18/10/2016

न्याय के विरूद्ध

टूट जाती है उसकी कमर
गिर जाती है
गिड़गिड़ाते ,
भागते ,
रेंगते
हुए
किसी अदालत की चौखट पे
उन चिंथे हुए
कपड़ों में ,
जिनमें दिख रही है
उसकी पूरी की पूरी
नंगी शरीर ,
जिसे लोग
बड़ी ही उत्सुकता से देखते हैं।

खटखटाती है अदालत का दरवाजा
और
कुछ बिन खटखटाये ही
तोड़ देती हैं दम।

सुनी जाती हैं बातें
दोनों पक्षों की
पर उधेड़ी जाती हैं
बची - खुची चमड़ियां
कुछ पैसों से
दबे हुए
वकीलों के अनैतिक सवालों से
ऐसे न्याय से ,
जिसे मैं स्पष्ट और शुद्ध लिखता हूँ।
इसीलिए ऐसे न्याय के विरूद्ध लिखता हूँ।।

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...