10/10/2016

मजदूर

हर शहर में हर गली में
बोझ जो ढोता रहा।
वो ख़ुशी न देख पाया
बीज जो बोता रहा।।

बीज बोया की निराई
की पसीने से सिंचाई ,
बस फसल इक वो न पाया
खेत जो जोता रहा।।

तुम चलो तुमको दिखाते हैं
बड़ों की बिल्डिगों में।
वो अभी भी हो रहा है
जो कभी होता रहा।।

जिन गरीबों के पसीने
से चमकते घर यहाँ।
वो खुशी से झूमते हैं
वो सदा रोता रहा।।

हाँथ में कुल्हाड़ियाँ हों
हों हथौड़े साथ जब
ख़्वाब सारे मर गये थे
वो नही खोता रहा।।

व्यर्थ की संभावनाओं में-
बड़ा मशगूल था।
वो कहाँ हीरे कमाया
जो लगा गोते रहा।।

रोज जाकर माँग लाता है
घरों घर घूम के।
थे नही कपड़े बदन पे
और वो धोता रहा।।

हर घड़ी हर वक़्त जो है
लक्ष्य भेदन पर अडिग।
सो रहे थे लोग जिस पल
वो नही सोता रहा।।
 

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देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...