17/02/2019

मृगतृष्णा से सम्बन्ध न हो

Akanksha Ji
विश्वास रहे पर अंध न हो 
मृगतृष्णा से सम्बन्ध न हो 

जब प्रेम शाश्वत सत्य दिखे 
उस पर कोई प्रतिबन्ध न हो 

गतिशील बनाओ जीवन को 
उन्नति के पथ पर बढ़ो सदा 
इतना खुदपर विश्वास रहे 
जीवन में कोई द्वंद्व न हो 

जो ठान लिए वो कर गुजरें 
जीवन के लक्ष्य से न मुकरें 
माँ और पिता के शरण रहें 
आज़ाद रहें स्वच्छंद न हों 

तुम प्रेम लिखो सौ बार मगर 
सामाजिक - गतिविधियाँ भी हों 
भावों की हो परिपक्व - दशा 
कविता हो केवल छ्न्द न हो 

जो बीत गया वो जाने दो 
अपनों को गले लगाने दो 
जीवन में ऐसे कर्म करो 
खुश्बू हों, पर दुर्गन्ध न हो 

मुझपे वो चाल चले जायें 
हर बार मारने को आयें 
माता के भाई होने से -
मामा तो हों, पर कंस न हों 

कितने भी तुम विख्यात रहो 
कितना भी ज्ञान अथाह रखो 
जीवन को ऐसे सरल रखो 
जीवन में कोई दम्भ न हो 

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