07/10/2016

चल चिरैय्या उड़ हम आज उस नीले गगन में 'गीत'

चल चिरैय्या उड़ हम आज  उस नीले गगन में

हों जहाँ हिन्दू न मुस्लिम ,
हो जहाँ न मौत का  भय
हो जहाँ न दोस्ती ,
न दुश्मनी ही हो किसी से
आज हम संकल्प लेते हैं चलेंगे उस चमन  में।

हो जहाँ न द्वेष कोई
न रहे अनुराग ही
वो जहाँ बम के धमाकों
की नहीं आवाज़ ही
आओ चलते हैं सुनहरे शान्त उस वातावरण में।

हों नही वादे किसी से
और न  टूट पाएँ ,
हों अकेले साथ तेरे
और ये  जीवन सजाएँ
हाँथ अब पकड़ो मेरा मुझको उड़ा लो उस पवन में।

हो नही दिन में अँधेरा
न रहे उजड़ा सबेरा
ले चलो  मुझको उड़ा के
हो  जहाँ परियों का डेरा
साथ तुम मेरे रहो उस दिव्य सूरज की किरण में।

चल चिरैय्या उड़ हम आज  उस नीले गगन में।।

तेरी परछाइयाँ जो हमसफ़र हैं

कहीं सजता हुआ कोई शहर है
समुन्दर में मचलती वो लहर है

लगा है  चित्त हिचकोले लगाने
तुम्हारी याद है या ये कहर  है

तुम्हारा  स्वप्न बन मैं  आ रहा हूँ
मेरे  जीवन बड़ा  लंबा सफ़र है

दबे  पैरों से रेतों पर  चली क्यों
मेरी जन्नत !अभी  तो  दोपहर है

नहीं अब घर बनाऊंगा स्वयं का
तुम्हारे दिल में जो मेरा बसर है

मेरे होंठों के मद्धम हैं दबे से
तुम्हारी उँगलियाँ हैं या अधर है

तेरी यादों के साये से घिरा हूँ
तड़पता मन मेरा शामो - सहर है

यहाँ जो कल्पनाएँ हो रही हैं
तुम्हारी ही दुआओं का असर है 

इधर तनहा ,अकेला हूँ सदा खुश
तेरी परछाइयाँ जो हमसफ़र हैं।।

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