31/03/2019
30/03/2019
मेरी बच्चियों मुझे माफ़ करना
Love You My Daughter |
मेरी बच्चियों मुझे माफ़ करना
मैं शादी नहीं करने वाला, इसलिए कि कहीं
मेरी पत्नी की गोद में किलकारी मारती हुई तुम न आ जाओ
मैं खुद सहम सा गया हूँ इस समाज से,
मुझे रातों को नींद नहीं आ रही है आजकल
मैं इस समाज का एक आम आदमी हूँ
आम का मतलब झुनझुना है इस कानून में जिसे कोई भी बजा जाये
मेरे सर की नसें कभी - कभी ऐसे दुखती हैं
जैसे आसमान में बिजलियाँ फट रही हों
जैसे बुखार चला गया हो 105 % के पार
जैसे मस्तिष्क के भीतर लगा दी हो किसी ने आग
तुम्हें नहीं मालूम शायद इस धरती पर
कितने दोगले लोग बसते हैं
कितनों के चेहरों पर अभी भी नकाब लगा है
कितने तो इतने शरीफ़ मालूम पड़ते हैं जैसे बुराइयों से कोई वास्ता ही नहीं उनका
तुम्हें ये भी नहीं मालूम शायद
यहाँ विचारों में पलती है गन्दी - राजनीति
जो तुम्हारा कहीं भी और कभी भी सौदा करा सकती है, एक वेश्या की भाँति
तुम्हें ये जानना चाहिए कि तुम धरती पे पाँव रखते ही
लोगों के आँखों की किरकिरी बन जाओगी
कभी हिन्दू तो कभी मुस्लिम दंगो के लिए तुम्हारा इस्तेमाल होगा
तुम्हारे साथ होगा बलात्कार और फ़ेंक दिया जाएगा तुम्हें मारकर कहीं नदी, तालाब या झाड़ियों में
मुझे तुमसे कोई ईर्ष्या या द्वेष नहीं है
महज़ लोगों के मन का विकार हट जाये
मैं तुम जैसी हज़ार बेटियाँ बहनें चाहूँगा जिन्हें खुले आसमाँ के नीचे ऐसे उड़ाउँ
जैसे चिड़िया आसमान पर
मेरी बच्चियों मुझे माफ़ करना
मैं शादी नहीं करने वाला, इसलिए कि कहीं
मेरी पत्नी की गोद में किलकारी मारती हुई तुम न आ जाओ
29/03/2019
28/03/2019
Massage From Soldier
Indian - Army |
सना लतपत लहू से लाल होकर के लड़ूँगा,
जब तलक मुझमें ज़रा भी साँस होगी
जब तलक धरती बचा पाऊँगा मैं उन कायरों से और उनकी दोगली रणनीति जो है खोखली
जिसमें महज़ है युद्ध बाकी कुछ नहीं है।
मैं तिरंगे में लिपटकर सामने जब भी कभी आऊँ मेरी माँ
है कसम तुमको हमारे इस शहीद - ए - जिस्म से निकले हुए एक - एक कतरों की,
कभी भी देखकर या सोचकर मुझको नहीं रोना मेरी माँ
इस शहीद - ए - जिस्म को आशीष देना तुम बहुत ही गर्व से कहना यही कि
फिर हमारी कोख में आना मेरे बेटे
इसी धरती इसी झण्डे की ख़ातिर।
तीन रंगों से सजाता देश को मेरे,
भरे सन्देश देता विश्व को सारे हवा से डोलता, गुलज़ार होता है सभी के सामने मन यूँ लहकता है
कि जैसे खेत में फसलें, कि जैसे वृक्ष वन उपवन नदी तालाब झरने और जैसे
गाँव की ठण्डी हवाएँ छू रही हों जिस्म में घुसकर मेरे अन्तःकरण, मन, और चिन्तन को
बनाती और ही पावन,
कि जिनसे सोचता हूँ मैं हमेशा मुल्क की आबोहवा किस ओर है किस ओर जाना चाहिए इसको।
और भी माओं के बेटे आज मेरे साथ ही इस युद्ध में मारे गए हैं
और भी बहनें सदा रोएँगी, भइयादूज रक्षासूत्र के पावन दिनों में
और सारी पत्नियाँ जो थी सुहागन अब तलक वो आज से विधवा बनेंगी
तुम हमारे नाम की जो चूड़ियाँ पहनी हो उनको तोड़ देना,
होंठ की लाली, महावर पैर का पायल, लगे उन आँख का काजल, सजी बिंदी लगा सिन्दूर
अपना तुम मिटा लेना।
हमारी याद के बादल उमड़ते हों तो उनको भूलकर, अपनी सजाओ जिन्दगी फिर से
तुम्हें देखूँगा ऊपर से हमेशा खुश रहूँगा, देखकर तुमको
की अब मैं फिर कभी उस देह में न आ सकूँगा और ना ही इस जनम में मिल सकूँगा
ये मेरा दुर्भाग्य है पर क्या करूँ, सौभाग्य था कि मैं मरा अपने वतन के आन की ख़ातिर।
और उनकी बेटियों से बोलना पापा तुम्हारे कह रहे थे, जिस तरह हँसते हुए कुर्बान मैं होता गया हर बार,
इससे सीख लें वो भी उन्हें लड़ना है दुश्मन से, उन्हें बढ़ना है तन - मन से,
उन्हें है जिंदगी की हर परिस्थितियों का डट कर सामना करना, परिस्थितियाँ अभी तक सामने आई नहीं हैं।
और बेटे जो नशे में हैं उन्हें कहना की अब तो खोलकर आँखें ज़रा देखें कहाँ था देश ये अब तक
कहाँ अब जा रहा है।
सौंपता हूँ मैं उन्हें इस देश की इज्जत सरेबाज़ार इसको तुम नहीं नीलाम कर देना मेरे बेटों,
तुम्हारे हाँथ में है एक अच्छा चित्र उसको तुम सजा लेना ज़रा सा और भी सुंदर, सुनहरा चित्र वो
दिखने लगेगा।
हाँ मुझे मालूम है पापा हमारे हैं बहुत गम्भीर फिर भी देखकर ये शव, कहीं पर भाग जायेँगे अकेले में
बहुत ही फूटकर रोएँगे, उनकी आँख से आँसू नहीं सागर बहेगा।
और ऑंखे लाल होंगी यूँ कि जैसे आग में तपकर अभी निकली हुई हैं, जो निगलना चाहती हैं
उस भरे आतंक को, जो आये दिन नदियाँ बहाता खून की, जो घूमते बेख़ौफ़ कुछ भी कर रहे हैं ,
मारते हैं फौजियों के साथ इस निर्दोष जनता को समझ आता नहीं कुछ क्या करूँ इस मुल्क की खातिर अभी मैं
आज फिर से उठ रही चिंगारियाँ हैं जो अभी, वो शांत हो जाएँगी, मुद्दे दूसरे उठने लगेंगे।
आज फिर से खून उबलेगा सभी का कुछ दिनों तक का मुकम्मल एक ड्रामा फिर चलेगा।
आज फिर से फेसबुक व्हाट्स अप के स्टेटस बनेंगे और फिर रिप डालकर रोते हुए से कुछ इमोजि
टाँक देंगे कि लगे दुःख का चरम है आ गया सर आज उनके।
आज फिर से मन्त्रियों की बोलती यूँ बंद होगी कि उन्हें जैसे किसी भी साँप ने सूँघा हुआ है,
आज वो घर से, सुनहली कार या संसद भवन से तो नहीं निकलेंगे बाहर ,
या चलो आ भी गए तो सांत्वना देंगे नहीं तो झूठ बोलेंगे, कई वादे करेंगे जो अभी तक कर रहे हैं और भी आगे सदा करते रहेंगे।
और मेरे देश की जनता करेगी रोड पे धरना, जलेंगे आठ दस पुतले, भरी संख्या में कैंडिल मार्च होगा
और चौराहों फिर से देशभक्ति से भरे नारे लगेंगे, देशभक्ति की सही पहचान शायद अब यहाँ इस
देश में नारों में छिपकर रह गई है
और मेरे भाइयों - बहनों हमारे देश के, मेरे लिए रोना नहीं तुम, मैं अभी तक हूँ तुम्हारे बीच में हाज़िर ज़रा देखो
मुझे खुद में, मुझे महसूस करना रूह में अपने वहीं मेरा भवन है
ये हमारे ग्रन्थ कहते हैं कभी भी आत्मा मारती नहीं है।
!!हर हर महादेव !!
26/03/2019
तुम मेरे जीवन से हो
Sarvesh Tripathi "Bhaiya" - ( Great Poet ) |
कैसे कह दूँ कैसे हो
तुम भी बिल्कुल ऐसे हो
देख नहीं पाता जिनको
ईश्वर अल्लाह जैसे हो
मैं कौड़ी हूँ पहले की
तुम तो अब के पैसे हो
मुझको देखी बोल पड़ी
जो सोची थी वैसे हो
सत्ता कहाँ तुम्हारी है
पूरे गगनकुसुम से हो
खाओ खटिया तोड़ो बस
तुम इस घर के भैंसे हो
मैं जीवन हूँ, जीवन का
तुम मेरे जीवन से हो
22/03/2019
मुझको देखोगी या मेरा पागलपन
Neel |
हँसती जाओ नहीं करो यूँ आँखेँ नम
इस लम्हें को जी लो भूलो सारे गम
जीवन को किरदारों में बाँटा हूँ मैं
मुझको देखोगी या मेरा पागलपन
पापा बैठ किनारे घर के रोते हैं
बेटे संग शायद फिर आज हुई अनबन
घर से बाहर निकल रहा हूँ पढ़ने को
मम्मी कहती है बेटा न जा लन्दन
बहना को जब भी देखूँ दिल रोता है
बहना के हाँथो में न दिखते कंगन
भाई को समझा - समझा कर हार गया
भाई केवल बातों में है नंबर वन
जब भी ऐसी दशा देखता हूँ घर की
बाहर खुश दिखता हूँ, अंदर रोता मन
तुम्हारे इस शहर से जो गुज़र जाऊँगा मैं
Cover Page Of My First Poetry Book. |
जिधर होगा इशारा बस उधर जाऊँगा मैं
यही सच है अगर ऐसे सुधर जाऊँगा मैं
भुलाना यूँ मुझे जैसे क़यामत आ पड़ी हो
तुम्हारे इस शहर से जो गुज़र जाऊँगा मैं
हुकूमत की जमी होगी जहाँ न मैं रहूँगा
भले राजा रहो तुम पर मुकर जाऊँगा मैं
इबादत मैं करूँगा सिर्फ़ इस हिन्दोस्ताँ की
तुम्हारे सामने बनकर कहर आऊँगा मैं
मुहब्बत आज़माना है तुम्हें लो आज़मा लो
मुहब्बत की जमीं पर फ़िर नहीं आऊँगा मैं
हुकूमत की जमी होगी जहाँ न मैं रहूँगा
भले राजा रहो तुम पर मुकर जाऊँगा मैं
इबादत मैं करूँगा सिर्फ़ इस हिन्दोस्ताँ की
तुम्हारे सामने बनकर कहर आऊँगा मैं
मुहब्बत आज़माना है तुम्हें लो आज़मा लो
मुहब्बत की जमीं पर फ़िर नहीं आऊँगा मैं
21/03/2019
बाहर निकलो तुम्हें लगाएंगे होली
Happy Holi, World Poetry day & Birthday of Aaiyappa |
रंगों का त्यौहार मनाएंगे होली
गुझिया पापड़ भाँग पिलाएंगे होली
धरती से आकाश तलक रंग बिखरेगा
जहाँ रहेंगें वहीं मनाएंगे होली
इंद्रधनुष भी सात रंग में डूबा है
तुमको भी हम आज डुबाएंगे होली
कम से कम इस दिन सब भूले - बिसरेंगे
दुश्मन को भी गले लगाएंगे होली
रंगों से है प्रेम, स्नेह सौहार्द बढ़े
सबको इसका पाठ पढ़ाएंगे होली
महादेव से खेल लिए जब रंग यारों
औरों से हम क्या शर्माएंगे होली
नील तुम्हारे लिए खड़ा दरवाजे पर
बाहर निकलो तुम्हें लगाएंगे होली
17/03/2019
नील किसको मना रहे हो तुम
Neel |
आज रूठे से लग रहे हो तुम
बात दिल की न कर रहे हो तुम
मात देने की बात करते हो
शर्त किससे लगा रहे हो तुम
याद आती है तेरी सुबह से
आज इतना सता रहे हो तुम
टूट जाएगा दिल मेरा सुन लो
प्यार झूठा जता रहे हो तुम
जानता हूँ मैं, ये जहाँ क्या है
इत्तला क्या सुना रहे हो तुम
डूबते हो महज़ तसव्वुर में
जिन्दगी यूँ बिता रहे हो तुम
आदमी है, ज़रा सा पागल है
दिल्लगी यूँ निभा रहे हो तुम
बात करते हो मार देने की
और उसके खुदा रहे हो तुम
मुफ्त में है नहीं जहर यारों
कौन से देश आ रहे हो तुम
एक ही है दिया मेरे घर में
और उसको बुझा रहे हो तुम
बोल तो, कौन किसकी सुनता है
नील किसको मना रहे हो तुम
डूबते हो महज़ तसव्वुर में
जिन्दगी यूँ बिता रहे हो तुम
आदमी है, ज़रा सा पागल है
दिल्लगी यूँ निभा रहे हो तुम
बात करते हो मार देने की
और उसके खुदा रहे हो तुम
मुफ्त में है नहीं जहर यारों
कौन से देश आ रहे हो तुम
एक ही है दिया मेरे घर में
और उसको बुझा रहे हो तुम
बोल तो, कौन किसकी सुनता है
नील किसको मना रहे हो तुम
15/03/2019
कोई भी आये मग़र इस क़दर न आएगा
कोई भी आये मग़र इस क़दर न आएगा
आप जलवों की नुमाइश में खड़े मत होना
आपका रूप ही लोगों पे कहर ढायेगा
प्यार की चाह वहाँ है, जहाँ नहीं नफ़रत
निशाँ ए प्यार का होठों पे असर आएगा
आज फिर से ये चमकदार जहाँ देखूँगा
आज बोला है वो, मेरे ही शहर आएगा
चाह सारी बताओ आज मुहब्बत से तुम
जहाँ कहोगी वहाँ जन्मदिन मनाएगा
आज ये मुल्क़ तमाशा भी मुझे बोले तो
आज दिल खोल के ये नील गुनगुनाएगा
14/03/2019
कहाँ दूध के धुले हुये हो तुम यारा
The Habitat |
बस थोड़ा सा खुले हुये हो तुम यारा
कहाँ सभी संग अभी घुले हो तुम यारा
बात मुकम्मल है तेरी, मैं दोषी हूँ
कहाँ दूध के धुले हुये हो तुम यारा
तुम्हीं कहो विश्वास भला कैसे कर लूँ
दुश्मन से भी मिले हुये हो तुम यारा
अभी उम्र जो ढ़ली लगे सिखलाने तुम
यौवन में क्या नहीं किये हो तुम यारा
जो भी देना है दे दो, या जाने दो
मुझको मेरे देश भगाओ तुम यारा
सबकुछ रहने पर भी सदा परीशाँ हो
मुझको जीना नहीं सिखाओ तुम यारा
12/03/2019
काहे भउजी दुबरानि अहा
काहे भउजी दुबरानि अहा
बाबा - आजी घर से बाहर
मम्मी - पापा के नंबर है
न जाने ई जुग कउन आय
नीचे आवत अब अम्बर है
जब से यैह घर मा आय गयू
तब से नखरा तगड़ा होय गा
भाइन मा अलगा बाँटी भै
पूरे घर मा झगड़ा होइ गा
हम रोय रहिन ई दशा देख
अपने घर के दुर्दशा देख
हम सोंचे तू अच्छी बाट्यू
लेकिन तू तौ शैतानि अहा
मंतर तू कउन चलाय दिहू
भइया हमरे अन्जान अहैं
जब से वै पाय गये तोहका
तब से ओनहू पगलान अहैं
जीवन खुशहाल रहा सबके
अब देखा यही खिन्न होइगा
बाबू पापा दादा चाचा के
सपना छिन्न - भिन्न होइगा
ना जाने श्राप कहाँ मिलिगा
आचरण कबो न शुद्ध भवा
मम्मिउ तौ कबो पतोह रहीं
उनसे तौ नाही जुद्ध भवा
तू सुधर गई होत्यू लेकिन
भइया के तू भगवानि अहा
घर चाय - समोसा चलत रहै
पिच्चर पै पिच्चर चलत रहै
घुस के कमरा मा बैठि अहा
काहे एतना तू ऐंठि अहा
तू कामचोर एक नंबर के
बोलत बाट्यू ठण्डी बाटै
भइया तौ अहैं गुलामी मा
उनसे हरकी झण्डी बाटै
लबराय गये भइया हमरे
दिनभर कोठरी मा घुसा रहैं
आँखी मा सरम नहीं रहिगै
मेहरी संग बेड पै परा रहैं
जीवन भर साथ रहै का है
काहे एतना मेहरानि अहा
पापा तौ बहुत बखानें पर
बिटिया न वह लायक निकरी
दस बजे उठैं गुंगुआत रहैं
वै बाथरूम गायक निकरीं
एकौ गुण अबै देखान नहीं
भइया एतनी चोबर बाटीं
मम्मी बोलीं गुणवानि अहैं
लेकिन यै गुणगोबर बाटीं
हमरेव सपूत बेशर्म अहैं
पापा दुवरा पै आय कहिन
मम्मी से कहत - कहत पापा
आँखी से लोर बहाय दिहिन
केहू कुछ बोलत नहीं अहै
यह बरे बड़ी लहरानि अहा
बाबा जब से यह देखे हैं
तब से एकदम गुस्सान अहैं
भइया - भउजी का डाट दिहिन
बोलें घर के कुछ शानि अहै
भउजी का डाट पची नाही
कुछ बोल परी उल्टा - सीधा
गुस्सा से चेहरा लाल भवा
एतना ज्यादा ई मन खीझा
लेकिन खुद का हम शांत कीन
खुद का ओहसे अंजान कीन
लेकिन पापा से नहीं रहा
पापा दुई थप्पण दै बैठें
घर मा दिनभर हुड़दंग मचा
भइया घूमें ऐठें - ऐठें
केवल ई तौ शुरुआत आय
अबहीं से तू घबरानि अहा
दूसरे दिन सब सामान लिहिन
घरवाली संग ससुराल गये
सारा पइसा खाली होइगा
सारी - सरहज संग मॉल गये
बीबी जेतना आदेश करैं
उतनै भइया कइ पावत थीं
बस एक इशारा कॉफी है
वै दौड़े - दौड़े आवथीं
जैसे कुछ हप्ता बीत नहीं
मम्मी घर पै रोवै लागीं
बड़का बेटवा न बात करिस
वै सारी रात रहीं जागी
जैसे मोबाइल हाँथ लाग
झट से वै फोन मिलाय दिहीं
बिन गलती के मॉफी माँगी
आपन सब दुखड़ा गाय दिहीं
मम्मिउ के बात नहीं मानें
तू उनके गीता - ज्ञानि अहा
काहे भउजी दुबरानि अहा
घर चाय - समोसा चलत रहै
पिच्चर पै पिच्चर चलत रहै
घुस के कमरा मा बैठि अहा
काहे एतना तू ऐंठि अहा
तू कामचोर एक नंबर के
बोलत बाट्यू ठण्डी बाटै
भइया तौ अहैं गुलामी मा
उनसे हरकी झण्डी बाटै
लबराय गये भइया हमरे
दिनभर कोठरी मा घुसा रहैं
आँखी मा सरम नहीं रहिगै
मेहरी संग बेड पै परा रहैं
जीवन भर साथ रहै का है
काहे एतना मेहरानि अहा
पापा तौ बहुत बखानें पर
बिटिया न वह लायक निकरी
दस बजे उठैं गुंगुआत रहैं
वै बाथरूम गायक निकरीं
एकौ गुण अबै देखान नहीं
भइया एतनी चोबर बाटीं
मम्मी बोलीं गुणवानि अहैं
लेकिन यै गुणगोबर बाटीं
हमरेव सपूत बेशर्म अहैं
पापा दुवरा पै आय कहिन
मम्मी से कहत - कहत पापा
आँखी से लोर बहाय दिहिन
केहू कुछ बोलत नहीं अहै
यह बरे बड़ी लहरानि अहा
बाबा जब से यह देखे हैं
तब से एकदम गुस्सान अहैं
भइया - भउजी का डाट दिहिन
बोलें घर के कुछ शानि अहै
भउजी का डाट पची नाही
कुछ बोल परी उल्टा - सीधा
गुस्सा से चेहरा लाल भवा
एतना ज्यादा ई मन खीझा
लेकिन खुद का हम शांत कीन
खुद का ओहसे अंजान कीन
लेकिन पापा से नहीं रहा
पापा दुई थप्पण दै बैठें
घर मा दिनभर हुड़दंग मचा
भइया घूमें ऐठें - ऐठें
केवल ई तौ शुरुआत आय
अबहीं से तू घबरानि अहा
दूसरे दिन सब सामान लिहिन
घरवाली संग ससुराल गये
सारा पइसा खाली होइगा
सारी - सरहज संग मॉल गये
बीबी जेतना आदेश करैं
उतनै भइया कइ पावत थीं
बस एक इशारा कॉफी है
वै दौड़े - दौड़े आवथीं
जैसे कुछ हप्ता बीत नहीं
मम्मी घर पै रोवै लागीं
बड़का बेटवा न बात करिस
वै सारी रात रहीं जागी
जैसे मोबाइल हाँथ लाग
झट से वै फोन मिलाय दिहीं
बिन गलती के मॉफी माँगी
आपन सब दुखड़ा गाय दिहीं
मम्मिउ के बात नहीं मानें
तू उनके गीता - ज्ञानि अहा
काहे भउजी दुबरानि अहा
ऐसे ही यह विश्व बँट गया देशों और प्रदेशों में
ज्यादा है कुछ बात नहीं बस तरह - तरह के क्लेशों में
मानव देखा जाता है अब रंग, रूपों, और वेशों में
ज्यादा है कुछ बात नहीं बस तरह - तरह के कलेशों में
देखता हूँ मैं जब जिसको सब रहते हैं आवेशों में
ज्यादा है कुछ बात नहीं बस तरह - तरह के कलेशों में
खेतों में है आग लगी जीते हैं कुछ अवशेषों में
ज्यादा है कुछ बात नहीं बस तरह - तरह के कलेशों में
ज्ञान अथाह भले ही हो नौकरी नहीं है रेसों में
ज्यादा है कुछ बात नहीं बस तरह - तरह के कलेशों में
लोग स्वयं का मान बेंच देते हैं रुपयों - पैसों में
ज्यादा है कुछ बात नहीं बस तरह - तरह के कलेशों में
ऐसे ही यह विश्व बँट गया देशों और प्रदेशों में
ज्यादा है कुछ बात नहीं बस तरह - तरह के कलेशों में
यह मेरी पहली कविता है जब मैं रणवीर संस्कृत विद्यालय ( BHU,कमच्छा, वाराणसी ) में बारहवीं का छात्र था।
मैंने इसे " सुशील सुमन सर " की विदाई के उपलक्ष्य में गुरुदक्षिणा के लिए लिखा था, मुझे अवसर भी मिला अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का और मैंने ये कविता सुनाई।
सुशील सुमन सर नें कविता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि कविता बहुत ही अच्छी है पर इसकी दूसरी लाइन का प्रयोग बार - बार हो रहा है इसलिए थोड़ी कमज़ोर हो रही है बाकी कविता में विभिन्न विषय हैं, कविता में बहुत सारा सन्देश है, इन्हीं संदेशों के साथ ही मुझे तुममें बहुत सारी उम्मीदें दिख रही हैं ।
सुशील सुमन सर नें उस दिन बातों को कहने के क्रम में एक बहुत ही ख़ूबसूरत बात बोली थी, जिसका प्रभाव मेरे ऊपर हमेशा रहा है उनके लफ़्ज़ थे कि " विचार किसी के बाप की जागीर नहीं हैं जो कुछ ही लोगों के पास रहें विचार कोई भी दे सकता है और जरूरी नहीं की हमेशा जो बड़ा बोले वही सही हो, छोटे भी सही हो सकते हैं और होते हैं ।"
बड़े दिनों बाद आज ये कविता मुझे मिली मैंने सोचा इससे पहले कि ये कहीं इधर - उधर हो इससे जुड़ी यादें और ये कविता आप सभी के साथ साझा ही कर लेता हूँ।
सुशील सुमन सर को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ और मेरा प्रणाम।
11/03/2019
तुम्हारा मुल्क दहशत खा गया क्या
कहो कोई कहीं से आ रहा क्या
सुनो तो ग़ौर से क्या कह रहा है
मेरे घर का पता बतला रहा क्या
गए थे आबरू से खेलने तुम
सुनाओ तो सही महंगा पड़ा क्या
बहाया है बहुत ही ख़ून मेरा
बता जन्नत में गद्दी पा गया क्या
खिला जैसे निकल कर आ गई तुम
ज़रा देखो कमल मुरझा गया क्या
रुका हनुमान सा लंका समझकर
तुम्हारा मुल्क दहशत खा गया क्या
बहाया है बहुत ही ख़ून मेरा
बता जन्नत में गद्दी पा गया क्या
खिला जैसे निकल कर आ गई तुम
ज़रा देखो कमल मुरझा गया क्या
रुका हनुमान सा लंका समझकर
तुम्हारा मुल्क दहशत खा गया क्या
तिरंगा झूमता है आसमाँ में
मेरा भाई इसे लहरा गया क्या
तुम संग नैय्या पार करूँगा
Before - 5 year |
इक तेरा चेहरा देखूँगा
जीवन - भर दीदार करूँगा
बहुत हुई ऐय्याशी यारा
अब इक तुमसे प्यार करूँगा
डूब रहा था मैं दलदल में
देख नहीं पाता ये कल मैं
पापों से मैं फूल चुका हूँ
गुजरा कल मैं भूल चुका हूँ
सबकुछ तुम्हें बताऊँगा मैं
तनिक नहीं व्यभिचार करूँगा
तुमको पाकर हर्षित हूँ मैं
जीवन गतिमय विकसित हूँ मैं
अन्धकार हटता जाता है
अब प्रकाश तेरा आता है
जीवन है रंगीन हमारा
और इसे गुलज़ार करूँगा
संकल्पित मन, वचन, कर्म से
अपनाता हूँ एक धर्म से
वही धर्म जो प्यार सिखाये
मानवीय - संस्कार सिखाए
इसी सादगी में रहकर के
तुम संग नैय्या पार करूँगा
10/03/2019
07/03/2019
गोदी में मैं महफूज़ हूँ माँ
Happy Women's Day |
ना जाने दो अब और कहीं
गोदी में मैं महफूज़ हूँ माँ
बहना रक्षा की डोरी है
मैं उसका भइयादूज हूँ माँ
बचपन से लेकर आज तलक
तेरा आँचल मुझको भावे
तेरी गोदी में सर रखूँ
सो जाऊँ ऐसी नींद आवे
फिर क्या है जन्नत और स्वर्ग
फिर क्या मन्दिर क्या मस्जिद है
छोटा सा बच्चा बन जाऊँ
माँ, बस मेरी इतनी जिद है
मैं तेरा अपना बेटा हूँ
ना यादों का सन्दूक हूँ माँ
बहना मेरी परछाई सी
चलती रहती आगे पीछे
थोड़ा भी डाट लगाऊँ तो
वो देखे बस ऊपर नीचे
ना मुझसे आँख मिलाती वो
रोती अन्दर भग जाती वो
फिर हँसकर वो बाहर आती
कहती है भइया भूत बनो
शंकर, भोलेबाबा, काशी के
शुद्धरूप अवधूत बनो
वो मेरी रानी गुड़िया है
मैं उसका प्यारा भूत हूँ माँ
अब रही तुम्हारी बात प्रिये
तुम मेरे जीवनसाथी हो
मैं जलता हूँ गर दीपक सा
है प्यार तेल, तुम बाती हो
इतनी सुमधुर आवाज़ तेरी
लगती है माँ की लोरी सी
जितना मन ऊपर भेजो तुम
मैं पतंग और तुम डोरी सी
हम दोनों हैं इक दूजे के
वो कोयल है मैं कूक हूँ माँ
हम दोनों कर्म करें मिलकर
वो गोली मैं बन्दूक हूँ माँ
भारत में अपनापन देखो
शबरी का दिल - दर्पण देखो
वो राम, राम गर कहे गए
सीता का पावन - मन देखो
उर्मिला बेचारी कहाँ गई
पति से वियोग उसका भी था
लक्ष्मण भटकें वन - उपवन में
कैसा दुर्योग ये उसका था
लड़कर यमराज से ले आई
प्राणों को सत्यवती जाकर
विष पी डाला सब मीरा नें
कान्हा की भक्ति में खोकर
इनकी गौरव - गाथा सम्मुख
मैं शब्दों में दो टूक हूँ माँ
अब वर्तमान इस भारत के
बारे में अनुसंधान करें
रौशन भारत करने वाली
महिलाओं का कुछ ज्ञान करें
पूरी सेना को धूल चटाने
वाली लक्ष्मीबाई थी
कल्पना उड़ी तो आसमान से
मिलकर वापस आई थी
मस्तानी पद्मावती प्रेम की
अद्भुद अमिट कहानी थी
पद्मा थी पतिव्रता यारों
मस्तानी तो दीवानी थी
सानिया और पी.वी सिंधू
मैदानों में डट जाती हैं
भारत का ध्वजा - पताका ले
सबसे ऊपर लहराती हैं
बबिता, पी. टी. ऊषा नें
अपने लक्ष्यों पे बस ध्यान दिया
इसलिए हमारे भारत नें
महिलाओं का सम्मान किया
मैं सुनो इसी वंशज का हूँ
इसलिए तेरे अनुरूप हूँ माँ
भारत में अपनापन देखो
शबरी का दिल - दर्पण देखो
वो राम, राम गर कहे गए
सीता का पावन - मन देखो
उर्मिला बेचारी कहाँ गई
पति से वियोग उसका भी था
लक्ष्मण भटकें वन - उपवन में
कैसा दुर्योग ये उसका था
लड़कर यमराज से ले आई
प्राणों को सत्यवती जाकर
विष पी डाला सब मीरा नें
कान्हा की भक्ति में खोकर
इनकी गौरव - गाथा सम्मुख
मैं शब्दों में दो टूक हूँ माँ
अब वर्तमान इस भारत के
बारे में अनुसंधान करें
रौशन भारत करने वाली
महिलाओं का कुछ ज्ञान करें
पूरी सेना को धूल चटाने
वाली लक्ष्मीबाई थी
कल्पना उड़ी तो आसमान से
मिलकर वापस आई थी
मस्तानी पद्मावती प्रेम की
अद्भुद अमिट कहानी थी
पद्मा थी पतिव्रता यारों
मस्तानी तो दीवानी थी
सानिया और पी.वी सिंधू
मैदानों में डट जाती हैं
भारत का ध्वजा - पताका ले
सबसे ऊपर लहराती हैं
बबिता, पी. टी. ऊषा नें
अपने लक्ष्यों पे बस ध्यान दिया
इसलिए हमारे भारत नें
महिलाओं का सम्मान किया
मैं सुनो इसी वंशज का हूँ
इसलिए तेरे अनुरूप हूँ माँ
ना जाने दो अब और कहीं
गोदी में मैं महफूज़ हूँ माँ
बहना रक्षा की डोरी है
मैं उसका भइयादूज हूँ माँ
02/03/2019
पप्पू बाट्या पप्पुवै रहा
Rahul Gandhi Ji |
पप्पू बाट्या पप्पुवै रहा
तू साठ साल न दै पाया
अब तू सबका सोना देब्या
आलू डइहिं सोना निकरी
घर मा ना इक कोना देब्या
अब तुहीं बतावा का करब्या
बुद्धि चकराति अहै तोहर
कइ ल्या बियाह दुलहिन लावा
तू मजा करा बनके सौहर
यातौ जस लरका अहा अबै
लरिकै जइसे बर्ताव करा
जेतना होय पावै कम बोला
जनता मा ना दुर्भाव भरा
निर्लज्ज बहुत होय गा बाट्या
माई के बारे मा सोचा
पूरा ई देश हँसत बाटै
कुछ जान समझ ल्या तौ बोला
अइसेन नीलाम करा इज्जत
कुछ थोर बहुत जउनै बाटै
तोहका सुन ल्या सुधरै चाही
बुध्दि कुछ बाटै की नाही
जउनै मुँह आवै नहीं कहा
चालीस - पैतालिस उमरि अहै
अब तक ना तू कुछ कइ पाया
अपनै तू क्षेत्र नहीं देख्या
केहू का न सुख दै पाया
फिर तोहसे का उम्मीद रहै
तू का कइ पउब्या भारत मा
आपन छत न सम्हार पाया
तू का कइ पउब्या हर छत मा
पहिले कुछ ट्यूसन कोंचिंग ल्या
फिर तू भाषण खातिर आया
बेटवा देख्या घर बचा रहै
घर चोर बहुत सातिर आवा
स्विस मा सब पइसा भरि आईं
भउजी फिर से लूटै आईं
लेकिन अब कहाँ लूट पउबू
सब समझ गएन बेउहार हियाँ
माई बेटवा घर वापस जा
गिर गा सारा आचार हियाँ
मेहमान नवाजी बहुत कीन
मेहमान चला रस्ता नापा
तू एक बार खोखला किहा
भारत फिर से तू ना भापा
ल्या बैग उठावा घरै बढ़ा
बस तुम्हरे दूइनौ के कारण
दद्दू कुछ बोल नहीं पायें
उनके काहे मन मोह लिहू
ओनहू नाही कुछ दइ पायें
विद्वान रहें वै बहुत मगर
उनके संगति गड़बड़ होइ गै
गद्दी पै बइठे रहें मगर
घर मलकिन तौ बंचड़ होइ गै
यह बरे कुछू न कइ पायें
सत्ता मा बस जागें सोएँ
गलती वै कउनो करे रहें
अइसेन तौ वै चुप नहीं रहें
अब जउन भवा होइगा छोड़ा
पपुआ तोहार होइ गा घोड़ा
अपने बेटवा का समझावा
मुड़वा मा कुछ बुद्धि डावा
मोदी बाबा जब डाटत थीं
चड्ढी पकड़े ऊ भागत थै
पगलाय जात है कबो - कबो
आँखी ऊ मारै लागत थै
खेलिस हरदम आइस - पाइस
ऊ अउर कुछू न कइ पाइस
बस आँख मिचौली करत रहा
बस तुम्हरे दूइनौ के कारण
दद्दू कुछ बोल नहीं पायें
उनके काहे मन मोह लिहू
ओनहू नाही कुछ दइ पायें
विद्वान रहें वै बहुत मगर
उनके संगति गड़बड़ होइ गै
गद्दी पै बइठे रहें मगर
घर मलकिन तौ बंचड़ होइ गै
यह बरे कुछू न कइ पायें
सत्ता मा बस जागें सोएँ
गलती वै कउनो करे रहें
अइसेन तौ वै चुप नहीं रहें
अब जउन भवा होइगा छोड़ा
पपुआ तोहार होइ गा घोड़ा
अपने बेटवा का समझावा
मुड़वा मा कुछ बुद्धि डावा
मोदी बाबा जब डाटत थीं
चड्ढी पकड़े ऊ भागत थै
पगलाय जात है कबो - कबो
आँखी ऊ मारै लागत थै
खेलिस हरदम आइस - पाइस
ऊ अउर कुछू न कइ पाइस
बस आँख मिचौली करत रहा
पप्पू बाट्या पप्पुवै रहा
01/03/2019
तुम साथ नहीं, ये गम न हो
नील |
तुम साथ नहीं, ये गम न हो
पर प्यार हमारा कम न हो
जिन यादों से दुनिया देखी
उन यादों के मरहम न हों
चलती सनसनी हवाएँ हैं
पर आती नहीं दुवाएँ हैं
मैं नफ़रत की दीवारों को
तोड़ूँ सारे व्यभिचारों को
चलती सनसनी हवाएँ हैं
पर आती नहीं दुवाएँ हैं
मैं नफ़रत की दीवारों को
तोड़ूँ सारे व्यभिचारों को
ऐसा पल न हो जीवन में
तुम पास रहो हमदम न हो
तुम किसी फूल की तरह खिलो
बन धार नदी की सदा मिलो
सागर से थोड़ा प्यार करो
मैं तुम्हें भरूँ, तुम मुझे भरो
इस कदर हमारा प्यार पले
उन्मुक्त रहें बन्धन न हो
जीवन में जितने मोड़ मिले
मुझको सारे बेजोड़ मिले
मैं खुलकर ये कह सकता हूँ
सबसे दूरी सह सकता हूँ
जिससे दूरी बनती जाए
हो और कोई दुल्हन न हो
तुम किसी फूल की तरह खिलो
बन धार नदी की सदा मिलो
सागर से थोड़ा प्यार करो
मैं तुम्हें भरूँ, तुम मुझे भरो
इस कदर हमारा प्यार पले
उन्मुक्त रहें बन्धन न हो
जीवन में जितने मोड़ मिले
मुझको सारे बेजोड़ मिले
मैं खुलकर ये कह सकता हूँ
सबसे दूरी सह सकता हूँ
जिससे दूरी बनती जाए
हो और कोई दुल्हन न हो
Subscribe to:
Posts (Atom)
रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!
देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...
-
आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ जिन्दगी जगमगाती रहे उम्रभर कोई हँस के लगाती रहे उम्रभर रंग गाढ़ा हो मन का के छूटे ...
-
बस तुम्हारे लिए........... मैं अधूरे ख़्वाब लेकर के बता जाऊँ कहाँ तू चली आ , तू चली आ , तू चली आ अब यहाँ - 2 मैं कहूँ कैसे तुम्हारी...