कभी ईश्वर कभी कंकर बनाने
लगा घर सा कोई अन्दर बनाने
सती के रूप में मेरी मुहब्बत
चली आई मुझे शंकर बनाने
बहुत सी बात थी खामोशियों में
जुबां उसको लगी जर्जर बनाने
चुनावी मसअला छाने लगा है
लगे अब खुशनुमा मंज़र बनाने
अधूरी सांस भी थी टूटने को
तभी वो आ गए रहबर बनाने
मुहब्बत नील का पर्याय है सर
इसे क्यों आ गए कमतर बनाने
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