10/04/2019

होंठ पर होंठ रख दिया रब्बा

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आज चमका गया फिज़ा रब्बा 
झूमते लोग जा ब जा रब्बा 

कई सालों के बाद आया है 
मेरे घर पर मेरा ख़ुदा रब्बा 

हाँथ में चीख रहा था भाई 
बोलकर चल दिया विदा रब्बा 

बोलना था मुझे बहुत कुछ पर  
होंठ पर होंठ रख दिया रब्बा 

जिससे उम्मीद थी रफ़ीक़ी की 
क़त्ल कर के फँसा गया रब्बा 

ढूढंता हूँ दरख़्त सपनों में 
सामने कुछ नहीं बचा रब्बा 

चाँद तक लोग आ गए लेकिन 
गाँव उनको नहीं दिखा रब्बा 

देखता हूँ जहाँ में तन्हाई 
गा रहा हूँ मैं मर्सिया रब्बा 


जा ब जा - जगह जगह 
रफ़ीक़ी - दोस्ती 
दरख़्त - पेड़ 

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