27/05/2020

जलता हुआ चराग बुझाओ!


रो लेने दो निपट अकेले कोई मेरे साथ न आओ
लगे रौशनी इन आँखों में जलता हुआ चिराग बुझाओ ।

गाढ़ अंधेरे में रहने दो
आँखों को नम होने दो
दुःख बढ़ने दो इस जीवन
में, खुशियों को कम होने दो

अपनी राय स्वयं तक रखो कोई नहीं विचार सुझाओ
लगे रौशनी इन आँखों में जलता हुआ चिराग बुझाओ ।

काले बादल छा जाने दो
ये सूरज छुप जाएगा
इतनी आँधी, तूफानों में
हाँ! दीपक बुझ जाएगा

शीशे की दीवाल व्यर्थ है इनके पीछे नहीं लुटाओ
लगे रौशनी इन आँखों में जलता हुआ चिराग बुझाओ ।

कर्मप्रधान विश्व रचि राखा
तुलसी बाबा बोले हैं
फल की आशा त्याग दिये
हैं, श्रम करते हैं रो ले हैं

भाग्यहीन रेखाएँ हैं तो क्यों हाँथों से द्वेष जताओ
लगे रौशनी इन आँखों में जलता हुआ चिराग बुझाओ ।

Neelendra Shukla

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