तुम ,
आते रहे हर रोज़ मेरे सपनों में ,
उड़ती हुई चिड़िया ,
तो कभी ,
शरद की धूप सी ,
जो हर रात डरा देती है मुझको ,
कि जैसे ,
कोई समेट लेना चाहता है तुम्हें ,
और काट देना चाहता है तुम्हारे पर ,
जिनसे छूना है तुम्हें ,
आकाश।
कि वो आकाश भी ,
कर रहा है तुम्हारा इन्तज़ार ,
जो हर रोज़ देखता है
तुम्हारे सपने ,
पर, भयावह
जिससे उचट जाती है उसकी नींद
और ,लिखता है कविता ,
जिससे हर रोज़ बचा लेता है , तुम्हें
पर देखना सतर्क रहना ,
नही हूँ मैं तुम्हारे पास .....
आते रहे हर रोज़ मेरे सपनों में ,
उड़ती हुई चिड़िया ,
तो कभी ,
शरद की धूप सी ,
जो हर रात डरा देती है मुझको ,
कि जैसे ,
कोई समेट लेना चाहता है तुम्हें ,
और काट देना चाहता है तुम्हारे पर ,
जिनसे छूना है तुम्हें ,
आकाश।
कि वो आकाश भी ,
कर रहा है तुम्हारा इन्तज़ार ,
जो हर रोज़ देखता है
तुम्हारे सपने ,
पर, भयावह
जिससे उचट जाती है उसकी नींद
और ,लिखता है कविता ,
जिससे हर रोज़ बचा लेता है , तुम्हें
पर देखना सतर्क रहना ,
नही हूँ मैं तुम्हारे पास .....
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