कभी कविता कभी हथियार जानाँ
हमीं से प्यार हमपे वार जानाँ
मुझे तुम छोड़ दोगी ये पता है
भले ही दिन लगें दो - चार जानाँ
खबर भी क्या पढ़ें आबो हवा की
बहुत झूठे लगें अखबार जानाँ
कही! क्या लिख रहे हो आजकल तुम ?
बहुत चुभते हैं ये अश्आर जानाँ
मुझे तुम छोड़ कर जब से गई हो
नहीं देखा कोई दरबार जानाँ
फ़कत खामोश लफ़्जों की बयानी
नहीं कुछ और मेरा प्यार जानाँ
बदलते लोग हैं हर रोज ऐसे
बदलती हो यहाँ सरकार जानाँ
नीलेन्द्र शुक्ल " नील "