इस तरफ से ना नहीं पर उस तरफ से हाँ नहीं
और मैं मरता नहीं क्यूँ ये निकलती जाँ नहीं
दर्द को बस दर्द दो ये दर्द ही मर जाएगा
मैं मरा मुझसे, मुझे मारा कोई शैताँ नही
हाँ मेरे जन्नत के दरवाजे की तुम हो रहगुज़र
पर हकीकत जो कहें हम दो बदन इक जाँ नहीं
लो लुटा लो प्यार मुझपर खूब ही बोसे मगर
जो मिला पहली दफा वैसा कोई बोसा नहीं
तू बहुत नाजुक है मेरे यार तू बाहर न आ
दिल बहुत नादान है तू ये शहर नादाँ नहीं
और तू कहता है वो हिन्दू जनी मुस्लिम जनी
माएँ इंसा ही जनी हिन्दू नहीं मौला नहीं
एक माँ से हैं नहीं रिश्ते में हैं भाई - बहन
इस तरह रिश्ते निभाना भी यहाँ आसाँ नहीं
जिन्दगी के पेचो - खम में ही बहुत उलझे रहे
जो उठाया हूँ कलम गज़लें लिखी उन्वाँ नहीं
कूच कर ले ऐ फकीरे! इस नगर से आज ही
भूख से मर जाएगा इतना शहर अच्छा नहीं
भीगता ही रह गया मै रात - दिन बादल तले
बह गये सारे शहर अब तक बहे अरमाँ नहीं
बाँध लो घुँघरू, सजाओ महफिलें, रश्के कमर
और मैं पीता रहूँ जब तक बुझे शम्माँ नहीं
बस हसीनाओं की ज़ुल्फ़ों को संवारें रात - दिन
सोचना फिर सोचना ऐसा ये हिन्दोस्ताँ नहीं