08/09/2019

बेतहाशा रो रहे हैं आप में


जिन्दगानी बीतती है पाप में
बेतहाशा रो रहे हैं आप में

ज्ञान देते ही रहे अध्यात्म का
जीव, ईश्वर, वेद गीता आत्म का
बस पढ़े समझे नहीं संताप में

एक पत्थर को रगड़कर आ गये
खत्म करके,मन्त्र पढ़कर आ गये
खर्च होते जा रहे हैं जाप में

देखना क्या उस गुरु की साधना
हो नहीं जिसको तनिक सम्वेदना
देखना गुरुता किसी माँ - बाप में

आज भूखा हूँ बताया, रो पड़ी
दूर है माँ, दूर उसकी झोपड़ी
जल रहा हूँ मैं अभागा शाप में

भोर से अस्वस्थ हूँ, सरदर्द है
दूर उनका भ्रम हुआ खुदगर्ज है
शर उठाकर जो चढ़ाया चाप में

नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

06/09/2019

मुझे तुम छोड़ दोगी ये पता है



कभी कविता कभी हथियार जानाँ
हमीं से प्यार हमपे वार जानाँ

मुझे तुम छोड़ दोगी ये पता है
भले ही दिन लगें दो - चार जानाँ

खबर भी क्या पढ़ें आबो हवा की
बहुत झूठे लगें अखबार जानाँ

कही! क्या लिख रहे हो आजकल तुम ?
बहुत चुभते हैं ये अश्आर जानाँ

मुझे तुम छोड़ कर जब से गई हो
नहीं देखा कोई दरबार जानाँ

फ़कत खामोश लफ़्जों की बयानी
नहीं कुछ और मेरा प्यार जानाँ

बदलते लोग हैं हर रोज ऐसे
बदलती हो यहाँ सरकार जानाँ

नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

तू क्यों बाहर रहती है



साहब सुन लो अर्जी है
कुछ मेरी भी मर्जी है

खून, पसीना बेंचे हो
तब आई खुदगर्जी है

हाँ मेरे हालात ओ ग़म
तेरी खातिर फर्जी हैं

कपड़े में इतने रफ्फू
मुझसे अच्छे दर्जी हैं

सोचा था कुछ अच्छे हैं
सबके सब बेदर्दी हैं

तंगी घर है सालों से
सालों से माँ भर्ती है

छोटी निकली बेहूदी
जो मन आये करती है

अब तो मुझमें जीना सीख
अब्भी मुझपे मरती है

घर में दीप जलाएगी
बिटिया बाहर पढ़ती है

तेरे घर के बाहर हूँ
तू आने से डरती है

"नील" तुम्हारे अन्दर है
तू क्यों बाहर रहती है

नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...