ऐ एहतियात - ए - इश्क़ तुझसे नाखुश हूँ मैं।
खुश तो तब होता जब बर्बाद - ए - मंज़र होता।।
आवाज़ निकलती है तो संवाद आता है ,
हिन्दुस्तान जुबाँ पे आए तो आबाद आता है।
नमस्कार करने के लिए खड़े हो जाओ मित्रों !,
क्यों कि बड़ों की डाट बाद में पहले आशिर्वाद आता है।।
बड़ी शिद्दत से पूजा करूँगा तुम्हारी ,गर मुझपे रहमे - करम कर दो ,
हमेशा मस्तक रहेगा तुम्हारे चरणों में अगर मेरी झोली भर दो।
माना कि खुदगर्ज़ हूँ मैं ,फिर भी मेरे यार ,
मेरे मस्तिष्क के ज़र्रों - ज़र्रों में उसकी यादें भर दो।।
तेरी जुस्तजू में जिंदगी गुजार दूंगा मैं ,
तेरी यादों को सुबह - ए - शाम प्यार दूंगा मैं।
तुझे देखने का मुरीद हूँ, ऐ हमसफ़र !
तेरे लिए सारी दुनिया को ठोकर मार दूंगा मैं।।
तेरे लबों पे अधर को सजाना चाहता हूँ ,
दुनिया मुझे कुछ भी कहे पर तुझे पाना चाहता हूँ।
तुम्हारे हुश्न - ओ - इश्क पे कुर्बान हूँ मैं ,
तुम्हारी गली में फिर से अपनी दुनिया बसाना चाहता हूँ।।
मैं ना ही स्वयं में होश चाहता हूँ ,
और ना ''कारवाँ - गाहे - दिलकश'' का अफसोस चाहता हूँ।
मैं तो बंजारा हूँ यारों मेरा क्या ? बस ,
ठहरने के लिए ''रुख़े आलमफरोज'' चाहता हूँ।।
रूह काँप जाती है जब तुम्हें भुलाने की कोशिश करता हूँ ,
सर फक्र से ऊपर उठता है जब सज़दे में लाने की साजिश करता हूँ।
मुतमइन से रियाज़ करता हूँ तुम्हारे मार्फत प्राप्त यादों का ,
कि तुम्हारे तासीरों से मैं तुम तक पहुंचने की कोशिश करता हूँ।।
उर्दू शब्दार्थ - १. कारवाँ - गाहे - दिलकश - काफिला ठहरने का सुन्दर स्थान।
२. रुख़े आलमफरोज - संसार को अपनी रोशनी से चमका देने वाला चेहरा।
३. एहतियात - ए - इश्क़ - सावधान,सतर्क इश्क़।
४. मुतमइन - आराम से।
५. मार्फत - द्वारा।
६. तासीरों - गुणों।
खुश तो तब होता जब बर्बाद - ए - मंज़र होता।।
आवाज़ निकलती है तो संवाद आता है ,
हिन्दुस्तान जुबाँ पे आए तो आबाद आता है।
नमस्कार करने के लिए खड़े हो जाओ मित्रों !,
क्यों कि बड़ों की डाट बाद में पहले आशिर्वाद आता है।।
बड़ी शिद्दत से पूजा करूँगा तुम्हारी ,गर मुझपे रहमे - करम कर दो ,
हमेशा मस्तक रहेगा तुम्हारे चरणों में अगर मेरी झोली भर दो।
माना कि खुदगर्ज़ हूँ मैं ,फिर भी मेरे यार ,
मेरे मस्तिष्क के ज़र्रों - ज़र्रों में उसकी यादें भर दो।।
तेरी जुस्तजू में जिंदगी गुजार दूंगा मैं ,
तेरी यादों को सुबह - ए - शाम प्यार दूंगा मैं।
तुझे देखने का मुरीद हूँ, ऐ हमसफ़र !
तेरे लिए सारी दुनिया को ठोकर मार दूंगा मैं।।
तेरे लबों पे अधर को सजाना चाहता हूँ ,
दुनिया मुझे कुछ भी कहे पर तुझे पाना चाहता हूँ।
तुम्हारे हुश्न - ओ - इश्क पे कुर्बान हूँ मैं ,
तुम्हारी गली में फिर से अपनी दुनिया बसाना चाहता हूँ।।
मैं ना ही स्वयं में होश चाहता हूँ ,
और ना ''कारवाँ - गाहे - दिलकश'' का अफसोस चाहता हूँ।
मैं तो बंजारा हूँ यारों मेरा क्या ? बस ,
ठहरने के लिए ''रुख़े आलमफरोज'' चाहता हूँ।।
रूह काँप जाती है जब तुम्हें भुलाने की कोशिश करता हूँ ,
सर फक्र से ऊपर उठता है जब सज़दे में लाने की साजिश करता हूँ।
मुतमइन से रियाज़ करता हूँ तुम्हारे मार्फत प्राप्त यादों का ,
कि तुम्हारे तासीरों से मैं तुम तक पहुंचने की कोशिश करता हूँ।।
उर्दू शब्दार्थ - १. कारवाँ - गाहे - दिलकश - काफिला ठहरने का सुन्दर स्थान।
२. रुख़े आलमफरोज - संसार को अपनी रोशनी से चमका देने वाला चेहरा।
३. एहतियात - ए - इश्क़ - सावधान,सतर्क इश्क़।
४. मुतमइन - आराम से।
५. मार्फत - द्वारा।
६. तासीरों - गुणों।
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