27/04/2019

उसके इक इक हिस्सों में खो जाता हूँ

उसके इक इक हिस्सों में खो जाता हूँ 
जीवन के कुछ लम्हों में खो जाता हूँ 
मैं तो अक्सर अपनों में खो जाता हूँ 

संबंधों में गाढ़ापन बढ़ता जाए 
उन पाकीज़ा रिश्तों में खो जाता हूँ 

वो अक्सर ही मिलने आया करती है 
डूबा रहता सपनों में खो जाता हूँ 

सर पर थीसिस नाच रही है ज़ोरों से 
लिखने बैठूँ, नज़्मों में खो जाता हूँ 

शहरों में सबकुछ मिलता है मिलने दो 
मैं तो गाँवों, कस्बों में खो जाता हूँ 

मुझको दी है मेरी माँ नें एक बहन 
उसके प्यारे किस्सों में खो जाता हूँ 

कई लड़कियों से देखा बातें करते 
वो कहता है, जिस्मों में खो जाता हूँ 

मेरी भी ख़्वाहिश है बीबी सजी रहे 
साड़ी, कपड़ो, गहनों में खो जाता हूँ 

रातें कैसे गुज़र रहीं मालूम नही 
उसके इक इक हिस्सों में खो जाता हूँ 

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