अपने कौन हैं ? सभी पराए ।।
जब तक खुद का अर्थ नही है ,
सत्य है मिथ्या , व्यर्थ नही है ।
तब तक ये दुनिया ठुकराए ।।
रोया हूँ , प्रायः अपनों से ,
टूटा हूँ, बिखरे सपनों से ।
गैरों से क्या आश लगाएँ ?
ईश्वर शान से जीना चाहूँ ,
न अपमान मैं पीना चाहूँ ।
मुझसे ही क्यों द्वेष जताए ?
जब तक खुद का अर्थ नही है ,
सत्य है मिथ्या , व्यर्थ नही है ।
तब तक ये दुनिया ठुकराए ।।
रोया हूँ , प्रायः अपनों से ,
टूटा हूँ, बिखरे सपनों से ।
गैरों से क्या आश लगाएँ ?
ईश्वर शान से जीना चाहूँ ,
न अपमान मैं पीना चाहूँ ।
मुझसे ही क्यों द्वेष जताए ?
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