फूटती चिंगारियाँ हैं जिस्म के किस ताप से
ये पसीना नम किया है या हुआ है भाप से
आज ये धधकी हुई आँखें चिता सी जल रही
जख़्म के इस दर्द से या रक्त हैं संताप से
बादलों से भाव घिरते छोड़ते हैं द्वारे - मन
कशमकश में हैं पड़े पापी हुए किस पाप से
पीठ की रंगत फ़कत है लालिमा ओढ़े हुए
हाँथ को भी कर रहा है वो गठीला आप से
देखना भी बन्द कर देंगें स्वयं परछाइयाँ
खत्म होता जा रहा जीवन नियति के शाप से
आज सारे धर्म का बस चाहता हूँ इल्म मैं
कौन ऐसा मंत्र बोलूँ मुक्त कर दूँ जाप से
है अभी क्या उम्र आखिर बेड़ियों में कश रहे
रोशनी थोड़ा जलाओ डर रहे हैं रात से
यूँ नही तुम माथ टेको यूँ नही पैरों गिरो
तुच्छ प्राणी हैं सभी कब सीखते हैं बात से
और यदि मासूमियत का ये भला - परिणाम है
आज से है जंग मेरी इस नियति के बाप से ।।
ये पसीना नम किया है या हुआ है भाप से
आज ये धधकी हुई आँखें चिता सी जल रही
जख़्म के इस दर्द से या रक्त हैं संताप से
बादलों से भाव घिरते छोड़ते हैं द्वारे - मन
कशमकश में हैं पड़े पापी हुए किस पाप से
पीठ की रंगत फ़कत है लालिमा ओढ़े हुए
हाँथ को भी कर रहा है वो गठीला आप से
देखना भी बन्द कर देंगें स्वयं परछाइयाँ
खत्म होता जा रहा जीवन नियति के शाप से
आज सारे धर्म का बस चाहता हूँ इल्म मैं
कौन ऐसा मंत्र बोलूँ मुक्त कर दूँ जाप से
है अभी क्या उम्र आखिर बेड़ियों में कश रहे
रोशनी थोड़ा जलाओ डर रहे हैं रात से
यूँ नही तुम माथ टेको यूँ नही पैरों गिरो
तुच्छ प्राणी हैं सभी कब सीखते हैं बात से
और यदि मासूमियत का ये भला - परिणाम है
आज से है जंग मेरी इस नियति के बाप से ।।
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