उसके इक इक हिस्सों में खो जाता हूँ |
जीवन के कुछ लम्हों में खो जाता हूँ
मैं तो अक्सर अपनों में खो जाता हूँ
संबंधों में गाढ़ापन बढ़ता जाए
उन पाकीज़ा रिश्तों में खो जाता हूँ
वो अक्सर ही मिलने आया करती है
डूबा रहता सपनों में खो जाता हूँ
सर पर थीसिस नाच रही है ज़ोरों से
लिखने बैठूँ, नज़्मों में खो जाता हूँ
शहरों में सबकुछ मिलता है मिलने दो
मैं तो गाँवों, कस्बों में खो जाता हूँ
मुझको दी है मेरी माँ नें एक बहन
उसके प्यारे किस्सों में खो जाता हूँ
कई लड़कियों से देखा बातें करते
वो कहता है, जिस्मों में खो जाता हूँ
मेरी भी ख़्वाहिश है बीबी सजी रहे
साड़ी, कपड़ो, गहनों में खो जाता हूँ
रातें कैसे गुज़र रहीं मालूम नही
उसके इक इक हिस्सों में खो जाता हूँ
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