03/09/2016

" सूनापन "

सूनापन छाया है मुझमें, एक उदासी सी छाई ,
जीवन सारा वियोगमय है, देखो ऋतु वसन्त आई ।

मैं रोता हूँ, कमरे में इक, बैठ अकेला उनसे दूर ,
न समझें वेदना मेरी, कलियाँ हैं खुलकर मुस्काई  ।।

हृदय प्रकम्पित है, अन्तःस्थल में यह कैसा ऊहापोह ।
दारुण - हृदय रुदन करता है प्रकृति में हरियाली आई ।।

आज हुआ फिर से सम्वेदित फिर देखो मधुमास चढ़ा ।
जब - जब मैं मजबूर रहा, बस तब ही क्यों बारिश आई ?।।

बारिश की रिमझिम बूँदें तन पर पावक सी लगती हैं ।
आखिर फिर क्यों बरसे हैं ? तरुणी बन क्यूँ ली अँगड़ाई ?।।

ऊपर पूनम - चाँद सुशोभित, नीचे पवन सुगन्धित है ।
कई दिनों से दिखे नही तुम, पुनः तुम्हारी याद आई ।।

भ्रमरों का गुंजार श्रवणकर मन में टीस उभरती है ।
ये लो मैं जाने वाला हूँ और छलक कर वो आई ।।

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