13/10/2016

चलो फिर युद्ध करते हैं

चलो फिर युद्ध करते हैं।

धरा की टूटती है नब्ज ,
इसको शुद्ध करते हैं।।

शजर की छाँव में भी
धूप सी है
यहाँ भीतर छुपी बन्दूक
सी है
 यहाँ कब तक उठाएँगे
शहीदों की चिताएँ
चलो अब साथ एटम बम
बनाएँ
लहू वीरों का अपने
बह रहा है
हमारा पुण्य भारत-वर्ष
हमसे कह रहा है
चलो फिर से उठाते
आज गोले
चलो बन जाएँ हम
बारूद , शोले
यहाँ जो शांत से हैं दिख रहे ,
उन्हें फिर क्रुद्ध करते हैं।

हमारी पीठ पे खन्जर
दिये जो
हमारा घर , शहर बन्जर
किये जो
चलो हम आज फिर
उनको बुलाएँ
नही , उनके यहाँ
उनको सुलाएँ
यहाँ रोते , बिलखते
चीखते सब
यहाँ पाषाण , मृत से
दीखते सब
चलो चूड़ी उतारो
हाँथ में हथियार लो
कि सारा प्यार त्यागो
इक नया अवतार लो
बहुत वो हँस लिए हैं  ,
उन्हें अब क्षुब्ध करते हैं।।

चलो फिर युद्ध करते हैं।

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