वाहवाही नही चाहिए अब मुझे ,
शहंशाही नही चाहिए अब मुझे
जो गरीबों के दुःख , दर्द समझे नही,
वो इलाही नही चाहिए अब मुझे
भूँख से ज़िंदगी सब तड़पती रहें ,
वो तबाही नही चाहिए अब मुझे
छोड़कर राह में भाग जाते हैं जो ,
व्यर्थ - राही नही चाहिए अब मुझे
ज़ुल्म जो भी करे अब सज़ा दो उसे ,
बेगुनाही नही चाहिए अब मुझे
हाँथ रखकर के गीता पे मिथ्या कहे ,
वो गवाही नही चाहिए अब मुझे
खून खौले न जिनका बलात्कारों पे ,
वो सिपाही नही चाहिए अब मुझे
जुल्म सहकर सदा शान्त बैठी रहे ,
वो सियाही नही चाहिए अब मुझे
शहंशाही नही चाहिए अब मुझे
जो गरीबों के दुःख , दर्द समझे नही,
वो इलाही नही चाहिए अब मुझे
भूँख से ज़िंदगी सब तड़पती रहें ,
वो तबाही नही चाहिए अब मुझे
छोड़कर राह में भाग जाते हैं जो ,
व्यर्थ - राही नही चाहिए अब मुझे
ज़ुल्म जो भी करे अब सज़ा दो उसे ,
बेगुनाही नही चाहिए अब मुझे
हाँथ रखकर के गीता पे मिथ्या कहे ,
वो गवाही नही चाहिए अब मुझे
खून खौले न जिनका बलात्कारों पे ,
वो सिपाही नही चाहिए अब मुझे
जुल्म सहकर सदा शान्त बैठी रहे ,
वो सियाही नही चाहिए अब मुझे