशल दिखाओ साथ सारे मीत लो

और अब इंसानियत की है कहाँ कद्र-ए-हुज़ूर
बेड़ियाँ सब त्यागकर अब सर उठाना सीख लो

यह प्रकृति,यह भोग,वैभव शान्त यह वातावरण
यह धरा पूरी तुम्हारी इस धरा को जीत लो 

02/01/2017

राजसिंहासन पे अब मजदूर होने चाहिए

जिन्दगी के जख़्म सारे दूर होने चाहिए
जो इरादे नेक हों मंज़ूर होने चाहिए

राजधानी देश की रखे रहो दिल्ली मगर,
राजसिंहासन पे अब मजदूर होने चाहिए

कब तलक आखिर रखेंगें इस कदर इज्ज़ो -नियाज़
जुल्मियत की त्याग पे मज़कूर होने चाहिए

राष्ट्र यह उन्नति करे , हो राष्ट्र जन्नत की तरह
इस सियासत में सभी अब शूर होने चाहिए 

01/01/2017

गुब्बारे वाली बच्चियाँ

गुब्बारे वाली बच्चियाँ,
रोज़ दीखती हैं।
दिन - रात
विश्वविद्यालय के बाहर
लंका चौराहे पर ,
अपने भविष्य का निर्माण करती हुई ।

रोज़ दीखते हैं
उनके पवित्र हाँथों में गुब्बारे,
जो शायद अपना अस्तित्व स्थापित कर चुके हैं
उनके पवित्र हाँथों में ।
जिनमें अभी भी कई सम्भावनाएँ बची हुई हैं ।

रोज़ दीखते हैं बच्चे कचरा
बीनने वाले,
हर रोज़ हाँथ - फैलाते हुए बच्चे
दीख जाते हैं सड़कों पर
दीखते हैं होटल ,रेस्ट्राँ में
काम करते हुए बच्चे
उसी विश्वविद्यालय के बाहर जहाँ
लगभग 50 हजार
विद्यार्थियों का भविष्य रचा जा रहा है
रचे जा रहे हैं ,
डाक्टर ,मास्टर ,इंजीनियर
रचे जा रहे हैं ,
गायक ,वादक ,नर्तक
रचे जा रहे हैं कवि ,रचे जा रहे हैं
आलोचक,
रची जा रही हैं ढेरो सारी कलाएँ
संस्कृति और सभ्यताएँ
रची जा रही है पूरी की पूरी एक पीढ़ी भावी भविष्य की ।

उन हाँथों को अभी भी ,
पकड़ाया जा सकता है
काॅपी कलम और पुस्तकें ,
पकड़ाई जा सकती है एक राह
जो उनकी सुनहली मन्जिल तक जाए ।

बचे हुए हैं दिन ,महीने ,साल
बची है उनकी पूरी जिन्दगी
बचे होंगे सपने
जो वो हर रोज़ देखती होंगी ,
किसी बच्चे को बैग टाँगे देख
बचा होगा एक सुनहला भविष्य
जिसका निर्माण होना अभी बाकी है
अभी बाकी है रात की काली स्याह चादर का हटना ,
एक सुनहली सुबह के लिए ।

मालवीय जी ,
हर दिन - हर रात ,
रक्त होते होंगे लज्जा से
इन बच्चियों के हाँथों में गुब्बारे देखकर ।
शर्मिन्दगी से हर रोज़ अपना चेहरा
छुपाते होंगे ,
इन बच्चों के सामने ।।


*Girls with Balloons*

Girls selling Balloons
are seen everyday
Day and night
In front of University
on Lanka square
shaping their future.

Everyday balloons can be seen
in girls sacred hands;
which perhaps have established
their existance
in those sacred hands,
in which lots of possibilities still there.

Everyday children are seen
picking rags,
children on roads can be seen
extending their palms for begging
chlid workers are seen
in hotels, restaurants;
outside same university
where future of about 50 thousands students is being shaped,
Doctors, Professors, Engineers are being created
Singers, Players, Dancers are being created,
Being created there are poets, critics, lot of arts,
culture and civilizations,
A whole new generation of future is being created there.

worksheets, pen and books
can be given to those hands
and a path could be shown to them
which can lead them to bright future.

Days, months, years are still remaining
remaining is their whole life,
perhaps remaining would be their dreams,
which they would be having on seeing any child carrying school bag,
left would be a bright future
which is yet to be shaped.
It is yet left for dark black sheet of night to be uncovered for a golden bright morning.

Malviya ji,
would be of red faced, embarrassed
to see balloons in the hands of those girls
He would be hiding his face in shame
in front of these children.

Written By Neelendra Shukla " Neel "
Translated By Priyesh Shukla

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ इन बच्चों के साथ आप सभी को ।।


रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...