21/07/2016

" इक्कीसवीं सदी और हम "

इक्कीसवीं सदी है और इतनी बन्दगी है,
खामोश है जमाना खामोश जिन्दगी है ।
सूखी हुई हैं आँखें न पेट मे निवाला,
अभियान चल रहे हैं और इतनी गन्दगी है ।।

कुछ लोग दूसरों के बढ़ने से जल रहे हैं,
कुछ लोग मुकद्दर को अपने बदल रहे हैं ।
रोते वही हैं प्रायः जो शान्त हो गये हैं,
जो रेस में लड़ते हैं वो ही सँभल रहे हैं ।।

विद्वान यहाँ बैठे सब मूर्ख भर गये हैं,
जो पढ़ना चाहते थे वो छात्र मर गये हैं ।
पढ़ना - पढ़ाना है नही, भौकाल बनाना है,
जिनके है पास पैसा बस वो सँवर गये हैं ।।

जीवन बड़ा अजीब मुसाफिर सा घूमता है ,
पागल हुआ प्रसन्न सदा मस्त झूमता है ।
न द्वेष भाव उसमें, न राग की है आशा,
जो जैसे चाहता है वो वैसे लूटता है ।।

कितनी सड़क पुरानी टूटी हुई पड़ी हैं,
जो नई बन रहीं हैं फूटी सी लग रही हैं ।
जिनपे थी जिम्मेदारी, पैसे ही खा गये वो,
हर बात अब बड़ों (नेताओं) की झूठी सी लग रही हैं ।।

हैं कई ऐसे लोग जिनके सर नही है छत,
कितने तो एक्सीडेन्ट में होते हैं छत - विछत ।
डूबी है जवानी नशे में उनको क्या खबर,
कितने गरीब सोते हैं सड़कों पे सदा मस्त ।।

" एक तरफ मेरी माँ है और एक तरफ है प्यार मेरा "

एक तरफ मेरी माँ है और एक तरफ है प्यार मेरा ।
दोनों मेरा जीवन हैं दोनों में ही संसार मेरा ।।

अवगाहन करता हूँ अपनी माँ से सुनी कहानी में,
उसको मैं प्रायः देखूँ राधा जैसी दीवानी में,
एक कहानी अकथनीय है दूजे से विस्तार मेरा ।।

पिता, भाइयों, बहनों में भी प्यार अजेय सा दिखता है,
निश्छल और निष्कपट प्यार न बाजारों में बिकता है,
गुरुजन मेरे ईश्वर हैं उनसे ही सारा सार मेरा ।।

जीवन भी मुश्किल घड़ियों में कठिन परीक्षा लेता है,
भौतिकता जो सीख लिया इच्छा पूरी कर लेता है,
द्वार और घर छोटा है पर प्यार भरा परिवार मेरा ।।

स्वार्थ और नि:स्वार्थ भाव के लोग बहुत से दिखते हैं,
लोग यहाँ ऐसे भी हैं जो कुछ पैसों में बिकते हैं,
मित्र बहुत उत्तम हैं मेरे जीवन है साकार मेरा ।।

बहन नही कहता मैं सबको और नही कहना चाहूँ,
पर इज्जत करता हूँ सबकी सबके संग रहना चाहूँ,
किसी के भावों से मैं खेलूँ ऐसा न व्यवहार मेरा ।।

देशप्रेम करना चाहें और देशप्रेम हम करते हैं,
मातृभूमि पे नतमस्तक हैं, मातृभूमि पे मरते हैं,
प्यार हमें करना आता न देशद्रोह व्यापार मेरा ।।

कितने राष्ट्रभक्त फौजी दंगों में मारे जाते हैं,
कितने सैनिक बेचारों के संघ जलाये जाते हैं,
चाहूँ मैं ऐसे भक्तों को नमन करें स्वीकार मेरा ।।

गंगा की अविरल धाराएँ काशी में जो बहती हैं,
कल - कल, छल - छल करती मेरे कानों मे कुछ कहती हैं,
उठो पुत्र ! ले जाओ जीवन का सर्वस्व श्रृंगार मेरा ।।

बहुत क्लिष्ट शब्दों से अपनी कविताएँ वो लिखते हैं,
जनमानस के बीच नही विद्वानों में वो दिखते हैं,
 भावों की कविता लिखता, न शब्दों का बाजार मेरा ।।

अभी आपका अनुज हूँ मैं और अभी अनुज ही रहने दो ,
प्यार से मैं जीवन जीता हूँ ,प्यारी बातें कहने दो,
अभी मञ्च पे आया हूँ यूँ करो न जय जयकार मेरा ।।

एक तरफ मेरी माँ है और एक तरफ है प्यार मेरा ।
दोनों मेरा जीवन हैं दोनों में ही संसार मेरा ।।


" मैं हिन्दुस्तान दिखाउँगा "

एक लफ्ज में बयाँ कर दिये
अपना सारा ज्ञान हैं ,
न तुम, न मैं, न ये दौलत
दो दिन के मेहमान हैं ।
अपनी छाती चौड़ी कर लो
डट जाओ अब सीमा पे ,
अमर शहीद भगत सिंह जैसे
कितने ही कुर्बान हैं ।।

देश हमारा टिका हुआ है
वीर सपूत के कन्धों पर ,
 होगा अत्याचार बराबर
लोफड़ और लफड़्गों पर ।
न होगी उनकी सुनवाई
सजा यहाँ की मौत है,
बम फोड़े गोला बरसायें
आतड़्की उन दड़्गो पर ।।

क्या कसाब , क्या अफजल ऐसे
कितने मारे जायेंगे ,
दाउद भी यदि बुरी दृष्टि से
देखे तो थर्रायेंगे ।
काँप उठती है रूह बदन की
शेर जहाँ चिल्लाते हैं
हिन्दुस्तान की धरती पे आतड़्की
मारे जाते हैं ।।

हिन्दू न , मुस्लिम हम न ही
सिख और ईसाई हैं,
भारत माँ के लाल हैं हम
हम सबकी दौलत माई है ।
हैं सपूत या हैं कपूत
हम सबसे प्यार जताती हैं ,
इसीलिए भारत माता
हम सबके हृदय समाती हैं ।।

बाइबिल क्या है ? धर्म ग्रन्थ क्या ?
तुझे कुरान पढ़ाउँगा ,
सन्ध्या, पूजा करना कैसे
वेद , पुरान सिखाउँगा ।
हम लोगों पर शक हो तो
बस एक बार संकेत करो ,
हृदय - चीर के एक - एक में
हिन्दुस्तान दिखाउँगा ।।
मैं हृदय - चीर के एक - एक में
हिन्दुस्तान दिखाउँगा ।।
           
                     "  जय हिन्द   "


रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...