06/09/2019

तू क्यों बाहर रहती है



साहब सुन लो अर्जी है
कुछ मेरी भी मर्जी है

खून, पसीना बेंचे हो
तब आई खुदगर्जी है

हाँ मेरे हालात ओ ग़म
तेरी खातिर फर्जी हैं

कपड़े में इतने रफ्फू
मुझसे अच्छे दर्जी हैं

सोचा था कुछ अच्छे हैं
सबके सब बेदर्दी हैं

तंगी घर है सालों से
सालों से माँ भर्ती है

छोटी निकली बेहूदी
जो मन आये करती है

अब तो मुझमें जीना सीख
अब्भी मुझपे मरती है

घर में दीप जलाएगी
बिटिया बाहर पढ़ती है

तेरे घर के बाहर हूँ
तू आने से डरती है

"नील" तुम्हारे अन्दर है
तू क्यों बाहर रहती है

नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

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