11/10/2019

अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश



● अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश ●
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अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश

जिनसे थी उम्मीद उन्हीं लोगों से धोखा खाए
गैरों की क्या बात करें जब अपने हुए पराए 
आपस की तू - तू मैं - मैं में समय गुजारें सारा 
जूता तकिया, सड़क बिस्तरा, छत आकाश तुम्हारा 

हाथों में दारू की बोतल मुँह में भरा भदेस 
अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश

एक आदमी कैसे मदमाती सत्ता को तोड़े 
प्रश्न पूँछने को आतुर है, आते नहीं भगोड़े 
और मीडिया बाकी सारी खेल रही गोदी में 
देश हुआ है अन्धा बहरा नमो नमो मोदीमय 

आखिर कैसे बदलेगा इस भारत का परिवेश 
अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश

सब्जी लाना, बच्चे ढोना, पीएचडी का शोध 
प्रोफेसर साहब हैं बच्चा करना नहीं विरोध 
चर्चा का झाँसा देकर के, उसे ले गये साथ 
मन की बात जुबाँ तक आई, बोल दिये हर बात 

एक यही सच्चा रिश्ता था, यह भी रहा न शेष 
अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश

डालर बढ़ता जाए रुपया थरथर - थरथर काँपे 
और हमारे भगवन! देखें चौड़ी छाती नापें 
"फाॅदर ऑफ इंडिया" सुनकर देख रहे हैं ख्वाब 
उनको तेरी फिकर महज़, वो होंगे तेरे बाप 

रंग - बिरंगे कपड़े पहने दिखते हैं रंगरेज़ 
अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश

हिन्दू - मुस्लिम, गाय, अयोध्या इन्हीं विषय के छल से 
साम दाम से, दण्ड भेद से, कूटनीति के बल से 
लोगों की आँखों पर पट्टी बाँध किया है अन्धा 
पहले पूजा करता है, फिर करता गोरखधंधा 

हम भारत के रखवाले हैं, यहाँ यही संदेश 
अच्छे दिन बैठे परदेस दुर्दिन आए मेरे देश

 - नीलेन्द्र शुक्ल " नील "
 -  10/10/2019

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