26/08/2019

पैरहन क्या देखता है? देखना है मन को देख



ये भरी कश्ती, भरा सावन, भरे मौसम तू देख
पैरहन क्या देखता है? देखना है मन को देख

फ़ुरकत - ए - गम में बहुत मशगूल हूँ मैं रात - दिन
तू कहीं भी देख पर मेरा दिल - ओ - आँगन तो देख

आ गया बनकर भिखारी आज तेरे द्वार पर
भीख़ देने के बहाने आ इसी कारण तो देख

हिज्र ने हैवान से इंसा बना डाला मुझे
ख़्वाब में जीना सिखाया भर गया दामन तो देख

बेटियाँ इक्कीस की हैं और पेशा कुछ नही
मुश्किलों के दौर को जीता हुआ आदम तो देख

ईद की ईदी हुई है रौशनी को देखकर
बेखबर सौहर चमकते चाँद सा साजन तो देख

दिल के छालों को निकाला रख दिया बाज़ार में
वाहवाही से भरा ज़ालिम ये वो आलम तो देख

शबनमीं शामें, धड़कते दिल, हँसी चेहरों के बीच
ये बदलते मौसमों के मौसमी बालम तू देख

देखने को जा रहा था मैं हंसी दरिया मगर
एक यायावर पुकारा " नील " ये मातम तो देख


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