12/11/2018

हे सखे! राजा रहो तुम मैं विदूषक ही भला हूँ

Neel

हे सखे! राजा रहो तुम मैं विदूषक ही भला हूँ 
खुद हँसू, जग को हँसाऊँ एक अद्भुद सी कला हूँ

तुम रहो जाकर भवन में मैं यहाँ पर ठीक हूँ 
तुम हँसी हो दिव्यजन की मैं किसी की छींक हूँ 
आसमाँ में , उन सितारों में चमकते चाँद तुम 
मैं हमेशा ही दिखूँगा हो कहाँ गुमनाम तुम 

फिर हँसे हैं लोग मुझपे चाल कुछ ऐसी चला हूँ 

दिन तुम्हारे काट रहे होंगे बहुत ही खूब अब 
पास परियों के रहो , बनते रहो महबूब अब 
रेत की बंजर ज़मीं मुझमें तुम्हे मिल जायेगी 
वो नहीं आई जिसे कहते रहे तुम आएगी 

मैं किसी बेकार,बदबूदार फल जैसे गला हूँ  

तुम सुनाते दण्ड प्यारे, मैं हँसी का मीत हूँ 
तुम निकालो गालियाँ बस मैं सुनाता गीत हूँ 
तुम इन्हें देते रहो दुःख , मैं हँसाऊँगा इन्हें 
जो कहे दुत्कार कर ,वो सब भुलाउँगा इन्हें 

क्या करूँ ऐसी प्रकृति में जन्म से ही मैं पला हूँ 

कष्ट से लड़ता रहा रोना नहीं आया मुझे 
क्या सुनोगे बात न, अब तक समझ पाया मुझे 
इस कदर मदहोश हो, पैसों में खोये हो सदा 
जिन्दगी में त्याग की तालीम सीखो सर्वदा 

क्या करूँ आँसू नहीं आते मुझे ऐसे ढला हूँ 

ये मुझे जीवन मिला हंसने - हंसाने के लिए 
उन गरीबों के यहाँ महफ़िल सजाने के लिए 
जिनके चहरे की शिकन हटती नहीं है उम्रभर 
मैं उन्हीं लोगों का बच्चा हूँ ,यहाँ हूँ बेफ़िकर 

हूँ बहुत निर्धन मगर अब तक नहीं तुमको छला हूँ 

मैं हजारों दुःख लिए सबको हँसाता ही रहा 
हर कदम पे मैं तुम्हें अपना बनाता ही रहा 
चाहने वाले बहुत पर प्यार न देता कोई 
मुझको वो ख़ुशियों भरा संसार न देता कोई 

मैं किसी को कष्ट में छोड़ूँ , नहीं कोई बला हूँ  

हे सखे! राजा रहो तुम मैं विदूषक ही भला हूँ 
खुद हँसू, जग को हँसाऊँ एक अद्भुद सी कला हूँ

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