01/09/2018

किसे अपना कहूँ कहूँ किसे पराया मैं


किसे अपना कहूँ कहूँ किसे पराया मैं
दूर वो ही रहे जिनको करीब पाया मैं

उन्हें पसन्द है लोगों से खेलना शायद
यही धोखा हुआ अपनों को ही अपनाया मैं

हृदय - दहक उठा है दिल में शोले फूटे हैं
किसी ने आग लगाई या खुद जलाया मैं

उसे मंजूर ही नही थी मुहब्बत मेरी
मैं ही पागल था जो यारों अलख जगाया मैं

मैंने चाहा कि चलो मार दूँ मैं भी ठोकर
गया शराब पी दौलत सभी लुटाया मैं

नशा कहाँ है उस शराब में जो उसमें है
खुद को भूला नही उसको कहाँ भुलाया मैं

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...