11/09/2017

तू चली आ , तू चली आ , तू चली आ अब यहाँ ( गज़ल )

बस तुम्हारे लिए...........

मैं अधूरे ख़्वाब लेकर के बता जाऊँ कहाँ
तू चली आ , तू चली आ , तू चली आ अब यहाँ - 2

मैं कहूँ कैसे तुम्हारी आरज़ू हमको नही
चाहता हूँ मैं तुम्हें तुमसे बग़ावत है नही
किस कदर तुमसे कहूँ अपने दिलों की दास्ताँ ।। तू चली आ ....

छुप - छुपा कर देखता तुझको शज़र की छाँव में
डूब जाता हूँ मैं अक्सर उस शहर ,उस गाँव में
हैं तेरी यादें यहाँ करती मेरे मौसम जवाँ ।। तू चली आ ....

आज हो जैसे युँ ही रहना सदा तुम उम्रभर
ज़िन्दगी आसान होगी कट सकेगा ये सफर
साथ ग़र देती रही बनता रहेगा आशियाँ ।। तू चली आ ....

याद हैं मुझको तेरे चेहरे की वो ख़ामोशियाँ
तू सदा करती रही नज़रों से ही लफ़्ज़े - बयाँ
वो घड़ी , वो पल कटे कैसे हमारे दरमियाँ ऽऽऽ  ।। तू चली आ .....

भावनाओं की नदी में डूबकर हूँ सीखता
मैं घने - बादल तले अक्सर तेरे संग भीगता
यूँ गिराया ना करो ज़ुल्फों से काली बिजलियाँ ।।

तू चली आ , तू चली आ , तू चली आ अब यहाँ

मैं अधूरे ख़्वाब लेकर के बता जाऊँ कहाँ
तू चली आ , तू चली आ , तू चली आ अब यहाँ ।।

06/09/2017

कहीं चिराग जल गया शायद

Daughter $ Son
आज अनन्त चतुर्दशी और शिक्षक दिवस के अवसर पर बड़े भइया और भाभी को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई अतः समूचे घर में उल्लास का माहौल छाया हुआ है मुझे पूरा विश्वास है कि आज मेरे पिताजी की मूछें पहले से थोड़ी टाइट और छाती पहले से कुछ और चौड़ी होगी, भइया मन ही मन खुशी से झूम रहे होंगे कि जैसे झूमती हैं लहलहाती हरी फसलें खेतों में, भाभी जी आज अपार कष्ट के बाद एक अलौकिक सुख का अनुभव कर रही होंगी बाबा आजी ,दादा दादी, चाचा चाची और सभी भाइयों भाभियों सहित बहनों में एक खुशी की लहर दौड़ रही होगी मैं बाहर (केरल) हूँ पर मुझे मालूम इस समय मेरे घर का माहौल कैसा होगा -

(मैं यहाँ बाहर हूँ पर मुझको पता है सब यहाँ
किस कदर छाया हुआ होगा मेरे घर कारवाँ )
                           नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

कहीं पे फूल खिल गया शायद
कहीं गुलशन महक उठा शायद

मेरे पापा ख़ुशी से झूम उठे ,
कहीं चिराग जल गया शायद

जिसे थे खोजते हम रात के अंधेरों में
आज घर चाँद आ गया शायद

कई दिन बीत गए इन्तज़ार में जिसके
वही मेहमान आ गया शायद ।।

मेरे पापा = बच्चे के बाबा जी ( दादा जी )
                  

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...