Indian - Army |
सना लतपत लहू से लाल होकर के लड़ूँगा,
जब तलक मुझमें ज़रा भी साँस होगी
जब तलक धरती बचा पाऊँगा मैं उन कायरों से और उनकी दोगली रणनीति जो है खोखली
जिसमें महज़ है युद्ध बाकी कुछ नहीं है।
मैं तिरंगे में लिपटकर सामने जब भी कभी आऊँ मेरी माँ
है कसम तुमको हमारे इस शहीद - ए - जिस्म से निकले हुए एक - एक कतरों की,
कभी भी देखकर या सोचकर मुझको नहीं रोना मेरी माँ
इस शहीद - ए - जिस्म को आशीष देना तुम बहुत ही गर्व से कहना यही कि
फिर हमारी कोख में आना मेरे बेटे
इसी धरती इसी झण्डे की ख़ातिर।
तीन रंगों से सजाता देश को मेरे,
भरे सन्देश देता विश्व को सारे हवा से डोलता, गुलज़ार होता है सभी के सामने मन यूँ लहकता है
कि जैसे खेत में फसलें, कि जैसे वृक्ष वन उपवन नदी तालाब झरने और जैसे
गाँव की ठण्डी हवाएँ छू रही हों जिस्म में घुसकर मेरे अन्तःकरण, मन, और चिन्तन को
बनाती और ही पावन,
कि जिनसे सोचता हूँ मैं हमेशा मुल्क की आबोहवा किस ओर है किस ओर जाना चाहिए इसको।
और भी माओं के बेटे आज मेरे साथ ही इस युद्ध में मारे गए हैं
और भी बहनें सदा रोएँगी, भइयादूज रक्षासूत्र के पावन दिनों में
और सारी पत्नियाँ जो थी सुहागन अब तलक वो आज से विधवा बनेंगी
तुम हमारे नाम की जो चूड़ियाँ पहनी हो उनको तोड़ देना,
होंठ की लाली, महावर पैर का पायल, लगे उन आँख का काजल, सजी बिंदी लगा सिन्दूर
अपना तुम मिटा लेना।
हमारी याद के बादल उमड़ते हों तो उनको भूलकर, अपनी सजाओ जिन्दगी फिर से
तुम्हें देखूँगा ऊपर से हमेशा खुश रहूँगा, देखकर तुमको
की अब मैं फिर कभी उस देह में न आ सकूँगा और ना ही इस जनम में मिल सकूँगा
ये मेरा दुर्भाग्य है पर क्या करूँ, सौभाग्य था कि मैं मरा अपने वतन के आन की ख़ातिर।
और उनकी बेटियों से बोलना पापा तुम्हारे कह रहे थे, जिस तरह हँसते हुए कुर्बान मैं होता गया हर बार,
इससे सीख लें वो भी उन्हें लड़ना है दुश्मन से, उन्हें बढ़ना है तन - मन से,
उन्हें है जिंदगी की हर परिस्थितियों का डट कर सामना करना, परिस्थितियाँ अभी तक सामने आई नहीं हैं।
और बेटे जो नशे में हैं उन्हें कहना की अब तो खोलकर आँखें ज़रा देखें कहाँ था देश ये अब तक
कहाँ अब जा रहा है।
सौंपता हूँ मैं उन्हें इस देश की इज्जत सरेबाज़ार इसको तुम नहीं नीलाम कर देना मेरे बेटों,
तुम्हारे हाँथ में है एक अच्छा चित्र उसको तुम सजा लेना ज़रा सा और भी सुंदर, सुनहरा चित्र वो
दिखने लगेगा।
हाँ मुझे मालूम है पापा हमारे हैं बहुत गम्भीर फिर भी देखकर ये शव, कहीं पर भाग जायेँगे अकेले में
बहुत ही फूटकर रोएँगे, उनकी आँख से आँसू नहीं सागर बहेगा।
और ऑंखे लाल होंगी यूँ कि जैसे आग में तपकर अभी निकली हुई हैं, जो निगलना चाहती हैं
उस भरे आतंक को, जो आये दिन नदियाँ बहाता खून की, जो घूमते बेख़ौफ़ कुछ भी कर रहे हैं ,
मारते हैं फौजियों के साथ इस निर्दोष जनता को समझ आता नहीं कुछ क्या करूँ इस मुल्क की खातिर अभी मैं
आज फिर से उठ रही चिंगारियाँ हैं जो अभी, वो शांत हो जाएँगी, मुद्दे दूसरे उठने लगेंगे।
आज फिर से खून उबलेगा सभी का कुछ दिनों तक का मुकम्मल एक ड्रामा फिर चलेगा।
आज फिर से फेसबुक व्हाट्स अप के स्टेटस बनेंगे और फिर रिप डालकर रोते हुए से कुछ इमोजि
टाँक देंगे कि लगे दुःख का चरम है आ गया सर आज उनके।
आज फिर से मन्त्रियों की बोलती यूँ बंद होगी कि उन्हें जैसे किसी भी साँप ने सूँघा हुआ है,
आज वो घर से, सुनहली कार या संसद भवन से तो नहीं निकलेंगे बाहर ,
या चलो आ भी गए तो सांत्वना देंगे नहीं तो झूठ बोलेंगे, कई वादे करेंगे जो अभी तक कर रहे हैं और भी आगे सदा करते रहेंगे।
और मेरे देश की जनता करेगी रोड पे धरना, जलेंगे आठ दस पुतले, भरी संख्या में कैंडिल मार्च होगा
और चौराहों फिर से देशभक्ति से भरे नारे लगेंगे, देशभक्ति की सही पहचान शायद अब यहाँ इस
देश में नारों में छिपकर रह गई है
और मेरे भाइयों - बहनों हमारे देश के, मेरे लिए रोना नहीं तुम, मैं अभी तक हूँ तुम्हारे बीच में हाज़िर ज़रा देखो
मुझे खुद में, मुझे महसूस करना रूह में अपने वहीं मेरा भवन है
ये हमारे ग्रन्थ कहते हैं कभी भी आत्मा मारती नहीं है।
!!हर हर महादेव !!
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