नीलेन्द्र शुक्ल " नील " |
कुछ - कुछ उड़ने लगा सा हूँ
कुछ - कुछ बढ़ने लगा सा हूँ
जब से आए हो जीवन में ,
कुछ - कुछ जुड़ने लगा सा हूँ ।
कुछ - कुछ उड़ने लगा सा हूँ ।।
बातें तेरी जुबाँ पे हैं
सपने तेरे सुबह से हैं
यूँ ही देखा करो मुझको
आँखें पढ़ने लगा सा हूँ ।
कुछ - कुछ उड़ने लगा सा हूँ ।।
अल्ला,ईश्वर खुदा सब हैं
जो तू है तो जहाँ सच है
अब तक जाना नही था जो
अब प्यार करने लगा सा हूँ ।
कुछ - कुछ उड़ने लगा सा हूँ ।।
दूरी यूँ हो गई है जो
खो न दूँ कहीं मैं तुमको
आ जाओ एक होते हैं
कुछ - कुछ डरने लगा सा हूँ ।
कुछ - कुछ उड़ने लगा सा हूँ ।।
यादें दिन - रात आती हैं
अक्सर मुझको सताती हैं
क्या जादू कर गई हो तुम
तुमपे मरने लगा सा हूँ ।।
कुछ - कुछ उड़ने लगा सा हूँ ।।