30/03/2017

हाशिए पर गंगा

माँ,
मैं देख रहा हूँ
तुम्हारी पीड़ा,तुम्हारे कष्ट

मैं देख रहा हूँ ,
कि कैसे तुम्हारे हृदय पे करती हैं चोट ,
मथ देती हैं तुम्हारे पेट को
झकझोर देती हैं पूरी की पूरी शरीर
ये आधुनिक नावें,
काला कर चुकी हैं समूचे जल को अपने धुआँ से ।

मैं देख रहा हूँ ,
कि कैसे तुम्हारे नाम पे खेली जा रही है
ओछी - राजनीति ,
खर्च किए जा रहे हैं हजारों करोड़ रूपये
पवित्रता ,स्वच्छता और निर्मल बनाने का नाम दे - देकर ।

क्या किसी ने कभी अपनी माँ से राजनीति खेली है क्या ?

मैं देख रहा हूँ कि लगातार
तुम धंसती जा रही हो राजनीतिक - दलदल में
जहाँ लोग तुम्हारा सहारा नही बन रहे हैं
अपितु दिखा रहे हैं तुम्हें हाँथ
औपचारिकता पूरी करने के लिए
तुम्हारे नाम पर गद्दी पे बने रहने के लिए ।

माँ,
मैं देख रहा हूँ ,
कि कैसे दोहन हो रहा है तुम्हारा
इस ग्लोब्लाइजेशन के दौर में ।
लगातार तुम्हारी कोख में फेंका जा रहा है
कचरा ,तैर रहा है मैला
और तो और मुर्दे भी तैरते दिख जाते हैं कभी - कभी ।

शहर के कल - कारखाने ,फैक्ट्रियाँ
और असंख्य गंदी नालियाँ तुमसे आके मिलती हैं
प्रदूषित करती हैं तुम्हें ,
और तुम बड़ी ही सहजता से स्वीकारती हो उन्हें,
सहती हो ।

टूट गई हैं तुम्हारी लहरें
समाप्त होता जा रहा है तुम्हारा जल
अब मैं तुम्हें बूढ़ी कहूँ या बीमार
कुछ सूझता नही है ।

अब तुम ही कहो
मैं तुम्हारा चारण बनूँ ,
गाऊँ तुम्हारे पवित्रता की झूठी स्तुतियाँ
या स्वच्छता का कोरा लिबास पहनाऊँ तुम्हें
या कह दूँ मैं सही - सही सारी बातें ।

मैं क्या करूँ माँ ,मैं क्या करूँ
असमंजस में हूँ ,
सही कहूँगा तो तुम्हारे भक्तों को ठेस पहुँचेगी
और गुण गाऊँ तो तुम्हारे साथ धोखा होगा
क्या करूँ माँ ,मैं क्या करूँ ।।

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