11/09/2017

तू चली आ , तू चली आ , तू चली आ अब यहाँ ( गज़ल )

बस तुम्हारे लिए...........

मैं अधूरे ख़्वाब लेकर के बता जाऊँ कहाँ
तू चली आ , तू चली आ , तू चली आ अब यहाँ - 2

मैं कहूँ कैसे तुम्हारी आरज़ू हमको नही
चाहता हूँ मैं तुम्हें तुमसे बग़ावत है नही
किस कदर तुमसे कहूँ अपने दिलों की दास्ताँ ।। तू चली आ ....

छुप - छुपा कर देखता तुझको शज़र की छाँव में
डूब जाता हूँ मैं अक्सर उस शहर ,उस गाँव में
हैं तेरी यादें यहाँ करती मेरे मौसम जवाँ ।। तू चली आ ....

आज हो जैसे युँ ही रहना सदा तुम उम्रभर
ज़िन्दगी आसान होगी कट सकेगा ये सफर
साथ ग़र देती रही बनता रहेगा आशियाँ ।। तू चली आ ....

याद हैं मुझको तेरे चेहरे की वो ख़ामोशियाँ
तू सदा करती रही नज़रों से ही लफ़्ज़े - बयाँ
वो घड़ी , वो पल कटे कैसे हमारे दरमियाँ ऽऽऽ  ।। तू चली आ .....

भावनाओं की नदी में डूबकर हूँ सीखता
मैं घने - बादल तले अक्सर तेरे संग भीगता
यूँ गिराया ना करो ज़ुल्फों से काली बिजलियाँ ।।

तू चली आ , तू चली आ , तू चली आ अब यहाँ

मैं अधूरे ख़्वाब लेकर के बता जाऊँ कहाँ
तू चली आ , तू चली आ , तू चली आ अब यहाँ ।।

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...