27/05/2020

तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर!



चल रहे दिन - रात जो पैदल सड़क पर
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

कब तुम्हारे सामने वो
गिड़गिड़ाने आ गये
कब तुम्हें वे घाव पैरों
के दिखाने आ गये

घर पहुँचने लग गये दर - दर भटक कर ।
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

कांध पर बच्चे बिठाये
हाँथ में झोरा लिए
बैठते हैं पेड़ की छाँवों
तले बोरा लिए

प्यास से भी मर रहे आदम तड़पकर ।
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

फूटकर छाले मुलायम
पाँव से रिसते हुए
रो रहें है, चल रहे
बच्चे स्वयं पिसते हुए

क्या पता उनको, सिकन्दर है भयंकर
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर।।

राह में ही कर प्रसव
फिर से प्रसूता चल पड़ी
गोद में नवजात लेकर
आ गई वो झोपड़ी

लड़ रही थी वो समस्या से सम्हल कर
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

छोड़ दी बीबी, नहीं बच्चे
मगर कुछ खेद ना
तो तुम्हें मालूम क्या होगी
किसी की वेदना

प्रेम अद्भुत है, भले ही देह जर्जर
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

दर्द, बेचैनी, विरह, संताप
के दुःख से व्यथित
क्या कहूँ तुमको ? सभी को
दिख रहा, है सब कथित

हो सके तो आत्मग्लानि कर, शरम कर
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

~Neelendra Shukla

#lockdown_diaries

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