27/05/2020

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!


देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है
रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।।

मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन
बाति - बाति मा लड़े - मरें इक दूजे का गरियाइन
माला एक खरीदौ भक्तौ, मोदीपाठ करौ तुम
चुल्लूभर पानी मा कूदौ, वहिमा डूबि मरौ तुम

दसरथ चाचा कहिन जमाना भेड़ी चाल चले है
रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।।

कुछ पै ट्रेन चढ़ाइन, कुछ का मारिन वहिके भीतर
टें टें चिल्लाय रहे हैं, दिहिन सफाई तीतर
भूँखे प्यासे रहें राह मा मरें लछिमन भैया
हाय! हाय! चिल्लाय रहीं हैं घरै सुमित्रा मैय्या

चूल्हा बुझा परा है केवल जीवन, देह जले है
रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।।

ऊपर से यमराज निहारैं, नीचे गहरी खाई
बिना आँखि के देख रहे हैं सब ससिभूसन भाई
हालचाल पूँछिन राघव से आँसू छलक पड़े हैं
सही कहित है, मोदी दादा गप्पी बहुत बड़े हैं

मीठी - मीठी बातैं कइके जनता खूब छले हैं
रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।।

Neelendra Shukla

ससिभूसन - Shashibhushan Samad

हम तुम्हारे हैं पुरुरवा तुम हमारी उर्वशी!


कौन सा जादू किये हो बोल दो मेरे वशी ।
हम तुम्हारे हैं पुरुरवा तुम हमारी उर्वशी ।।

नेह का दीपक जलाकर
पुण्यपूरित मन लिए
ढूँढता तुमको रहा मैं दर्द
का दामन लिए

हम जलें हैं साथ में जलता रहा मेरे शशी ।
हम तुम्हारे हैं पुरुरवा तुम हमारी उर्वशी ।।

तुम हमारा साथ छोड़े
और ओझल हो गये
भावनाएँ बिक चुकी हैं
स्वप्न बोझिल हो गये

जग रहा हूँ मैं हमारे साथ जगती है निशि ।
हम तुम्हारे हैं पुरुरवा तुम हमारी उर्वशी ।।

साथ दूँगी जिन्दगी भर
ये वचन खुद बोलकर
कौन जाता है अकेला
यूँ किसी को छोड़कर

मौन थी सारी दिशाएँ देखकर मुझको हंसी
हम तुम्हारे हैं पुरुरवा तुम हमारी उर्वशी ।।

Neelendra Shukla

गैरों को पाने की धुन में तुम अपनों को छोड़ रहे हो!


ये गहरे सम्बन्ध हमारे किसकी ख़ातिर तोड़ रहे हो
गैरों को पाने की धुन में तुम अपनों को छोड़ रहे हो ।

आ जाओगे दुखड़े लेकर
पहले से ही कह देता हूँ
जग मुझको कुछ भी कहता है
हर बातों को सह लेता हूँ

फिर क्यूँ हाँथों में पत्थर ले तुम अपना सर फोड़ रहे हो ।
गैरों को पाने की धुन में तुम अपनों को छोड़ रहे हो ।।

मैंने इन आँखों से उसको
कितनों के संग देखा है
उसकी बाँहों में जूही थी
ज्योति थी, अब रेखा है

वो छलिया है कपटी, वहशी जिससे रिश्ता जोड़ रहे हो ।
गैरों को पाने की धुन में तुम अपनों को छोड़ रहे हो ।।

समझ नहीं पाई बरसों से
साथ रही पर दूर रही
नूर हमारे चेहरे पर था
जब तक मेरी हूर रही

वक्त अभी भी है आ जाओ क्यूँ हमसे मुँह मोड़ रहे हो ?
गैरों को पाने की धुन में तुम अपनों को छोड़ रहे हो ।

Neelendra Shukla

जलता हुआ चराग बुझाओ!


रो लेने दो निपट अकेले कोई मेरे साथ न आओ
लगे रौशनी इन आँखों में जलता हुआ चिराग बुझाओ ।

गाढ़ अंधेरे में रहने दो
आँखों को नम होने दो
दुःख बढ़ने दो इस जीवन
में, खुशियों को कम होने दो

अपनी राय स्वयं तक रखो कोई नहीं विचार सुझाओ
लगे रौशनी इन आँखों में जलता हुआ चिराग बुझाओ ।

काले बादल छा जाने दो
ये सूरज छुप जाएगा
इतनी आँधी, तूफानों में
हाँ! दीपक बुझ जाएगा

शीशे की दीवाल व्यर्थ है इनके पीछे नहीं लुटाओ
लगे रौशनी इन आँखों में जलता हुआ चिराग बुझाओ ।

कर्मप्रधान विश्व रचि राखा
तुलसी बाबा बोले हैं
फल की आशा त्याग दिये
हैं, श्रम करते हैं रो ले हैं

भाग्यहीन रेखाएँ हैं तो क्यों हाँथों से द्वेष जताओ
लगे रौशनी इन आँखों में जलता हुआ चिराग बुझाओ ।

Neelendra Shukla

भइया लाइव आय रहे हन!


सुनौ - सुनौ गोहराय रहे हन 
भइया लाइव आय रहे हन ।।

देख्यो ज्यादा देर ना करेव
पाँच बजे हम आउब
चार गजल, दुइ गीत
प्रेम की कबिता तीन सुनाउब

पहिले दाँत चियारब, हंसिबै
पूँछब सब किलियर है
आय रही आवाज साफ
या बीचे मा निशिचर है

पप्पू तुम तैयार रहेव
सेयर पै सेयर मारेव
हमरे संघे फेसबुक्क के
पेजवौ का तुम तारेव

भइया बोलिन रहै दियौ
देखौ तुम ना कइ पइहौ
भाषण दीहौ दुइ घंटा के
हमरै बोझ बढ़इहौ

भइया तुम देखौ तौ पहिले
केतना सुन्दर गाय रहे हन ।
सुनौ - सुनौ गोहराय रहे हन
भइया लाइव आय रहे हन ।।

बुआ नमस्ते, फूफा नाना -
नानी का परनाम
पापौ सोच रहे हैं लरिकै
आगे करिहैं नाम

धीरे - धीरे कण्ठ खुला
गुड्डू के लय मा आएँ
लेकिन मन मा सोंच रहे
हैं, ऊ अब तक ना आए

मैडम हाय करिन जइसेन
मुख पै छाई मुस्कान
एतना खुस्स भये हैं गुड्डू
जइसे लंगड़ा आम

यहू सुनाओ, वहू सुनाओ
चार जने जब बोलिन
चट्ट - पट्ट डायरी उठाइन
कविता - संग्रह खोलिन

तुम सब आपन झोरा खोलौ
गीत - गजल हम नाय रहे हन ।
सुनौ - सुनौ गोहराय रहे हन
भइया लाइव आय रहे हन ।।

बड़का भइया बरदहस्त धै
के बोलिन कविराज
मन प्रसन्न होइ गवा हमारौ
फेसबुक्क पै आज

वाह वाह जौ सुनें कबी जी
चार प्रशंसा पाइन
चालिस इंची के छाती मा
छप्पन इंची पाइन

जब से देख रहे इनका
हम आजै स्तब्ध भये हैं
लण्ठनटोला मा पढ़िके
ई एतने सभ्य भये हैं

एतने फालोवर बढ़िगे हैं
एतने व्यूअर देखिन
कुछ तौ राहत मिली कबी
का, अबै कमी है लेकिन

एक टिप्पणी करिन तड़ाका
फिर से कल हम आय रहे हन ।
सुनौ - सुनौ गोहराय रहे हन
भइया लाइव आय रहे हन ।।

Neelendra Shukla

तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर!



चल रहे दिन - रात जो पैदल सड़क पर
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

कब तुम्हारे सामने वो
गिड़गिड़ाने आ गये
कब तुम्हें वे घाव पैरों
के दिखाने आ गये

घर पहुँचने लग गये दर - दर भटक कर ।
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

कांध पर बच्चे बिठाये
हाँथ में झोरा लिए
बैठते हैं पेड़ की छाँवों
तले बोरा लिए

प्यास से भी मर रहे आदम तड़पकर ।
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

फूटकर छाले मुलायम
पाँव से रिसते हुए
रो रहें है, चल रहे
बच्चे स्वयं पिसते हुए

क्या पता उनको, सिकन्दर है भयंकर
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर।।

राह में ही कर प्रसव
फिर से प्रसूता चल पड़ी
गोद में नवजात लेकर
आ गई वो झोपड़ी

लड़ रही थी वो समस्या से सम्हल कर
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

छोड़ दी बीबी, नहीं बच्चे
मगर कुछ खेद ना
तो तुम्हें मालूम क्या होगी
किसी की वेदना

प्रेम अद्भुत है, भले ही देह जर्जर
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

दर्द, बेचैनी, विरह, संताप
के दुःख से व्यथित
क्या कहूँ तुमको ? सभी को
दिख रहा, है सब कथित

हो सके तो आत्मग्लानि कर, शरम कर
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

~Neelendra Shukla

#lockdown_diaries

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...