किसे अपना कहूँ कहूँ किसे पराया मैं
दूर वो ही रहे जिनको करीब पाया मैं
उन्हें पसन्द है लोगों से खेलना शायद
यही धोखा हुआ अपनों को ही अपनाया मैं
हृदय - दहक उठा है दिल में शोले फूटे हैं
किसी ने आग लगाई या खुद जलाया मैं
उसे मंजूर ही नही थी मुहब्बत मेरी
मैं ही पागल था जो यारों अलख जगाया मैं
मैंने चाहा कि चलो मार दूँ मैं भी ठोकर
गया शराब पी दौलत सभी लुटाया मैं
नशा कहाँ है उस शराब में जो उसमें है
खुद को भूला नही उसको कहाँ भुलाया मैं