25/01/2018

कुछ - कुछ उड़ने लगा सा हूँ


नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

कुछ - कुछ उड़ने लगा सा हूँ
कुछ - कुछ बढ़ने लगा सा हूँ
जब से आए हो जीवन में ,
कुछ - कुछ जुड़ने लगा सा हूँ ।

कुछ -  कुछ  उड़ने लगा सा हूँ ।।

बातें तेरी जुबाँ पे हैं
सपने तेरे सुबह से हैं
यूँ ही देखा करो मुझको
आँखें पढ़ने लगा सा हूँ ।

कुछ - कुछ उड़ने लगा सा हूँ ।।

अल्ला,ईश्वर खुदा सब हैं
जो तू है तो जहाँ सच है
अब तक जाना नही था जो
अब प्यार करने लगा सा हूँ ।

कुछ - कुछ उड़ने लगा सा हूँ ।।

दूरी यूँ हो गई है जो
खो न दूँ कहीं मैं तुमको
आ जाओ एक होते हैं
कुछ - कुछ डरने लगा सा हूँ ।

कुछ - कुछ उड़ने लगा सा हूँ ।।

यादें दिन - रात आती हैं
अक्सर मुझको सताती हैं
क्या जादू कर गई हो तुम
तुमपे मरने लगा सा हूँ ।।

कुछ - कुछ उड़ने लगा सा हूँ ।।




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