26/08/2019

मैं मरा मुझसे, मुझे मारा कोई शैताँ नही


इस तरफ से ना नहीं पर उस तरफ से हाँ नहीं 
और मैं मरता नहीं क्यूँ ये निकलती जाँ नहीं 

दर्द को बस दर्द दो ये दर्द ही मर जाएगा 
मैं मरा मुझसे, मुझे मारा कोई शैताँ नही 

हाँ मेरे जन्नत के दरवाजे की तुम हो रहगुज़र 
पर हकीकत जो कहें हम दो बदन इक जाँ नहीं 

लो लुटा लो प्यार मुझपर खूब ही बोसे मगर 
जो मिला पहली दफा वैसा कोई बोसा नहीं 

तू बहुत नाजुक है मेरे यार तू बाहर न आ 
दिल बहुत नादान है तू ये शहर नादाँ नहीं  

और तू कहता है वो हिन्दू जनी मुस्लिम जनी 
माएँ इंसा ही जनी हिन्दू नहीं मौला नहीं 

एक माँ से हैं नहीं रिश्ते में हैं भाई - बहन 
इस तरह रिश्ते निभाना भी यहाँ आसाँ नहीं 

जिन्दगी के पेचो - खम  में ही बहुत उलझे रहे
जो उठाया हूँ कलम गज़लें लिखी उन्वाँ नहीं 

कूच कर ले ऐ फकीरे! इस नगर से आज ही 
भूख से मर जाएगा इतना शहर अच्छा नहीं

भीगता ही रह गया मै रात - दिन बादल तले 
बह गये सारे शहर अब तक बहे अरमाँ नहीं 

बाँध लो घुँघरू, सजाओ महफिलें, रश्के कमर 
और मैं पीता रहूँ जब तक बुझे शम्माँ नहीं 

बस हसीनाओं की ज़ुल्फ़ों को संवारें रात - दिन 
सोचना फिर सोचना ऐसा ये हिन्दोस्ताँ नहीं 

पैरहन क्या देखता है? देखना है मन को देख



ये भरी कश्ती, भरा सावन, भरे मौसम तू देख
पैरहन क्या देखता है? देखना है मन को देख

फ़ुरकत - ए - गम में बहुत मशगूल हूँ मैं रात - दिन
तू कहीं भी देख पर मेरा दिल - ओ - आँगन तो देख

आ गया बनकर भिखारी आज तेरे द्वार पर
भीख़ देने के बहाने आ इसी कारण तो देख

हिज्र ने हैवान से इंसा बना डाला मुझे
ख़्वाब में जीना सिखाया भर गया दामन तो देख

बेटियाँ इक्कीस की हैं और पेशा कुछ नही
मुश्किलों के दौर को जीता हुआ आदम तो देख

ईद की ईदी हुई है रौशनी को देखकर
बेखबर सौहर चमकते चाँद सा साजन तो देख

दिल के छालों को निकाला रख दिया बाज़ार में
वाहवाही से भरा ज़ालिम ये वो आलम तो देख

शबनमीं शामें, धड़कते दिल, हँसी चेहरों के बीच
ये बदलते मौसमों के मौसमी बालम तू देख

देखने को जा रहा था मैं हंसी दरिया मगर
एक यायावर पुकारा " नील " ये मातम तो देख


रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...