24/09/2016

अजनबी थे ,अजनबी हैं ,अजनबी ही रह गये

अजनबी थे ,अजनबी हैं ,अजनबी ही रह गये
पास आए थे कभी जो अजनबी वो कह गये।

आज तक मेरे ह्रदय में वास करती हैं वही ,
किस समुन्दर की लहर में छोड़ हमको बह गये।

आज रोया हूँ बहुत आँखों से नदियाँ बह रही ,
जो दिए हैं जख़्म कि मलहम लगाते रह गये।

 इबादत कर रहे थे ज़िन्दगी बर्बाद हो ,
और हम उनकी इबादत को सजाते रह गये।

फिर तकल्लुफ़ है उन्हें आखिर ये कैसी बात है ,
दे रहे थे गालियाँ हम गालियों को सह गये।

इतना हूँ बेसब्र मैं यादों में इक जीवन लिखूँ ,
यूँ  हृदय में आए के बस वो हृदय में रह गये।

दिल समुन्दर, आँख दरिया हुश्न बेपरवाह था
वो लुटाते ही रहे मुझको लुटाते रह गये ।

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