07/09/2016

" वाहवाही नही चाहिए अब मुझे "

वाहवाही नही चाहिए अब मुझे ,
शहंशाही नही चाहिए अब मुझे

जो गरीबों के दुःख , दर्द समझे नही,
वो इलाही नही चाहिए अब मुझे

भूँख से ज़िंदगी सब तड़पती रहें ,
वो तबाही नही चाहिए अब मुझे

छोड़कर राह में भाग जाते हैं जो ,
व्यर्थ - राही नही चाहिए अब मुझे

ज़ुल्म जो भी करे अब सज़ा दो उसे ,
बेगुनाही नही चाहिए अब मुझे

हाँथ रखकर के गीता पे मिथ्या कहे ,
वो गवाही नही चाहिए अब मुझे

खून खौले न जिनका बलात्कारों पे ,
वो सिपाही नही चाहिए अब मुझे

जुल्म सहकर सदा शान्त बैठी रहे ,
वो सियाही नही चाहिए अब मुझे 

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