ये गहरे सम्बन्ध हमारे किसकी ख़ातिर तोड़ रहे हो
गैरों को पाने की धुन में तुम अपनों को छोड़ रहे हो ।
आ जाओगे दुखड़े लेकर
पहले से ही कह देता हूँ
जग मुझको कुछ भी कहता है
हर बातों को सह लेता हूँ
फिर क्यूँ हाँथों में पत्थर ले तुम अपना सर फोड़ रहे हो ।
गैरों को पाने की धुन में तुम अपनों को छोड़ रहे हो ।।
मैंने इन आँखों से उसको
कितनों के संग देखा है
उसकी बाँहों में जूही थी
ज्योति थी, अब रेखा है
वो छलिया है कपटी, वहशी जिससे रिश्ता जोड़ रहे हो ।
गैरों को पाने की धुन में तुम अपनों को छोड़ रहे हो ।।
समझ नहीं पाई बरसों से
साथ रही पर दूर रही
नूर हमारे चेहरे पर था
जब तक मेरी हूर रही
वक्त अभी भी है आ जाओ क्यूँ हमसे मुँह मोड़ रहे हो ?
गैरों को पाने की धुन में तुम अपनों को छोड़ रहे हो ।
Neelendra Shukla
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