कहीं सजता हुआ कोई शहर है
समुन्दर में मचलती वो लहर है
लगा है चित्त हिचकोले लगाने
तुम्हारी याद है या ये कहर है
तुम्हारा स्वप्न बन मैं आ रहा हूँ
मेरे जीवन बड़ा लंबा सफ़र है
दबे पैरों से रेतों पर चली क्यों
मेरी जन्नत !अभी तो दोपहर है
नहीं अब घर बनाऊंगा स्वयं का
तुम्हारे दिल में जो मेरा बसर है
मेरे होंठों के मद्धम हैं दबे से
तुम्हारी उँगलियाँ हैं या अधर है
तेरी यादों के साये से घिरा हूँ
तड़पता मन मेरा शामो - सहर है
यहाँ जो कल्पनाएँ हो रही हैं
तुम्हारी ही दुआओं का असर है
इधर तनहा ,अकेला हूँ सदा खुश
तेरी परछाइयाँ जो हमसफ़र हैं।।
समुन्दर में मचलती वो लहर है
लगा है चित्त हिचकोले लगाने
तुम्हारी याद है या ये कहर है
तुम्हारा स्वप्न बन मैं आ रहा हूँ
मेरे जीवन बड़ा लंबा सफ़र है
दबे पैरों से रेतों पर चली क्यों
मेरी जन्नत !अभी तो दोपहर है
नहीं अब घर बनाऊंगा स्वयं का
तुम्हारे दिल में जो मेरा बसर है
मेरे होंठों के मद्धम हैं दबे से
तुम्हारी उँगलियाँ हैं या अधर है
तेरी यादों के साये से घिरा हूँ
तड़पता मन मेरा शामो - सहर है
यहाँ जो कल्पनाएँ हो रही हैं
तुम्हारी ही दुआओं का असर है
इधर तनहा ,अकेला हूँ सदा खुश
तेरी परछाइयाँ जो हमसफ़र हैं।।
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