Akanksha Ji |
विश्वास रहे पर अंध न हो
मृगतृष्णा से सम्बन्ध न हो
जब प्रेम शाश्वत सत्य दिखे
उस पर कोई प्रतिबन्ध न हो
गतिशील बनाओ जीवन को
उन्नति के पथ पर बढ़ो सदा
इतना खुदपर विश्वास रहे
जीवन में कोई द्वंद्व न हो
जो ठान लिए वो कर गुजरें
जीवन के लक्ष्य से न मुकरें
माँ और पिता के शरण रहें
आज़ाद रहें स्वच्छंद न हों
तुम प्रेम लिखो सौ बार मगर
सामाजिक - गतिविधियाँ भी हों
भावों की हो परिपक्व - दशा
कविता हो केवल छ्न्द न हो
जो बीत गया वो जाने दो
अपनों को गले लगाने दो
जीवन में ऐसे कर्म करो
खुश्बू हों, पर दुर्गन्ध न हो
मुझपे वो चाल चले जायें
हर बार मारने को आयें
माता के भाई होने से -
मामा तो हों, पर कंस न हों
कितने भी तुम विख्यात रहो
कितना भी ज्ञान अथाह रखो
जीवन को ऐसे सरल रखो
जीवन में कोई दम्भ न हो