24/09/2016

अजनबी थे ,अजनबी हैं ,अजनबी ही रह गये

अजनबी थे ,अजनबी हैं ,अजनबी ही रह गये
पास आए थे कभी जो अजनबी वो कह गये।

आज तक मेरे ह्रदय में वास करती हैं वही ,
किस समुन्दर की लहर में छोड़ हमको बह गये।

आज रोया हूँ बहुत आँखों से नदियाँ बह रही ,
जो दिए हैं जख़्म कि मलहम लगाते रह गये।

 इबादत कर रहे थे ज़िन्दगी बर्बाद हो ,
और हम उनकी इबादत को सजाते रह गये।

फिर तकल्लुफ़ है उन्हें आखिर ये कैसी बात है ,
दे रहे थे गालियाँ हम गालियों को सह गये।

इतना हूँ बेसब्र मैं यादों में इक जीवन लिखूँ ,
यूँ  हृदय में आए के बस वो हृदय में रह गये।

दिल समुन्दर, आँख दरिया हुश्न बेपरवाह था
वो लुटाते ही रहे मुझको लुटाते रह गये ।

सर्दियों में सड़क पर

जाड़ों के दिन थे ,
कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी ,
कुछ लोग जो अपनी गर्लफ्रेंडों के साथ
गलबँहिया करते ,आ जा  रहे थे
उसी मार्ग से ,
जिस मार्ग पे पड़ी थी एक औरत ,
जिसके तन पे मात्र एक लत्ता था ,
75 साल की बुढ़िया मेरी दादी की उम्र की
जो ठीक से अब चल भी नही पाती ,
कि जा सके वह उस अलाव के पास ,
जो उससे कुछ ही दूर पर जल रहा था।

और नही निकलती है उसके मुख से आवाज़
कि वह उनसे कह सके ,
कुछ पुराने ऊनी स्वेटर और कान ढकने के लिए
एक पुराने सॉल के लिए ,
जिससे ढक सके वह अपना शरीर
और बच सके सर्दी से ,
जो अपनी गर्लफ्रेंडों पे हज़ारों खर्च कर देते हैं
शायद बेवजह।

उन्हें 75 साल की  दादी नही दिखती
ठण्ड से काँपती ,थरथराती हुई।
नही सुन पाते हैं वो उसकी आवाज़ ,
नही देख पाते हैं वो उसके व्यथित - मन
की भावनाओं को ,
जो शायद देख लेते हैं ,
बिन दिखाए ही अपनी गर्लफ्रेंड की सारी
इच्छाओं को ,सुन लेते हैं उनकी अनकही आवाज़।
देखता हूँ ,सहम जाता हूँ और जब कभी
गुज़रता  हूँ लंका से,
याद आ जाती है उन सर्दियों में सड़क पर
पड़ी उस महिला की जिसकी सहायता मैं भी
नही कर पाया था तब ,
जब उसे आवश्यकता थी मेरे सहारे की।।

किसकी है औकात

किसकी है औकात यहाँ जो छूले मेरे झण्डे को ,
मेरे देश के इस प्रतीक लहराते हुए तिरंगे को।

देश में मेरे अब भी हैं ,जाबाज सिपाही सीमा पर ,
रेडक्लिफ तोड़ के जाकर खत्म करेंगें पाकी दंगे को।।

नहीं रहेगा पाक तुम्हारा मानचित्र के नक़्शे पर ,
थोड़ी अक्ल अगर हो समझो ,बंद करो इस धंधे को।। 

अब तक तो हम शान्त रहे अब कोप चढ़ रहा मस्तक पर ,
घर में घुस के मारेंगे यदि मारे हिन्द के बन्दे को।। 

बहुत हुई अब भाषणबाजी ,भाषणबाजी बंद करो ,
मोदी जी !अब बहुत हुआ छोड़ो भी इस हथकंडे को।। 

कद छोटा है ,उम्र बहुत कम फिर भी खून उबलता है ,
फिर से याद करा दूंगा मैं हिटलर जैसे बन्दे को।।

एक मेरी माँ रोयेगी ,दूजी के गोद में सोऊँगा ,
हँसते - हँसते चूमूँगा मैं उस फांसी के फंदे को।।

कोई तुम्हें हिला सकता क्या ?हिन्दुस्तान के वीरसपूत ,
मातृ - पितृ की शक्ति है ''ऐ नील '' तुम्हारे कंधे को।।

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...